ये हार का जश्न है
लोग खुश हैं, मुस्कुरा रहे हैं, तरह-तरह की मिठाइयां बांटी जा रही हैं, रेवड़ियों के लिए लाइन लग रही है। गर्मी को देखते हुए शरबत और लस्सी की भी तैयारी है। लोग छक कर खा-पी रहे हैं। लोगों को अपने पेट का अंदाजा है लेकिन कुछ लोग बहकने के आदी हो गए हैं उनके लिए बकायद व्यवस्था की गई है। खाना खाकर दवा खाने वाले बहुत कम हैं लेकिन पीकर लुढ़कने वाले बढ़ते जा रहे हैं । जश्न के तमाम कारणों पर विपक्षी पार्टियों के लोगों ने नजर दौड़ाई। कुछ ने गड़ाईं लेकिन कुछ संभावित भी नजर नहीं आया। इसके लिए नियुक्त जासूसों की जानकारी पर भी लोगों ने भरोसा नहीं किया। कोई भरोसा भी करता तो कैसे क्योंकि नेता जी के यहां वे लोग छक कर खा रहे थे जो लोग चुनाव हार चुके थे। किसी ने आशंका जताई हो सकता है, दूसरी शादी करने वाले हों और इसके पूर्व का भोज हो। किसी उनके बेटे के शादी की चर्चा छेड़ी लेकिन किसी भी बात से मन को संतोष नहीं हो सका। इसपर नेता जी के किसी पूर्व परिचित नेता ने साहस करके पूछ ही लिया कि, ‘भाई साहब, ये गाजा-बाजा, ये खाना-पीना, ये बिन मानसून के झमाझम बारिश किसलिएज् इस प्रश्नवाचक मुद्रा में उनके मुख को देखकर नेता जी मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं और अपना हाथ उठाते हुए कहा कि आप यह न समझें कि मुङो चुनाव हारने के बाद सम्पत्ति को खर्च करके पवित्र बनने की इच्छा है, हां ये बात और है कि अक्सर चुनाव जीतने के बाद मुङो पवित्रता का दौरा पड़ा करता था। ये हार का जश्न है। हारने पर हर आदमी दुखी होता है। दुखी होना उसका फर्ज बन जाता है, अगर वह दुखी नहीं होता तो लोग उसे आसामान्य करार देते हैं और चुनाव में हारने वाला व्यक्ति दुखी न हो तो और भी हैरानी होगी। जब मैंने ये जश्न शुरु किया तो लोगों के मन में तमाम तरह की लघु, अति लघु, दीर्घ और सुदीर्घ तरह की शंकाएं उठी लेकिन हमने हर शंका का यथा संभव समाधान करने की कोशिश की।
अब जब मैं चुनाव हार चुका हूं और खुश हूं तो इसमें भी विरोधियों को कोई चाल दिख रही है। लेकिन ये चाल नहीं यह प्रसन्नता है, अद्भुत प्रसन्नता। अगर मैं चुनाव जीत जाता तो विपक्ष के नेता की मेरी कुर्सी चली जाती। यह हार तो मेरे लिए वरदान है।
Friday, June 26, 2009
Wednesday, June 17, 2009
.... पाने के लिए तुम्हारे पास ऑस्कर है
पाने के लिए तुम्हारे पास ऑस्कर है
चुनाव के पूर्व और चुनाव के बाद भी स्लम बस्तियों की हालत में सुधार न होने से स्लम बस्तियों के लोगों में आक्रोश था लेकिन आक्रोश इस तरह का नहीं है कि केंद्र सरकार, प्रदेश सरकार या संभावित विकास करने वाले किसी विभाग पर इसका अल्प, दीर्घ या अल्पाधिक प्रभाव पड़े। लेकिन संबंधित अधिकारी तक कोई बात कहने वाला नहीं था। बस्ती के विकास के लिए तमाम तरह की समितियां बनी स्मलडागों ने निक्कर पहन घूम-घूमकर चंदा मांगा। बेस्लमडागों ने उन्हे ऐसे हालात में देखकर बालकनी से जी भर के चिढ़ाया। लेकिन स्लमडागों ने एक साथ नारा लगाकर कहा दुनिया के स्लमडागों एक हो जाओ खोने के लिए तुम्हारे पास कु छ नहीं है और पाने के लिए तुम्हारे पास आस्कर है। यह सुनकर एक बेस्लमडाग ने कहा कि आस्कर आखिर दिया किसने, इस पर स्लमडाग बगले झांकने लगे। बेस्लमडाग यह देखकर मुस्कुरा रहा है। स्लमडागों की सभा में एक नेता टाइप स्लमडाग ने अपने विचार व्यक्त किए कि एक सर्वे में नतीजा निकाला गया है कि मूड खराब हो और स्थितियां प्रतिकूल हों तो व्यक्ति अपने काम पर ज्यादा ध्यान देता है। खाए, पिए, अघाए और सतत आनंद में डुबकी लगाने वाले लोगों की तरक्की रुक गई है। इस भाषण को सुन रहा एक बेस्लमडाग जोर देकर पूछा कि तुम किस नस्ल के स्लमडाग हो। इस पर एक बार फिर सभी स्लमडाग निरुत्तर हो गए।
स्लमडाग ने उछलकर कहा देखो समाजवाद अपनी जड़ें जमा रहा है अब एशिया मूल के लोगों को भी आस्कर मिल रहा है हम जानते हैं इससे बेस्लमडागों को खुजली हो रही है, अरे हो रही है तो होती रहे हम तो दुनिया भर के स्लमडागों को एक करने में जुटे हैं। ये बात सुनकर बेस्लमडाग को जम्हाई आने लगे। उसने बदन तोड़ते हुए कहा ये ख्यालीपुलाव बंद करो ये सब बुद्धिजीवियों के सोचने की चीज है अपना दिमाग इसमें मत खपाओ, औकात में रहो, बहुत कर चुके बकबक, इस पर स्लमडागों ने मोर्चा खोल दिया, बात हाथापाई तक आ गई। फिर एक सुर में सभी बेस्लमडागों ने भूकना शुरू किया, लेकिन स्लमडाग का कोई नेता आगे नहीं आया। अखबार में इसकी चर्चा हुई, चैनलों ने भी इसे कवर किया, बुद्धिजीवियों ने पानी पी पी कर अपनी राय रखी। इसे वैश्विक परिदृश्य में देखा जाने लगा जब तक बिक सकती थी खबर बिकी, फिर सब कुछ शांत।
हफ्तों बाद एक स्लमडाग फिर रोटी की जुगाड़ में बेस्लमडागों की बस्ती में निकला उसने एक दुकान पर मैगजीन के मुख्य पृष्ठ पर डैनी बॉयल की फोटो देख अपने मसीहा की तरह निहारने लगा तभी दुकानदार ने उसे दुरदुरा दिया।
अभिनव उपाध्याय
Thursday, June 4, 2009
तुर्की ब तुर्की - गुहा चरन्ति मनुष:
चुनाव बीत गया। संसद में जाने के बाद सांसद फूले नहीं समा रहे हैं। जो नए हैं वो तौर तरीके सीख रहे हैं जो पुराने हैं वो सिखा रहे हैं। संसद में सीखने-सीखने का और बाहर पीने-पिलाने का दौर दिल खोलकर चल रहा है माने खुशियां उफन रही हैं मन के गुलगुले बुलबुले बन कर फूट रहे हैं। नए नए कपड़ों से लेकर पारंपरिक परिधान मे सज संवरकर लोग आ रहे हैं। जो हर बार जीत रहे थे और इस बार नहीं जीते वह बस टीवी देखकर संतोष कर रहे थे।
बहरहाल सांसद को की एक नई नर्सरी इस बार संसद में आई है पुराने सांसद उन्हे सिखा पढ़ा रहे हैं। कुछ पुराने सांसद भी चाटुकारिता बस अपने को नया कह रहे हैं। लेकिन विपक्ष के अर्ध बूढ़े सांसद ने उनके बयान पर टिप्पणी की कि सांड की सींग काटने पर वो बछड़ा नहीं बन जाता है। विपक्ष के सांसद ने नए सांसदों की क्लास ली और कहा कि देश को कल्चरल क्राइम से बचाओ। सरकार ने संस्कृति की रक्षा की कोई चिंता नहीं है। वादे पर वादे लेकिन सब बेकार सरकार रानीतिक पारदर्शिता के नाम पर पोलिटिकल अत्याचार भी कर रही है। देश को सांस्कृ तिक विमर्श की आवश्यकता है। तभी एक युवा सांसद ने जोर देकर क हा बुढ़ऊ लोगों को ब्रेनवाश की आवश्यकता है।
रिटायर्ड सांसद तिलमिला गए लेकिन शांत भाव का अभिनय करके बोले गवेद में भाषा के सौंदर्य पर अनेक सूक्तियां पाई गई हैं उसमें से एक है, ‘गुहा चरन्ती मनुष: न योषा सभावती विदथि एव सं वाक्ज् अर्थात जसे संभ्रांत पुरुष की स्त्री परदे में रहती है उसी तरह सभा में प्रयुक्त शिष्ट जन की वाणी अर्थ गर्भित और सधी हुई होती है। आप लोगों को ऐसा नहीं बोलना चाहिए। और विकास पर जोर देना जरूरी है। विकास का प्रयास ही हमें शिखर तक ले जाएगा। कभी कभी यह अपवाद हो जाता है जसे मैं।
तभी एक सांसद ने रोष पूर्वक कहा लेकिन मन का मंत्रालय नहीं मिला है तो विकास कैसे हो। आखिर आला कमान को योग्यता के आधार पर विभागों का वितरण करना चाहिए था।
संसद में जाने के बाद वहां किस चीज की ध्यान देने की आवश्कता होती है? एक नए नवेले सांसद के पूछने पर भूूतपूर्व सांसद ने जवाब दिया कुछ खास नहीं बस सब ये देख लेना कि जहां बैठेगें वहां से विपक्षी दल के सांसद कितनी दूर पर बैठते हैं। कुछ सभ्य गालियां जरुर सीख लेना, ट्रेडिशनल गाली तो बिल्कुल छोड़ देना और हां इस बार सुना है कुछ नई महिला सांसद भी आई हैं इसके लिए शायरी की किताब ले जाना मत भूलना।
अभिनव उपाध्याय
बहरहाल सांसद को की एक नई नर्सरी इस बार संसद में आई है पुराने सांसद उन्हे सिखा पढ़ा रहे हैं। कुछ पुराने सांसद भी चाटुकारिता बस अपने को नया कह रहे हैं। लेकिन विपक्ष के अर्ध बूढ़े सांसद ने उनके बयान पर टिप्पणी की कि सांड की सींग काटने पर वो बछड़ा नहीं बन जाता है। विपक्ष के सांसद ने नए सांसदों की क्लास ली और कहा कि देश को कल्चरल क्राइम से बचाओ। सरकार ने संस्कृति की रक्षा की कोई चिंता नहीं है। वादे पर वादे लेकिन सब बेकार सरकार रानीतिक पारदर्शिता के नाम पर पोलिटिकल अत्याचार भी कर रही है। देश को सांस्कृ तिक विमर्श की आवश्यकता है। तभी एक युवा सांसद ने जोर देकर क हा बुढ़ऊ लोगों को ब्रेनवाश की आवश्यकता है।
रिटायर्ड सांसद तिलमिला गए लेकिन शांत भाव का अभिनय करके बोले गवेद में भाषा के सौंदर्य पर अनेक सूक्तियां पाई गई हैं उसमें से एक है, ‘गुहा चरन्ती मनुष: न योषा सभावती विदथि एव सं वाक्ज् अर्थात जसे संभ्रांत पुरुष की स्त्री परदे में रहती है उसी तरह सभा में प्रयुक्त शिष्ट जन की वाणी अर्थ गर्भित और सधी हुई होती है। आप लोगों को ऐसा नहीं बोलना चाहिए। और विकास पर जोर देना जरूरी है। विकास का प्रयास ही हमें शिखर तक ले जाएगा। कभी कभी यह अपवाद हो जाता है जसे मैं।
तभी एक सांसद ने रोष पूर्वक कहा लेकिन मन का मंत्रालय नहीं मिला है तो विकास कैसे हो। आखिर आला कमान को योग्यता के आधार पर विभागों का वितरण करना चाहिए था।
संसद में जाने के बाद वहां किस चीज की ध्यान देने की आवश्कता होती है? एक नए नवेले सांसद के पूछने पर भूूतपूर्व सांसद ने जवाब दिया कुछ खास नहीं बस सब ये देख लेना कि जहां बैठेगें वहां से विपक्षी दल के सांसद कितनी दूर पर बैठते हैं। कुछ सभ्य गालियां जरुर सीख लेना, ट्रेडिशनल गाली तो बिल्कुल छोड़ देना और हां इस बार सुना है कुछ नई महिला सांसद भी आई हैं इसके लिए शायरी की किताब ले जाना मत भूलना।
अभिनव उपाध्याय