Saturday, February 27, 2010

मेरे महबूब के घर रंग है री...

होली आ गई। लेकिन महानगरी सभ्यता में रंग अपनी चमक खो चुके हैं। ताल । मजीरे । ढोल। से नहीं आती आवाज। अगर आ भी जाए। तो। सब अपनी-अपनी तरह से सुनते हैं। अब वक्त है ऐसा । कि लोग करने लगे। रंगों से परहेज। कु छ लोगों को तो इसलिए भी नहीं लगाया जा सकता कि कहीं वह बुरा न मान जाएं। लेकिन हम कभी बेहया थे। जब बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे। बिना इस परवाह के । लोगों को रंग दिया करते थे। रंग लेकर छुपे रहते थे । या चढ़ जाते थे छत पर । और बस एक ही मकसद । रंगना है। आज कई मकसद है। कई रंग है। अबीर है। लेकिन वक्त रू ठा है। इसीलिए अपनों का साथ छूटा है।
आज बहुत से कवि हैं। होली के गीत लिखने वाले फिल्मी लेखक भी। लेकिन कबीर नही है। नजीर (नजीर अकबराबादी)नहीं है। नहीं है खुसरो । नहीं है विद्यापति। जिनके पद हमें ऐसे भिगो देते थे। कि बस रंग छुड़ाना मुश्किल।
आज सूफी कवि अमीर खुसरो के कुछ पद दे रहा हूं और एक अज्ञात कवि के पद भी जिसमें होली के साथ दर्शन का भी भाव जुड़ा है। यह मेरी तरफ से होली का मुबारकबाद का तरीका। उम्मीद है पसंद आएगा।




आज रंग है ऐ माँ रंग है री, मेरे महबूब के घर रंग है री।
अरे अल्लाह तू है हर, मेरे महबूब के घर रंग है री।

मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया, निजामुद्दीन औलिया-अलाउद्दीन औलिया।
अलाउद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया, कुताबुद्दीन औलिया।
कुताबुद्दीन औलिया मोइनुद्दीन औलिया, मुइनुद्दीन औलिया मुहैय्योद्दीन औलिया।
आ मुहैय्योदीन औलिया, मुहैय्योदीन औलिया। वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।

अरे ऐ री सखी री, वो तो जहाँ देखो मोरो (बर) संग है री।
मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया, आहे, आहे आहे वा।
मुँह माँगे बर संग है री, वो तो मुँह माँगे बर संग है री।

निजामुद्दीन औलिया जग उजियारो, जग उजियारो जगत उजियारो।
वो तो मुँह माँगे बर संग है री। मैं पीर पायो निजामुद्दीन औलिया।
गंज शकर मोरे संग है री। मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखयो सखी री।
मैं तो ऐसी रंग। देस-बदेस में ढूढ़ फिरी हूँ, देस-बदेस में।
आहे, आहे आहे वा, ऐ गोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।

सजन मिलावरा इस आँगन मा।
सजन, सजन तन सजन मिलावरा। इस आँगन में उस आँगन में।
अरे इस आँगन में वो तो, उस आँगन में।
अरे वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री। आज रंग है ए माँ रंग है री।

ऐ तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन। मैं तो तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री। मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी सखी री।
ऐ महबूबे इलाही मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी। देस विदेश में ढूँढ़ फिरी हूँ।
आज रंग है ऐ माँ रंग है ही। मेरे महबूब के घर रंग है री।
2-
हजरत ख्वाजा संग खेलिए धमाल, बाइस ख्वाजा मिल बन बन आयो
तामें हजरत रसूल साहब जमाल। हजरत ख्वाजा संग..।
अरब यार तेरो (तोरी) बसंत मनायो, सदा रखिए लाल गुलाल।
हजरत ख्वाजा संग खेलिए धमाल।

3-दैया री मोहे भिजोया री शाह निजाम के रंग में।
कपरे रंगने से कुछ न होवत है
या रंग में मैंने तन को डुबोया री
पिया रंग मैंने तन को डुबोया
जाहि के रंग से शोख रंग सनगी
खूब ही मल मल के धोया री।
पीर निजाम के रंग में भिजोया री।

4-तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम,
तोरी सूरत के बलिहारी ।
सब सखियन में चुनर मेरी मैली,
देख हसें नर नारी, निजाम...
अबके बहार चुनर मोरी रंग दे,
पिया रखले लाज हमारी, निजाम....
सदका बाबा गंज शकर का,
रख ले लाज हमारी, निजाम...
कुतब, फरीद मिल आए बराती,
खुसरो राजदुलारी, निजाम...
कौउ सास कोउ ननद से झगड़े,
हमको आस तिहारी, निजाम,
तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम...

agyat-
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।
बाके कमर में बंसी लटक रही
और मोर मुकुटिया चमक रही
संग लायो ढेर गुलाल,
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।
इक हाथ पकड़ लई पिचकारी
सूरत कर लै पियरी कारी
इक हाथ में अबीर गुलाल
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।
भर भर मारैगो रंग पिचकारी
चून कारैगो अगिया कारी
गोरे गालन मलैगो गुलाल
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।
यह पल आई मोहन टोरी
और घेर लई राधा गोरी
होरी खेलै करैं छेड़ छाड़
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।

Wednesday, February 24, 2010

सुरों की बारिश में भीगे श्रोता



मैं कई दिनों से कोशिश कर रहा था कि गिरिजा देवी की कजरी या ठुमरी सुनने जाऊं। जब वह दिल्ली में होती तो मुङो कोई न कोई काम आ ही पड़ता। सोमवार को अचानक पता चला कि गिरिजा देवी शहर में हैं दिल्ली विश्वविद्यालय में स्पिक मैके ने उनका कार्यक्रम आयोजित किया है। बस क्या था मुखर्जी नगर में रहने वाले रसिक मित्र सुशील जी को यह सूचना दी और जसा कि मुङो उम्मीद थी वह बिना शर्त तैयार हो गए। हालांकि मेरी तबीयत कुछ नासाज थी और मानसिक रूप से भी कुछ परेशानी महसूस कर रहा था। बहरहाल निर्धारित समय के भीतर सुशील पहुंच गए थे हमने आयोजन स्थल भी ढूंढ लिया था। हम समय से लगभग 1.15 मिनट पहले आ गए थे लेकिन इंतजार खल नहीं रहा था क्योंकि सभागार में गिरिजा देवी का ही स्वर आडियो माध्यम से गूंज रहा था। इंतजार का पल खत्म हुआ और मंच पर गिरिजा देवी उपस्थित हुई। अंदाज वही ठेठ बनारसी, स्वर भी वही। हम मंच पर 81 वर्षीय जवान महिला को देख रहे थे और उनमें स्थित ऊर्जा हमें आकर्षित कर रही थी। पात्र परिचय के बाद कार्यक्रम शुरू हुआ।
उन्होने जब राग यमन में बिलंबित और ध्रुत स्वर में तुम तो करत बरजोरी, रे लला तुम से खेलत होरी। सुनाना शुरु किया तो हाल में बैठे श्रोता सुरों के रंग से सराबोर हो गए। उनके साथ संगत कर रहे तबला पर जयशंकर की अंगुलिया तराने के साथ संगीत के आनंद को चरम पर पहुंचा रही थी। संगीत की तकनीकियों से अंजान श्रोता भी एक-एक थाप को महसूस कर रहा था। देशी विदेशी श्रोताओं से भरे हाल में लोग शांत चित्त होकर संगीत का आनंद ले रहे थे। गिरिजा देवी ने बीच-बीच में युवाओं को भारतीय संगीत और सभ्यता के करीब जाने की बात कही और कहा कि भारत इससे और भी आगे बढ़ सकता है। उन्होनें इस ओर भी संकेत किया कि किस तरह संगीत के लिए उन्होने संघर्ष किया। और उनके मन की ताकत और साहस से वह आज इस मुकाम पर हैं। कार्यक्रम की एक प्रस्तुति के बाद गिरिजा देवी अगर सुरों की बारिश से श्रोता खुद ब खुद खिंचे चले आए।
आमतौर पर जहां बड़े कलाकार ऐसे कार्यक्रमों में निर्धारित समय के बाद प्रस्तुति नहीं देते लेकिन वहीं गिरिजा देवी ने श्रोताओं से पूछा और संचालक के अनुरोध पर एक कजरी सुनाई इस हिदायत के साथ कि अगर बारिश हुई तो उसकी जिम्मेदारी उनकी नहीं होगी। बारिश हुई भी लेकिन सुबह। लेकिन इस बीच जो सुरों की बारिश हुई उससे मन सराबोर हो गया। पूर्वी उत्तर प्रदेश की लोक धुन पर आधारित होरी सुनाकर दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया। तबले की थाप, सारंगी की तान और हारमोनियम की स्वरलहरियों के बीच गिरिजा देवी का स्वर पूरे माहौल को सुरमयी बना रहा था। अंत में दर्शकों की मांग पर गिरिजा देवी ने सिया संग झूले बगिया राम ललना सुनाया।
इस कार्यक्रम में तबले पर जयशंकर, हारमोनियम पर उमर खां, सारंगी पर मुराद अहमद खां और तानपूरे पर मौसमी ने उनका भरपूर सहयोग दिया।
चित्र- साभार गूगल

Thursday, February 18, 2010

हिंदी के साथ अंग्रेजी का इस्तेमाल पराजय सूचक

आठवें प्रवासी अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव में शिरकत करने आये विदेशी विद्वानों का मानना है कि हिंदी के साथ अंग्रेजी का इस्तेमाल पराजय सूचक है और इसे रोकना बेहद जरूरी है। ब्रिटेन से आए नरेश भारतीय ने कहा कि हिंदी में अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल गलत है, जिसे रोकना चाहिए और दोनों भाषाओं को अलग-अलग रखना जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारतीय धन कमाने के लिए अंग्रजी की ओर जा रहे हैं। वैश्विक स्तर पर हिंदी को स्थापित करने के लिए संकल्पित रूप से कार्य किया जाना चाहिए।




जर्मनी के हैम्बर्ग विश्वविद्यालय में हिंदी की प्राध्यापिका प्रो. तात्याना ओरांस्काइया ने कहा कि जर्मनी में हिंदी के प्रति लोगों में रुझान भारतीय संस्कृति को जानने के लिए बढ़ा है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि भारत से जाने वाले मंत्री एवं अन्य राजनीतिज्ञ अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, जो उपनिवशकाल की भाषा है। हिनुस्तानियों को अपनी राष्ट्रीय भाषा के प्रति प्रेम विकसित करना चाहिए।



हिन्दी में सीमाओं का अतिक्रमण जिस तरह से हो रहा है, उस पर चर्चा करना आवश्यक है।
इस्राइल के तेलअबीब विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक प्रो. गेनादी श्लोम्पेर ने कहा कि हिंदी साहित्य की किताबों को छोड़ दिया जाए तो हिंदी में उपलब्ध अधिकतर किताबें अनुवाद की हुई होती हैं, जिसके कारण यह अनुवाद की भाषा बन गयी है। हिंदी को व्यवसाय की भाषा बनाने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी में मूल रूप से काम किया जाना चाहिए और हिंदी को बाजार की भाषा के रूप में मान्यता लिये बिना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका बेहतर तरीके से प्रचार काफी मुश्किल काम होगा।



रूस निवासी हिंदी उपन्यास पर शोध कर रहीं तात्याना दुब्यांस्काया ने बताया कि भारतीय संस्कृति के प्रति विदेशियों की दिलचस्पी ने उन्हें हिंदी के प्रति आकर्षित किया है। उन्होंने बताया कि पिछले 10-15 साल में रूस में आए परिवर्तनों के कारण अधिक छात्र हिंदी की तरफ आकर्षित नहीं होते हैं और रूस में भारतीय बाजार की उपस्थिति न के बराबर है। रूस के लोगों को भारत के धर्म, नृत्य और संगीत में विशेष दिलचस्पी है।

Saturday, February 13, 2010

दिल तो बच्चा है...



बसंत में यदि घोंघाबसंत भी संत जसा व्यवहार करें तो थोड़ा आश्चर्य जरूर होता है। घुरहू पुत्र निरहू के व्यवहार में आए इस बदलाव से सभी परेशान थे। हालांकि गांव के पंडित सुखनंदन ने उसे मकर संक्रांति पर अतिशीतल जल से नहला कर उसके पिता को यह विश्वास दिला दिया था कि अब वह प्रेम ज्वर से पीड़ित नहीं होगा। लेकिन बुरा हो उस रेडियो प्रोगाम का जिसमें लव गुरु मध्य रात्रि को विरह में जल रहे प्रेम-पियासो को नायिका को रिझाने का टिप्स देता है। निरहू एक दिन शहर क्या गया उसके मित्र चंपू ने उसे रेडियो पर प्रेम गीत युक्त यह प्रोग्राम सुना दिया फि र क्या था बासमति के प्रति उसके मन की उत्कं ठा हिलोंरे मारने लगी।
पिछले साल भी फरवरी में लाख मनाने पर भी वह नहीं माना और कालेज के बाहर पुष्पराज गुलाब का गुलदस्ता लेकर खड़ा रहा। हां मास्टर मनसुख ने उसकी इतनी धुलाई की कि निरहू का तनसुख छिन गया। इसके बाद जुगानी चाचा को इससे एक कहानी मिल गई उन्होने लोगों से यह कहना शुरू कर दिया कि जबसे निरहू ने हिन्दी के मास्टर पियारेलाल की क्लास में कबीर का दोहा, प्रेम गली अति सांकरी जामे दो न समाय, सुना है तब से वह बासमति के दूसरे प्रेमी की तलाश कर रहा है। निरहू ने किसी से सुना कि बासमति को सोने की चेन से बड़ा लगाव है फिर क्या था घोर मंदी में भी उसने प्यार की गाड़ी पटरी पर लाने के लिए निरंतर बिना तेल पानी के उसे दौड़ाता रहा। लेकिन बात नहीं बनी। उसे यह राहत की बात लगी कि इस बार रामसेना या रावण सेना के लोग प्रेमी युगलों को परेशान नहीं करेंगे। शिव या पार्वती या हनुमान सेना जसे लोग भी खान के पीछे पड़े हैं उनका मन फरवरी के पवित्र प्रेम उत्सव की तरफ नहीं गया है।
निरहू का यह दुख सहीराम को देखा नहीं गया और उन्होंने उसे परामर्श दिया कि यह प्रेम टाइप आवेग निरंतन मन को विचलित करने वाला है। अब उसे दाल-रोटी की चिंता करनी चाहिए। लेकिन चंचल चितवन चंचला के प्रति उसका लगाव मंहगाई की तरह बढ़ता ही जा रहा था। और यही कारण था कि वह बसंत में भी संत बना घूम रहा था और इसका असर फागुन के महीने में भी बरकरार रहा। उसका शहरी मित्र उसे प्रेम दिवस से पूर्व के दिवसों की जानकारी निरंतर दे रहा था। वह बता रहा था कि फ्रेंड्स डे से लेकर रोज और प्रपोज टाइप डे जसे कठिन रास्तों से गुजरकर व्यक्ति वेलेंटाइन डे की मंजिल पर पहुंचता है। यह उतना ही कठिन है जसे वित्त मंत्री का संसद में मंहगाई के मुद्दे पर विपक्ष के प्रश्नों से गुजरना लेकिन विचलित होने की जरूरत नहीं। अच्छे बच्चे इस भंवर को पार कर जाते हैं। अपने पुत्र की पीड़ा से घुरहू परेशान हैं। लव गुरु टिप्स दे रहे हैं दिल तो बच्चा है .....अभी कच्चा है ..।

चित्र- साभार गूगल

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...