Monday, December 1, 2008

पप्पू वोट नहीं देता

पप्पू जीनियस भी है और समझदार भी, यही नहीं वह विभिन्न गुणों से सम्पन्न है। बड़ी मेहनत के बाद पप्पू पास भी हो गया लेकिन परेशानी यह है कि पप्पू वोट नहीं देता। यह रहस्य सबके मन में बना हुआ है कि इस बार पप्पू की मति शायद सुधर जाए और वह इस संवैधानिक अधिकार का लाभ ले ले और किसी प्रत्याशी पर अपनी कृपा दृष्टि बरसा दे, लेकिन पप्पू है कि टस से मस नहीं हुआ। टीवी, रेडियो, अखबार एक तरफ और पप्पू एक तरफ।
ऐसा नहीं कि चुनाव के पहले पप्पू को मनाने की कोशिश नहीं हुई। बड़ा वाला चाकलेट, बढ़िया कपड़ा, जूता यही नहीं प्रत्याशी के साथ उसे हाथी पर बैठाकर घुमाया गया कि शायद ऊंचाई देखकर उसका मन बदल जाए लेकिन पप्पू तो पप्पू ही है। एक दम अड़ियल सांड़ जसा चाहे कुछ भी कहो नतीजा वही...।
सारी कोशिश बेकार, चुनाव से पहले दिन भी पप्पू मजे से टीवी पर मुम्बई में धमाकों की आवाज सुन रहा था। बाबा नारंगी को पप्पू पर कुछ शक हुआ कहीं कोई भूत-प्रेत का चक्कर तो नहीं है, लेकिन ओझा बाबा ने सांप्रदायिकता के मंत्र से ऐसा झाड़ा कि पप्पू का पारा और गरम। नारंगी फिर परेशान कि अब क्या करें, उसे डाक्टर विकराल जी के पास ले जाया गया उन्होंने भी मालेगांव का आला लगाकर उसकी नब्ज टटोली लेकिन पप्पू एक दम सुन्न। यह किसी के समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर पप्पू को क्या हो गया है।
एक आखिरी उपाय बचा था कि पड़ोस के बुद्धिमान प्रोफेसर बुद्धिसागर के पास ले जाया जाए तो शायद कुछ बात बन जाए। यह भी आजमाया गया। पप्पू सिर झुकाए खड़ा हो गया। लेकिन पप्पू के पहुंचने का समय गलत था क्योंकि उस समय प्रोफेसर साहब फासीवादी पकौड़े के साथ समाजवादी चाय पी रहे थे। उन्होंने पप्पू को पुचकारा, सिर पर हाथ फेरा बोले ऐसा नहीं करते बेटा वोट देते हैं, देख नहीं रहे हो सभ्यताएं टकरा रही हैं, दुनिया तेजी से बदल रही है। पूंजी प्रवाह असंतुलित है अपने महत्व को समझो। यह लोकतंत्र का महापर्व है, नाचो, गाओ, पटाखे छोड़ो खुशियां मनाओ। इस तरह मुंह नहीं लटकाते लो पकौड़े चख लो। लेकिन पप्पू तो एकदम पप्पू था, भैंस के आगे बीन बजाए भैंस बैठ पगुराय.
अब मामला क्रिटिकल होता जा रहा था। पप्पू घूम-फिर कर फिर टीवी से चिपक गया। खबर दिलचस्प थी, ‘आडवानी नहीं गए मनमोहन के साथ मुम्बई,ज् विज्ञापन था ‘आतंक आखिर कब तकज्, फिर चंचला ऐंकर चिल्ला रही थी, ‘आतंक के साए में मुम्बईज्, विज्ञापन फिर आ गया ‘विकास को वोट दें। लेकिन पप्पू का वोट न देना राज ही रहा।
अभिनव उपाध्याय

एक ही थैले के...

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