Saturday, January 23, 2010

मुश्किल है सखाराम बाइंडर से उपजे सवालों के जवाब



मुङो अपने संस्थान की तरफ से लगातार 12वां भारत रंग महोत्सव की रिपोर्टिग करने के लिए कहा गया था। जिसमें कुछ पसंदीदा नाटक देखने को मिले। इसमें एक नाटक सखाराम बाइंडर भी था जो अपने समय का विवादित नाटक था। इसमें सखाराम का किरदार उस भारतीय मानस की मनोव्यथा कहता है जो समाज की परवाह किए बगैर एक उन्मुक्तता चाहता है।
वह शराब पीता है, अय्याशी करता है, अश्लील गाली और बीड़ी हमेशा उसके मुंह में रहती है। पखावज मन से बजाता है, लेकिन वह भात नहीं खाता। गांव के और लोगों की तरह झूठ नहीं बोलता। सारे कुकर्म खुलेआम करना पसंद करता है। उसका जुमला है ‘झूठ की सजा काला पानी और पाप भी करो तो सीना ठोक करज्। यही नहीं, उसका मानना है कि वह ब्राह्मण के घर चमार पैदा हुआ है। उसे यह कहने में कोई डर नहीं कि वह अपने बाप से भी नहीं डरता तो भगवान क्या चीज है। यही नहीं, वह धर्मनिरपेक्ष भी है। दैहिक आवश्यकता पर उसकी बेबाक टिप्पणी है कि जिसने यह देह बनाई, वह इसकी खुजली भी जानता है।
नाटक अपने प्रारंभ से ही दर्शकों के लिए हास्य के साथ एक कौतूहल लेकर प्रस्तुत होता है कि नाटक का मुख्य पात्र सखाराम नायक के रूप में है कि इससे इतर भी इसका कोई चरित्र है। एक तरफ तो वह स्त्री मुक्ति की बात करता है लेकिन वहीं वह अपनी पत्नियों के प्रति काफी कठोर है। अंतत: नाटक की परिणति उसके हाथों उसकी सातवीं पत्नी की हत्या के रूप में होती है। लेकिन नाटक वहीं खत्म नहीं होता नाटक अनेकों ऐसे सवाल छोड़ जाता है जो न जाने कितनें नाटकों की पटकथा बनते हैं।
नाटक की शुरुआत ही सखाराम की छठीं औरत लक्ष्मी के आगमन के साथ होती है, जो किसी की परित्यक्ता है। वह उसे घर में रहने, कम बोलने, बाहरी लोगों से न बोलने और सारा काम बखूबी करने की सलाह देता है लेकिन साथ में यह हिदायत भी कि वह जब चाहे उसे छोड़ कर जा सकती है अपनी जरुरत का सामान भी ले जा सकती है। उसे विदा करते वक्त वह किराया देना नहीं चूकता। एक साल रहने के बाद दोनों एक दूसरे से ऊब जाते हैं और लक्ष्मी अपने भतीजे के घर चली जाती है। सखाराम अब एक हवलदार की बीवी चंपा को लाता है जो हवलदार से ऊब चुकी होती है। वह चरित्रहीन है और सखाराम की आज्ञा बिल्कुल नहीं मानती। अंतत: सखाराम की पत्नी लक्ष्मी को उसका भतीजा चोरी के आरोप में निकाल देता है और फिर एक बार सखाराम के न चाहने पर भी उसकी पत्नी चंपा लक्ष्मी को अपने यहां नौकरानी के रूप में रख लेती है, लेकिन एक आपसी झगड़े में लक्ष्मी सखाराम को चंपा के चरित्र के बारे में बता देती है और वह उसकी हत्या कर देता है। इसी के साथ नाटक खत्म हो जाता है लेकिन वह बहुत से ऐसे सवाल छोड़ जाता है, जिसका जवाब तथाकथित सभ्य समाज के लिए आसान नहीं है।
इसमें परित्यक्ता पत्नी लक्ष्मी का चींटे से बात करना, सखाराम बाइंडर द्वारा चंपा को घर से निकाल देने के नाम पर शराब पीकर उसका शरीर सौंप देना और सखाराम द्वारा सम्भ्रांत कहे जाने वाले लोगों के ऊपर कटाक्ष दर्शकों को झकझोर देते हैं। ‘सखाराम बाइंडरज् नाटक जीवन की नग्न वास्तविकता, दर्द और सामाजिक पुरुषवादी मानसिकता को चुनौती देता है। अश्लील संवाद और भरपूर गाली को लेकर दर्शकों को थोड़ी असुविधा हो सकती है, लेकिन कलाकारों का अभिनय सराहनीय है। हिमाचल सांस्कृतिक शोध फोरम एंड थिएटर रेपर्टरी के कलाकारों द्वारा मंचित यह नाटक मूलत: विजय तेंदुलकर द्वारा लिखा गया है, लेकिन नाटक का निर्देशन सखाराम की भूमिका निभा रहे सुरेन्द्र शर्मा ने की।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...