Friday, October 16, 2009

दीपावली


कोने-कोने पहुंचे प्रकाश
दूर तिमिर हो, छाए उजास
मन में जागे ज्ञान की प्यास
इस दीपावली यही है आस।

बच्चों का बचपन हो जगमग
मिले-जुले सब हिल-मिल सज-धज
आएं सबको खुशियां रास
इस दीपावली यही है आस।

पक्षियों के लिए मुसीबत की रात बनकर आती दीवाली




दीपों का पर्व दीवाली। हरेक वर्ष यह लोगों के लिए खुशियों की सौगात लेकर आती है। लोग इसे धूमधाम से मनाने के लिए प्रतीक्षारत रहते हैं। लेकिन जहां एक ओर लोग पटाखे जलाकर आनंद लेते हैं वहीं पूरी रात इसके शोर से पशु-पक्षियों की नींद हराम हो जाती है। नवजात पक्षियों का तो मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और हृदयाघात जसी परेशानी आने से मृत्यु तक भी आ जाती है। इसलिए दीवाली की रात पक्षियों के लिए कयामत की रात बनकर आती है। इस संबंध में दिल्ली विश्वविद्यालय के वन्य जीव विशेषज्ञ डा. एम. शाह अहमद का कहना है कि साल के दो दिनों का यह त्योहार पक्षियों के लिए नई बात जसी है। क्योंकि बहुत सी पक्षियां इस समय अंडे देती हैं और उनके बच्चे पटाखों की तेज आवाज सहन नहीं कर पाते। उन्हें पता भी नहीं चलता कि आखिर ये धमाके कहां हो रहे हैं। इन धमाकों से पक्षियों के बच्चों की हृदयगति रुक जाती है या वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं। ऐसा भी देखा गया है कि कुछ तो उस इलाके को छोड़कर दूर चले जाते हैं और फिर नहीं आ पाते। कुछ ऐसा ही हाल कुत्तों की नई प्रजाति के साथ भी होता है। पामेलियन कुत्ते तो पटाखों के इन धमाकों से कांप तक जाते हैं और कोना पकड़कर दुबक कर बैठ जाते हैं। एक अन्य वन्य जीव विशेषज्ञ का कहना है कि अफगानिस्तान में तो युद्ध के बाद पशु-पक्षियों की क्या स्थिति हो जाती है इस पर गहन शोध और अध्ययन हो चुके हैं। लेकिन भारत में ऐसा नहीं हुआ है। दीपावली के बाद कई जगहों पर पक्षियों के शव मिलते हैं लेकिन लोग इसे सामान्य रूप से लेते हैं। इसलिए हमें इस अवसर पर पशु-पक्षियों के साथ सहानुभूति दिखाने की जरूरत है।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...