Saturday, March 13, 2010

भारतीय संस्कृति की खुशबु को बिखेरने की चाहत


?कभी-कभी जब हम कुछ मन से कर रहे होते हैं और अचानक फोन आ जाए तो वह क्षण हमारे लिए बहुत सुखद नहीं होता। कुछ ऐसा ही हुआ जब मेरे मोबाइल की घंटी बजी और मैं एक महत्वपूर्ण खबर लिख रहा था। लेकिन नंबर अनजान था। उठाया तो पता चला कि फोन कीव से है। एक बारगी तो आश्चर्य भी हुआ कि मुङो कीव में कौन जानता है। लेकिन जानने वाले ने ऐसा परिचय बनाया कि एक औपचारिक परिचय अनौपचारिक परिचय में बदल गया। अब मेरे मित्र संजय राजहंस ने मुङो भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद में गान्ना स्मिर्नोआ के भरत नाट्यम की प्रस्तुति की सूचना दी। मुङो यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मैं उत्तर भारतीय नृत्यों और कलाकारों की अपेक्षा भरतनाट्य या उनके कलाकारों को कम जानता हूं और गान्ना तो मेरे लिए बिल्किुल ही नया नाम था। लेकिन मुङो 5 मार्च का इंतजार था क्योंकि उसी दिन यह प्रस्तुति होने वाली थी। मैं अपनी व्यस्तता के बावजूद कार्यक्रम में पहुंचा। अन्य अखबारों में मैंने पहले ही उनकी प्रस्तुति की सूचना पढ़ ली थी।
आईसीसीआर में जब मेरी उनसे बात हुई तो उनकी बात में दृढ़ता थी उन्होने कहा कि मेरी तमन्ना है कि मैं भारतीय संस्कृति की खुशबू को यूक्रेन सहित विश्व के अनेक देशों में फैलाऊं। यूक्रे न के लोग भारत को यहां की फिल्म इंडस्ट्री बॉलीवुड के कारण जानते हैं। मेरी कोशिश है कि भरतनाट्यम को मैं वहां प्रचारित-प्रसारित करूं। उन्हें भारतीय संस्कृति से खासा लगाव है।
निश्चित रूप से यह धारणा किसी भारतीय की लगती है। मुङो यह जानकर खुशी हुई। भरतनाट्यम की नृत्यांगना गान्ना स्मिर्नोआ यूक्रेन के कीव में श्रेवचनको विवि में अध्यापिका भी हैं।


उन्होंने लगभग एक घंटे की प्रस्तुति में उन्होंने दर्शकों को मंत्र-मुग्ध कर दिया। और मैं तो सहसा विश्वास नहीं कर पा रहा था कि गान्ना को संस्कृति के मंत्रों, ताल, गति, हाव-भाव की अच्छी जानकारी है। उन्होंने भारत में विधिवत शिक्षा ली हैं और भरतनाट्यम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता नृत्य में भरपूर दिख रही थी।
सर्वप्रथम उन्होंने राग केदारम में आदि ताल में पुष्पांजलि प्रस्तुति की। इसके बाद देवी तोड़ी मंगलम की प्रस्तुति हुई, जो राग मल्लिका और ताल मल्लिका में थी। इसके बाद वरणम की प्रस्तुति ने तो लोगों को बांध दिया। इसमें विशेष रूप से नृत्य और अभिनय का मिश्रण होता है, लेकिन अभिनय की प्रधानता होती है। इसे राग नट कुरंजी और ताल आदि में प्रस्तुत किया गया। मूलत: इसमें भक्ति श्रृंगार होता है। कार्यक्रम का समापन उन्होंने कृष्णलीला का प्रदर्शन किया। एक बातचीत में उन्होने बताया कि वह कीव में ‘नक्षत्रज् नामक एक नृत्य सिखाने का स्कूल भी चलाती हैं और विश्वविद्यालय में इंडियन ओरियंटल डांस पढ़ाती हैं। इसके अलावा वो भारतीय शास्त्रीय नृत्य में शोधरत भी हैं। वह भारतीय नृत्यशास्त्र पर एक पुस्तक भी लिख रही हैं जिसका प्रकाशन जल्द ही होने वाला है।


कार्यक्रम में इनकी प्रस्तुति में वीणा पर श्यामलतानकर ने, नटुवंगम पर इनकी गुरु जयलक्ष्मी ईश्वर ने, मृंदग पर आर केशव तथा स्वर सुधारघुरमन ने दिया था। दिलचस्प यह है कि गान्ना भारतीय मूल के कीव में प्रोफेसर संजय राजहंस की पत्नी हैं, जिन्होंने भारत में शास्त्रीय नृत्य की विधिवत शिक्षा ली है। संजय अब हमारे मित्र हैं और कीव में अंतर्राष्ट्रीय संबंध के प्रोफेसर हैं। उनके मन में यह भारतीय मानस का संकोच भी था शायद बातचीत में उन्होने कभी व्यक्त नहीं होने दिया कि गान्ना उनकी पत्नी हैं यह बात मुङो काफी बाद में पता चली। संजय कीव में होने पर भी उतने ही भारतीय है जितना एक दिल्ली में रहने वाला। संजय जी गान्ना की प्रस्तुति के लिए आप भी बधाई के पात्र हैं। साथ ही वह प्रवासी भारतीय भी जो भारतीय संस्कृति को विदेश में रहने के बावजूद भी न केवल महसूस करते हैं बल्कि उसके प्रचार-प्रसार के लिए प्रयासरत हैं।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...