Thursday, February 16, 2012

अलविदा शहरयार....

मैं अमिताभ का प्रशंसक हूं। वह बड़े कलाकार हैं। उनके हाथ से ज्ञानपीठ सम्मान लेने से मुङो खुशी होगी। जब ज्ञानपीठ सम्मान की घोषणा हुई तो मैने उनसे फोन पर बात की तब शायद वह अलीगढ़ थे। डॉ. अख्लाक मोहम्म खान ‘शहरयार उर्दू के चौथे साहित्यकार हैं, जिन्हें देश में साहित्य सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया गया है। उन्हें यह पुरस्कार उर्दू साहित्य में उनके योगान के लिए दिया गया। लेकिन आमजन तो शहरयार को उनके लिखे गीत से जानता था। फिल्मों से उनको गहरा लगाव तो नहीं था लेकिन विषय पर वह जरूर ध्यान देते थे उन्होने क भी फिल्मों में गीत लेखन को गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि वह अपने लेखन से कभी समझौता नहीं करना चाहते थे। उन्होने एक बातचीत में तल्खी के साथ कहा था कि, अब उस तरह की फिल्में कहां बनती हैं। देखिए मैं कभी मुम्बई काम की तलाश में गया ही नहीं। मुङो कुछ फिल्मों के लिए बुलाया गया तो मैं गया। वो खास फिल्में थी, उसमें कहानी थी, उन फिल्मों का एक खास मकसद था। जाहिर है गाने पसंद किए गए। लेकिन आजकल की फिल्मों में कहानी होती ही नहीं है। एक ही तरह की मोहब्बत है जो हर फिल्म में हो रही है। लब्ज भी समझ में नहीं आते। बस धुनें हैं और लब्ज उनमें लिपटे रहते हैं। लेकिन उन्हे अमिताभ और रेखा की फिल्में पसंद थी। पुरस्कारों की घोषणा के बाद उन्होंने कहा कि वह आज भी अमिताभ की फिल्में देखते हैं। अमिताभ जिस ऊर्जा से काम करते हैं वह काबिले तारीफ है।

शहरयार ने गमन (1978), उमरा जान (1981) और अंजुमन (1986) के गीत लिखा है। उमराव जान के अलावा कोई और फिल्म तो विशेष नहीं चली लेकिन फिल्मों में लिखे इनके गाने आज तक उसी ललक से सुने जाते हैं। राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान साहित्य अकादेमी में साहित्य परिचर्चा के लिए आए थे मैं बस तफरी के मूड में साहित्य अकादेमी जाता था लेकिन टकरा गए, सो वहीं कमरे में बैठ के कुछ देर बातें कर ली और उन्होने मुङो खुशी खुशी समय भी दिया। मेरा सवाल भाषाओं की चिंता पर था मैने पूछा था कि, उर्दू को बढ़ाा देने के लिए सरकारी प्रयास जारी है? लेकिन क्या लगता है आपको उर्दू कितनी तरक्की कर रही है? और उन्होने बेबाकी से कहा, बहुत तरक्की कर रही है। उर्दू से मोहब्बत करनेोले और पढ़ने-लिखनेोले ऐसा कर कर रहे हैं। उर्दू को ो तमाम सुधिा हासिल है जो किसी भी जुबान को होनी चाहिए। सिलि सर्सि में यह एक षिय भी है। कुछ प्रदेशों की बोली में भी यह शामिल है। अकादमी भी है। दिल्ली और बिहार में द्वितीय भाषा है कश्मीर में पहली भाषा है। मौलाना आजाद उर्दू युनिसिर्टी है। दूरदर्शन का चैनल भी है। सरकार तो पैसा ही दे सकती है यह हिन्दी के साथ भी हो रहा है। हिन्दुस्तान में प्रॉसपेरिटी का मतलब यह हो गया है कि हम अपने कल्चर से दूर हो जाएं। अब मैनेजमेंट और बिजनेस की जो संस्कृति आ गई है उसमें हम अपनी भाषा को न जानने में फक्र महसूस करते हैं। उर्दू, हिन्दी अब मातृभाषा नहीं बल्कि मुंहबोली मां हो गई है। मामला यह है कि जब हम मकान से फ्लैट में आते हैें तो बदल जाते हैं। क्षेत्नीय जुबान में सब अपनी भाषा जानते हैं लेकिन हिन्दी उर्दू में ऐसा है जो जानते हैं वो भी शर्मिदगी महसूस करते हैं। अब सवाल हिन्दी को लेकर था कि, हिन्दी उर्दू में बहुत लिखा जा रहा है लेकिन पाठक कितने हैं? उन्होने कहा जितने पाठक पहले थे उतने पाठक अब भी हैं। पाठक कम हो रहे है, ये सब बहुत से धोखे हैं। न्यूज चैनल के आने के बाद कहा जाता था कि अखबार खत्म हो जाएगे लेकिन यह और बढ़ा। किसी ने किसी को रिप्लेस नहीं किया ह। धोखा हो रहा है कि ऐसा हो जाएगा। जिसका महत् है ह अब भी अपनी जगह कायम है। किताबें छप रही हैं, बिक रही हैं इसमें कोई मायूसी की बात नहीं है।
आपने भारत से बाहर के देशों में भी यात्नाएं की हैं हां के साहित्य को किस तरह से देखते है?
उन्होन बताया मानीय समस्या सबके यहां एक जैसी है। उनकी परंपरा, उनकी प्राथमिकता, उनकी संस्कृति अलग है और यह हमारे यहां से भिन्न है। तो उसका प्रभा है उन पर।
मैने पूछा ऐसे शायरों के बारे में क्या कहेंगे जो मंचो पर भी दिख रहे हैं और फिल्मों में भी लिख रहे हैं, मसलन गुलजार और जोद अख्तर? उन्होने बताया ये फिल्मों में पहले आए, मंच से इनका कोई लेना देना नहीं था। फिल्मों की जह से मंच पर बुलाए जाते हैं। शायर की हैसियत से उन्होने अपने को कभी परिचित नहीं कराया। दोनों की शायरी पर किताबें हैं लेकिन यह लेखक फिल्मों और किताबों में अलग अलग है। अंत में मैने देश के हालात के बारे में पूछा कि देश के तर्मान हालात के बारे में आप क्या कहना चाहेगें? और उन्होने उतनी ही संजीदगी से उत्तर दिया,हमें अपनी जुबान, अपने मजहब, हिन्दुस्तान से मोहब्बत करने का पूरा हक है। लेकिन इस मोहब्बत से हिन्दुस्तान में झगड़ा नहीं पैदा होना चाहिए। हिन्दुस्तान साथ में रहना चाहिए। जिससे हिन्दुस्तान में टकरा हो ऐसी मोहब्बत से बचना चाहिए। मैं कहना चाहूंगा कि, यही एक हम है, जो औरों को जीने की हसरत है। कहीं पर है कोई ऐसा, जिसे मेरी जरूरत है।
बातचीत खत्म हुई और एक आत्मीय मुस्कान से साथ हमने विदा ली। जब शहरयार के इंतकाल की खबर सुनी तो वही सब बातें एक बार फिर आंखों के सामने आने लगी और मुंह से अनायास निकला अलविदा।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...