Sunday, November 20, 2011

देश की समस्याओं पर नये ढंग से सोचना होगा : अग्निवेश


सामाजिक आंदोलनों में शिरकत के लिए मशहूर स्वामी अग्निवेश के बारे में जब यह खबर आई कि मनोरंजन टीवी चैनल कलर्स के शो बिग बॉस में शिरकत करने के लिए जा रहे हैं तो सामाजिक क्षेत्रों से लेकर राजनीति के गलियारों में यह चर्चा होने लगी कि आखिर वे ऐसा क्यों कर रहे हैं और वहां उनकी क्या भूमिका होगी? क्या वे इस घर में एक प्रतियोगी बनकर जा रहे हैं या किसी और भूमिका में? खर, अब इन सवालों का जवाब मिल चुका है और स्वामी अग्निवेश तीन दिनों तक बिग बॉस के घर मेहमान रहकर वहां से वापस चुके हैं। उस घर में हुए तजुर्बो और उनकी भविष्य की योजना को लेकर रवीन्द्र त्रिपाठी ने उनसे बातचीत की है -

सवाल- आपने जब बिग बॉस के घर जाने का फैसला किया तो आपके मन में क्या था? क्या आपको यह कभी लगा कि आप मनोरंजन के एक कार्यक्रम में जाकर अपनी छवि के साथ खतरों से खेल रहे हैं?

जवाब- जब मुङो कलर्स टीवी की तरफ से बिग बॉस में आने का निमंत्रण मिला तो मैं अवाक रह गया। यह मेरे लिए एकदम नया प्रस्ताव था इसलिए समझ में नहीं आया कि क्या कहूं। इसके पहले मैं इस तरह के शो से वाकिफ नहीं रहा हूं। दूसरे मेरी छवि उपभोक्ता संस्कृति के खिलाफ लड़ने वाली रही है। मीडिया में भी फूहड़पन का मैं विरोधी रहा हूं। आपको याद होगा कि कुछ साल पहले जब माइकल जक्सन का शो दिल्ली में होने की बात हुई थी तो मैंने उसके खिलाफ आवाज उठाई थी। मुङो लगा था कि यह हमारी जिंदगी में अपसंस्कृति को बढ़ावा देगा। हमारे ही विरोध के कारण उस समय माइकल जक्सन का शो दिल्ली में नहीं हुआ। इस सबके अतिरिक्त मैं शराब और पंचसितारा संस्कृति के खिलाफ रहा हूं और उसके खिलाफ आंदोलन भी करता रहा हूूं। मेरा मानना है कि ऐसी बातें नहीं होनी चाहिए जो हमारी संस्कृति को प्रभावित करती हों।

जब मुङो कलर्स का निमंत्रण मिला तो मैंने अपने समर्थकों और सहयोगियों से पूछा कि मुङो क्या करना चाहिए। ज्यादातर की राय यह थी कि इसमें भाग लेने से मेरी छवि इतनी खराब हो जाएगी कि मैं दुबारा कभी उबर नहीं पाऊंगा। लेकिन कुछ लोग मेरे वहां जाने के पक्ष में भी थे। मैं 45 वर्षो से सार्वजनिक जीवन में हूं और हमेशा अन्य संगठनों के कार्यक्रमोंे और एजेंडा के मुताबिक अभियानों में भाग लेता रहा हूं। मुङो लगा कि इस शो में भाग लेने से मुङो एक बड़े स्तर पर लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का मौका मिलेगा। तब मैंने निर्णय किया कि मैं तीन दिनों के लिए इस शो में भाग लूंगा।

सवाल- क्या फैसला लेने के बाद भी आपके मन में कभी यह बात आई थी कि आप एक जोखिम मोल ले रहे हैं और ऐसे शो में शिरकत करने जा रहे हैं जहां प्रतियोगी आपस में सिर्फ लड़-झगड़ रहे हैं। क्या आपके दिमाग में कभी आया कि ऐसे लोगों के बीच रहकर आप अपनी बात सार्वजनिक स्तर पर पहुंचा पाएंगे?

जवाब : जोखिम तो था। पर मन में यह भी था कि मैं नौजवानों की ऐसी दुनिया में जा रहा हूं जहां मुङो अपने से अलग किस्म के लोग मिलेंगे। इस तरह के अवसर आपको आत्ममंथन के लिए प्रेरित करते हैं। और अब जब मैं इस कार्यक्रम से बाहर गया हूं तो ईश्वर का धन्यवाद करता हूं कि इस तरह के कार्यक्रम में भाग लेकर बिना अपने धर्म की हानि किये मैं वापस गया हूं। सच पूछा जाए तो यह सब मेरे लिए एक आध्यात्मिक पूंजी है और मेरा आत्मबल भी बढ़ गया है। आगे के सामाजिक कार्य के लिए मैं वहां से आध्यात्मिक पूंजी के रूप में काफी कुछ लेकर लौटा हूं।

मैं यहां यह भी बता दूं कि जिन लोगों ने उस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मुङो प्रेरित किया वे थे फिल्म निदेशक महेश भट्ट, नृत्यांगना मल्लिका साराभाई और पत्रकार विनोद मिश्र। उनके कहने का लब्बोलुबाब यह था कि रियलिटी शो का माध्यम आपको करोड़ों लोगों के साथ जोड़ता है। इसलिए इस माध्यम का सदुपयोग भी किया जाना चाहिए।

सवाल- वहां रहने के दौरान आपको कौन लोग ज्यादा अच्छे लगे?

श्रद्धा शर्मा, पूजा मिश्रा, पूजा बेदी, आकाशदीप, अमर उपाध्याय, सिद्धार्थ भारद्वाज जसे लोगोंे के मिजाज तो काफी अलग-अलग हैं।

जवाब- मैं किसी एक या दो लोगों का नाम नहीं लूंगा क्योंकि सभी के साथ मेरे अच्छे संबंध बने और सबने मेरी इज्जत की। मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि वे सभी खुले मन और स्वभाव के हैं और उनके व्यक्तित्व में किसी प्रकार का पाखंड नहीं है। जो है सबके सामने है। अक्सर हम राजनीतिक नेताओं में इस तरह का पाखंड देखते हैं। मैंने इन लोगों को इमरजेंसी के दौरान अपने जेल के अनुभव भी बताये। जब हम लोग इमरजेंसी में जेल गये तो शुरू में पांच-छह दिन तक तो सब ठीक-ठाक था। आखिर सभी नेता उस समय हो रहे आंदोलन में शरीक थे इसलिए उनमें एक भाईचारा था। लेकिन पांच-छह दिनों के बाद ही जेल में रहने के बाद सभी नेता मानसिक तौर पर अकेलेपन का अनुभव करने लगे। इसके बाद तो नेताओं में इस बात पर झगड़ा होने लगा कि कौन किस तरह के कप में चाय पियेगा और किसको खाने में क्या पसंद है। आप सोचिये कि बिग बॉस में जिन लोगों को 13 हफ्ते तक बाहरी दुनिया से कटकर रहना है उनकी मानसिक स्थिति क्या होगी? ऐसे लोगों में कुछ तनाव हो तो यह स्वाभाविक ही है। लेकिन इस तनावपूर्ण माहौल में मेरे अंत:निवास के दौरान किसी ने मुझसे लेशमात्र भी अभद्रता नहीं की। मैंने उनसे देश और समाज के बारे में जो बातें बतायीं उससे वे प्रभावित भी हुए। कु ने तो मुझसे वादा किया है कि जब वे इस शो से बाहर आएंगे तो राष्ट्रीय सामाजिक मुद्दों पर मेरा साथ देंगे।

सवाल- अब आगे की आपकी क्या योजना है। क्या आपने सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर अपनी सक्रियता के लिए कोई योजना बनाई है?

जवाब- अभी मैंने कोई योजना नहीं बनाई है लेकिन मैं जल्द ही अपने मित्रों और सहयोगियों की बैठक बुलाने वाला हूं। उसके बाद योजना बनाऊंगा। हालांकि यह भी स्पष्ट कर दूं कि यह सब मेरे लिए कुछ नया नहीं है। आखिर मैं पिछले 45 साल से सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के लिए सक्रिय रहा हूं। मैंने 1996 में लोकपाल के गठन के लिए आवाज उठाई थी जब आज लोकपाल के लिए मांग और आंदोलन करने वाले कई लोगों का जन्म भी नहीं हुआ था। पर मैं यह भी स्पष्ट कर दूं कि भारत अभी जिस दौर से गुजर रहा है उसमें लोकपाल का बनना या लोकपाल विधेयक का आना सभी रोगों समस्याओं का इलाज नहीं कर सकता। जिसे अंग्रेजी मेंपैराडाइम शिफ्टज् कहते हैं उसकी जरूरत है। यानी अब हमें देश के सामने खड़ी विकराल समस्याओं पर नये ढंग से सोचना होगा। जसे किसानों की समस्या को लेकर बुनियादी स्तर पर नयी तरह की सोच और कार्यक्रमों की जरूरत है। देश में आर्थिक विषमता कई स्तरों पर बढ़ रही है। अभी मैंने कुछ दिन पहले एक अखबार में देखा कि सैम पित्रोदा जसे तकनीक विशेषज्ञ भी कह रहे हैं कि इस देश को महात्मा गांधी के बताये रास्ते पर चलना होगा। तो इस पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है। दूसरी तरफ से कहें तो जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति की जो बात कही थी उसे ही आगे बढ़ाना होगा। जयप्रकाश आंदोलन से राजनैतिक बदलाव तो हुआ लेकिन सामाजिक स्तर पर और आर्थिक मोर्चे पर परिवर्तन नहीं हुआ। समाज में बुनकरों की स्थिति बहुत खराब है। उसके बारे में भी हमें सोचना होगा। कुल मिलाकर हमें लोकशक्ति को फिर से जाग्रत करना है और यह सब सामूहिक सोच के तहत ही हो सकता है। मैं इसके लिए प्रयास करूंगा।


एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...