Saturday, April 25, 2009

किस्मत और मेहनत ने साथ दिया और शोहरत कायम है

किस्मत और मेहनत ने साथ दिया और शोहरत कायम है


हालीवुड में प्रसिद्धि तब मिली जब ज्वेल आफ क्राउन नाटक में उन्हे प्रिंसेस का रोल मिला। अब इंग्लैंड में लोग इन्हे प्रिंसेस के नाम से जानने लगे। इतनी प्रसिद्धि बटोरने के बाद 26 सितम्बर 1987 को सदा के लिए भारत आ गई। लेकिन यहां पर भी काम करना जारी रखा। दिल्लगी, चलो इश्क लड़ाएं, हम दिल दे चुके सनम, सांवरिया, चीनी कम सहित कई फिल्मों में काम किया।
इनके उत्कृष्ट योगदान को देखते हुए दिल्ली सरकार ने इन्हे 2008 में ‘सदी की लाडलीज् पुरस्कार से नवाजा।
उनकी उम्र के हिसाब से हफीज जालंधरी की गजल ‘अभी तो मैं जवान हूं उन पर सटीक बैठती है और बड़ी तन्मयता से जोहरा सहगल अपने प्रश्ांसकों के कहने पर इसे सुनाती भी हैं।

Friday, April 24, 2009

जब नेहरु जी ने तोहफा भेजा

जब नेहरु जी ने तोहफा भेजा
हमारी शादी इलाहाबाद में अपने रिश्तेदार के यहां 14 अगस्त 1942 को हुई। उस वक्त पूरे भारत में इमरजेंसी लगी थी क्योंकि भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो गया था और पं जवाहर लाल नेहरु जी जेल में बंद थे जेल से छूटने के बाद उन्होंने हमारे रिश्तेदार के घर तोहफा फिजवाया। यह हमारे लिए नेहरु जी का प्रेम था। शादी के बाद 1943 में जोहरा सहगल अपने पति कामेश्वर सहगल के साथ लाहौर में स्कूल खोला। लेकिन कुछ दिन बाद भारत आ गई। यहां उन्होने 1945 में पृथ्वीराज थियटर ज्वाइन किया और अब अभिनय में पूरी तरह से रम गई। इनकी बहन नुजरा, पृथ्वीराज कपूर के अधिकरत नाटकों में उनकी पत्नी का किरदार निभाती थी। जोहरा सहगल इप्टा से भी जुड़ी रही 1946-47 में यह उसकी वाइस प्रेसीडेंट भी रही। सन उन्नीस सौ पैंतालिस से साठ के बीच ही जोहरा सहगल ने फिल्मों के लिए भी काम किया। उन्होंने गुरुदत्त की बाजी फिल्म में कोरियोग्राफी की, इसी बीच बलराज साहनी के साथ भी काम किया। दिल्ली के शंकर मार्केट में दिल्ली नाट्य अकादमी भी खोला लेकिन वह उसी तरह बंद भी हो गई।

Thursday, April 23, 2009

प्यार किया तो डरना क्या

प्यार किया तो डरना क्या

जोहरा सहगल में काम के प्रति अद्भुद लगाव है और गजब की ऊर्जा भी है कि 97 साल की उम्र में भी वह अपने कार्य के प्रति सजग और सक्रिय हैं। नृत्य के प्रति उनके लगाव के कारण ही उन्होनें सिमतोला नैनीताल में एक नृत्य अकादमी में उनकी मुलाकात कामेश्वर सहगल से हुई। उम्र में साढ़े आठ साल छोटे होने के बाद भी जोहरा ने उनसे शादी की। इस शादी के बारे में वह बड़ा खुल कर बात करती हैं कि हमारा दो साल तक अफेयर चला। मैं बार-बार कहती थी मैं उम्र में तुमसे बड़ी हूं लेकिन कामेश्वर राजी नहीं थे। उन्हे तो बस जोहरा चाहिए...।
वह बताती हैं कि शादी के बारे में भी बड़ा दिलचस्प वाकया हुआ था, इनके पिता जी शादी के लिए राजी नहीं थे इसके कई कारण थे एक तो वो कट्टर मुश्किल थे और शायद उन्हे इसका दुख भी रहा होगा कि मैं उनकी मर्जी से शादी नहीं कर रही थी लेकिन बाद में वह मान गए लेकि न एक शर्त यह थी कि नैनीताल में नहीं करनी है। हमें ये शर्त मंजूर थी।

Wednesday, April 22, 2009

पृथ्वीराज कपूर हमारे देवता थे

पृथ्वी राजकपूूर तो हमारे देवता थे
हिन्दी सिनेमा के युग पुरुष को पृथ्वीराज कपूर को वह देवता कहती हैं। उनका मानना है कि पृथ्वीराज कपूर का नाटक के प्रति जो लगाव था और रचनात्मकता या प्रयोग उन्होने किए वह अद्वितीय है। जोहरा सहगल पृथ्वी राजकपूर के बारे में बताते हुए भाव
विभोर हो जाती हैं वह कहती हैं कि पापा जी जसा इंसान होना मुश्किल है। उनके साथ काम करना गर्व की बात थी। जोहरा सहगल ने पापा जी के साथ काम करना सुखद बताती हैं। वह कहती हैं कि उनकी बहन ने सबसे अधिक पापा जी के साथ काम किया दोनों की जोड़ी लोगों को खूब जंचती थी। अपने बारे में भी वह बताती हैं कि मैंने भी एक पापा जी के साथ एक नाटक में बतौर हिरोइन का रोल किया था। उनका सरल स्वभाव और काम के प्रति लगाव देखकर लोग दंग रह जाते थे।

Tuesday, April 21, 2009

अभी तो मैं जवान हूं

अभी तो मैं जवान हूं

27 अप्रैल को जोहरा सहगल का 97 वां जन्मदिन है उम्र के वह कला जगत की अकेली महिला हैं जिसके ऊपर यह गजल सटीक बैठती है कि अभी तो मैं जवान हूं। यूं तो वह लोगों से कम बातचीत करती हैं लेकिन पिछले महीने अशोक वाजपेयी के सौजन्य से एक कार्यक्रम में उन्होने अपने बारे में बताया निश्चय ही वह क्षण सबके लिए सुखद था लगभग ढाई घंटे उन्होने जिस तरह श्रोताओं को बांध के रखा वह अद्भुत था, उस सुनी गई बात को मैने लिखने का प्रयास किया है, सुझाव, संदेश और आलोचना आमंत्रित है। उम्मीद है उनके बारे में जो जानकारी दी जा रही है आपको पसंद आएगी- यह कड़ी आगे भी जारी रहेगी

१- मैं डांसर बनना चाहती थी
कभी-कभी कु छ लोग समय से आगे निकल जाते हैं। और उनके लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती। उम्र में शतक के करीब पहुंच चुकी और आवाज में वो दम कि अनजान आदमी शायद ही जान पाए कि इस शख्सियत की उम्र इतनी है।
27 अप्रैल 1912 में नजीबाबाद मुरादाबाद में जन्मी जोहरा सहगल वालिद मुमताउल्ला खां के पांच बेटियों और दो बेटों में से एक हैं। पिता के प्रगतिशील विचारों के होने के कारण उन्हे और उनकी बहन को पाकिस्तान के लाहौर के क्वीन मेरी कालेज पढ़ने के लिए भेजा गया। नहीं तो उस वक्त एक मुस्लिम समाज में ऐसा करना संभव नहीं था।
कालेज में जोहरा का अंदाज एक टॉम बॉय जसा था। लेकिन नृत्य और संगीत का शौक बेहद था। एक कट्टर मुस्लिम परिवार नृत्य सीखने में यहां भी बाधा बना था लेकिन उनके वालिद ने एक बार फिर उनका कहना माना और वह तीन साल तक जर्मनी में नृत्य सीखा। वहीं पर इनकी पहली मुलाकात उस समय के मशहूर डांस ग्रुप के संचालक उदय शंकर से हुई और बाद में जोहरा जी ने उनके साथ काम भी किया।
अपने एक संस्मरण में वह बताती हैं कि वह 1938 में ही न्यूयार्क और लांस एंजिल्स में काम करने गई।

Thursday, April 16, 2009

मुस्कान के प्रकार

मुस्कान के प्रकार
कवि बिहारी ने मुस्कान पर बहुत कुछ लिखा है, मुस्कान शायरों की पहली पसंद हुआ करती थी। लेकिन अब मुस्कान के प्रकार बदल रहे हैं। जसे प्रोफेशनल मुस्कान, एजुकेशनल मुस्कान, अनप्रोफेशनल मुस्कान, सम मुस्कान, विषम मुस्कान, स्थाई मुस्कान, अस्थाई मुस्कान आदि आदि। मतलब यह है कि आप अगर कहीं जा रहे हैं तो उस अनुसार आपकी मुस्कान होनी चाहिए। कारपोरेट जगत की मुस्कान तो माशाअल्लाह। शायरों ने मुस्कान को कभी नहीं मापा था लेकिन आजकल मुस्कान सेंटी मीटर, इंच और मिली मीटर में नापी जाती है। डेढ़, ढाई या सवा इंच टाइप मुस्कान पर किताब भी आ चुकी है। मुङो चिंता तब होती है कि कहीं साहित्यकारों के पास मुस्कान मापने का नैनो मीटर टाइप पैमाना न आ जाय, विज्ञान से संभव है नहीं तो कला तो है ही।
जबसे प्रेस कांफ्रेंस में जूता चलना शुरु हुआ है एक नई तरह की मुस्कान हमारे नेताओं के चेहरे पर देखने को मिल रही है। यह भी दो प्रकार की है, जूता चलने से पूर्व की मुस्कान और जूता चलने के बाद की मुस्कान। एक चैनल की एंकर ने मुस्कुराते हुए इन दोनों मुस्कानों के मध्य तुलनात्मक विेषण प्रस्तुत किया, सबने मुस्कुराते हुए उसकी प्रशंसा की लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि ये किस टाइप की मुस्कान है।
सहीराम के पड़ोसी हंसमुख बाबा के शिष्य दुखहरन मास्टर जब क्लास में बच्चे से पूछते हैं कि ‘पज् से क्या होता है बच्चा जोर से बोलता है काइट और तब मास्टर की मुस्कान देखने लायक होती है।
मंहगाई देखकर एक मध्यम वर्गीय कुत्ते की हंसी पर ग्रहण लग गई लेकिन फिर भी वह पूंजीवादी कुत्ते को देखकर गाली देकर तिक्ष्ण मुस्कान बिखेर देता था थोड़ी देर बाद ढेरों सर्वहारा कुत्ते विभिन्न सुरों में गाली देकर पीछे-पीछे मुस्कुरा शुरू कर दिए।
गांव में जो लोग अधिक हंसते हैं उन्हे प्राय: ‘दंत चियारज् संज्ञा से विभूषित किया जाता है। वह भूखे, प्यासे रह लेगें लेकिन मुस्कुराए बिना नहीं रह सकते। कुछ तो विचित्र तरीके से हंसते हैं अगर जोर से हंस दें तो अट्टहास से आस-पास के पशु पंक्षी ही लापता हो जाए। दंत चियार टाइप एक सज्जन सहीराम के गांव में भी थे जिनकी सार्वजनिक मुस्कुराहट प्रसिद्ध थी। गांव में बाढ़ आए या सूखा, हैजा हो या इंसेफेलाइटिस, बारात निकले या जनाजा वह निम्न, मध्यम या उच्च श्रेणियों में मुस्कुरा ही लेते हैं। लेकिन जब उनके गांव में कोई करबद्ध नेता चुनाव प्रचार करने आता है और उसे वोट डालने का निवेदन करता है तो उसकी हंसी रोके नहीं रुकती।
अभिनव उपाध्याय

Monday, April 6, 2009

प्रायोजित प्रेम

प्रायोजित प्रेम
वैलेंटाइन डे के लगभग दो माह बीत जाने के बाद प्रेम की पाठशाला में जब सहीराम पहुंचे तो उन्हे कुछ नए तरह के प्रवचन सुनने को मिले। प्रस्तुत हैं उसके कुछ अंश-
‘प्रेमज् अर्थात अकथनीय, अवर्चनीय और कभी-कभी अदर्शनीय है। लेकिन इधर प्रेम में रिफार्म आया है और वह नए फार्म में दिखाई दे रहा है। जसे ‘प्रायोजित प्रेमज्, गैर चुनावी समय से लेकर चुनावी महापर्व या और भी महत्वपूर्ण मौकों पर प्रेम प्रायोजित टाइप दिखने लगता है।
अब देखिए चुनाव से पूर्व प्रेम के गीत गाने वाले नेता को भगवाधारियों ने ऐसे धार्मिक सन्निपात का इंजेक्शन लगाया कि भाजपा के राम के प्रति उसका प्रायोजित प्रेम उमड़ पड़ा। इसी तरह तथाकथित हिन्दू हृदय सम्राट योगी आदित्यनाथ का हिन्दूओं के प्रति प्रेम भी इसी श्रेणी का है। इसी तरह का प्रेम बहुजन से सर्वजन में तब्दील मायावती का ब्राह्मणों के प्रति भी है। कांग्रेस का मुस्लिमों के प्रति प्रेम भी कुछ इसी टाइप है। कुछ घोषित कम्युनिस्टों का मार्क्स के प्रति प्रेम को भी हम ऐसा ही कह सकते हैं। चुनाव आते ही नेता जी लोगों का जनता के प्रति अथाह प्रेम भी प्रायोजित ही है।
कहने का तात्पर्य यह है कि प्रायोजित प्रेम करने वालों की एक लम्बी श्रृंखला है। वर्तमान में वही सफल हो सकता है जो प्रायोजित प्रेम में महारथ हासिल रखता है। फटाफट क्रिकेट से लेकर आईपीएल तक में चीयर्स गर्ल्स के क्रिकेट प्रेम के बारे में आप क्या कहेगें, कोई उनसे नहीं पूछता कि आप लांग आन या कवर ड्राइव जसा कुछ जानती हैं या नहीं। पानी की टंकी पर चढ़ कर गौरांगवर्णी नायिका के प्रति नायक के प्रेम का इजहार, अक्सर गायन की प्रतियोगिता में रूठने मनाने में क्रिया से लबरेज प्रेम या रैंप पर आधे इंच से सवा इंच में मुस्कुराती गजगामिनी मॉडल का अपने अधोवस्त्र के प्रति प्रेम को भी हम इसी कैटेगरी में रख सकते हैं। पता नहीं कब प्रतियोगी लड़ बैठे और रैम्प की मॉडल का अधोवस्त्र खिसक जाए।
वर्तमान की आर्थिक मंदी ने भी प्रायोजित प्रेम को और भी हवा दी है। प्रायोजित प्रेम का उदाहरण चूल्हे से लेकर आफिस तक में देखा जा सकता है। डैनी बॉयल का भारतीय स्लमडॉगों के प्रति प्रायोजित प्रेम अथाह है। अक्सर अस्पतालों में डाक्टर और नर्स मरीजों से इसी प्रेम के अंतर्गत बंधे होते हैं।
भक्त जनों प्रायोजित प्रेम के अपने-अपने फायदे हैं वरुण गांधी उन्हीं की पार्टी के लोग ईष्र्या करते हैं कि, दंगा कराना और मस्जिद तुड़वाने जसे महान कार्य करने के बाद भी उन्हे वह सम्मान नहीं मिला जो प्रायोजित प्रेम के जरिए इस निर्वतमान कवि को मिल गया। जरुर प्रेम गीत रचने की कला इसमे काम आई होगी। अत: प्रेम शाश्वत है इसे प्रायोजित रुप में ले लाभ होगा। इति !
अभिनव उपाध्याय

Sunday, April 5, 2009

जी चाहता है

जी चाहता है


थक जाए हवा ऐसा दौडूं
छलांग मारूं ऐसा कि टूट जाए बुबका का विश्व कीर्तिमान
नृत्य करुं ऐसा कि, लोग भूल जाएं माइकल जक्शन को
एक ही बार में सातों सुरों को गा जाऊं
नवो रसों को पी जाऊं

जी चाहता है
उड़ता जाऊं आकाश के अंतिम छोर तक
डुबकी लगाऊं पाताल में
और आंखें दिखाऊं शेषनाग को
चिल्लाऊं ऐसा कि
फ ट जाएं परदे बादलोंे के कान के
मेरा जी चाहता है
उछाल दूं हिमालय को उठाकर हथेली से
भर लूं अंजूरी में सातो समंदर
और पी जाऊं एक ही सांस में
जी जाऊं चारो युग
एक ही बार में
मेरा जी चाहता है
क्योंकि ...
आज उसने दे दिया है
हाथ मेरे हाथ में ।

अजय गिरि

Friday, April 3, 2009

प्रिज्म

प्रिज्म

बांट देता है सूर्य की कि रणों को
सात रंगों में
जो हमें रंगहीन दीखती हैं
और हम चमत्कृत होते हैं
कि सूर्य की प्रत्येक पारदर्शी किरणों में
सात रंगों की मोहक दुनिया में

वास्तव में जो रंगहीन दिख रहा है
वह रंगहीन नहीं है
उसके अंदर भी मचलती है
सात रंगों की रंगीन दुनिया
वह भी छिटका सकता है
सतरंगी,मोहक, विस्मयी, रौशनी
इसके लिए आवश्यक है
एक प्रिज्म की
मगर अफसोस-
कि बिक गए हैं प्रिज्म सारे
और कैद हो गए हैं
पब्लिक स्कूल की प्रयोगशालाओं में।
कुमार अजय गिरि
(कुमार अजय गिरि की कविताओं के संकलन बाजार में उपलब्ध में लेकिन आग्रह पर उन्होंने अपनी अप्रकाशित कविताओं को दिया जो कभी आलमारी की दराज में थी। मुङो पसंद आई हैं उनकी कविता उम्मीद है आपको भी पसंद आएगी।)

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...