Sunday, October 18, 2009

उपेक्षा का दंश ङोल रहा बलबन का मकबरा


शासक इतिहास गढ़ता है। लेकिन इतिहास को संरक्षित करने की जिम्मेदारी आने वाली पीढ़ी की होती है। पुरातात्वि दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण शहर दिल्ली ऐतिहासिक इमारतों और मकबरे की उपेक्षा ङोल रहा है। इस कड़ी में महत्वपूर्ण स्थान है मेहरौली का आर्कियोलॉजिकल पार्क जहां ऐतिहासिक महत्व के 40 स्थान हैं लेकिन अधिकर स्थानों पर खंडहर ही दिखाई पड़ते हैं इन्हीं खंडहरों के बीच है गुलाम वंश के शासक गयासुद्दीन बलबन का मकबरा। यहां पर बिखरे टूटे पत्थर और मक बरे में के भीरत की गंदगी इसकी स्थिति खुद-ब-खुद बयां कर देते हैं।
वर्षो से उपेक्षा का दंश ङोल रहे इस पार्क में मरम्मत की पहल इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चर (इंटैक) ने शुरु की बाद में इसे आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) ने भी आगे
बढ़ाया लेकिन वर्तमान में भी यह सरकारी उपेक्षा का शिकार बना हुआ है।
ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व से सम्पन्न गयासुद्दीन बलबन का मकबरा भारत में मेहराब और गुम्बद का सबसे पहला उदाहरण माना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार गयासुद्दीन बलबन इल्तुतमिश का तुर्की गुलाम था जो नसिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में वजीर के पद पर आसीन हुआ था। महमूद की मृत्यु होने पर वह गद्दी पर बैठा और अपनी मृत्यु होने तक 24 वष तक शासन करता रहा। इतिहासकारों ने इसका शासनकाल 1266-1287 माना है।
मकबरे का मुख्य द्वार भी अपनेआप में अनूठा है। इसमें प्रवेश करते ही हिन्दू मंदिरों की तरह डिजाइन देखने को मिलती है जबकि पृष्ठ भाग पर मस्जिद के आकार का गेट और संभवत: यह भारत का पहला गेट है जहां मुख्य द्वार का छत गुम्बद का आकार न होकर के पिरामिड के आकार का है।
अनगढ़े पत्थरों से निर्मित इस मकबरे एक भाग पर गयासुद्दीन बलबन की कब्र है। यह माना जाता है कि मकबरे में पूर्व की ओर ध्वस्त आयताकार कक्ष में बलबन के पुत्र मुहम्मद की कब्र थी जो खां शहीद के नाम से मुलतान के आसपास सन् 1285 में मंगोलों के विरुद्ध युद्ध में मारा गया।
इस ऐतिहासिक मकबरे की उपेक्षा के बारे में पूछने पर एएसआई के एक अधिकारी ने बताया कि हम इसकी देखरेख के लिए प्रयासरत हैं और पिछले वर्ष इस पर काम भी हुआ है और इस वर्ष भी इसके संरक्षण का काम जल्द ही शुरु हो जाएगा।

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