Friday, July 2, 2010

खाप का खौफ कब तक !

पंकज चौधरी

कुछ दिन पहले करनाल जिला अदालत ने मनोज-बबली हत्याकांड के सात अभियुक्तों में से पांच को जब मौत की सजा सुनाई तो खाप के चौधरियों ने आसमान को सर पर उठा लिया था। इन चौधरियों ने तुरंत कुरुक्षेत्र में एक सभा बुलाई और अदालती फैसले को जमकर कोसा। खापों के इन नेताओं ने मनोज-बबली हत्याकांड के दोषियों के प्रति पूरी हमदर्दी जताई और फरमान जारी किया कि मौत की सजा पाए लोगों का मुकदमा हाई कोर्ट में लड़ने के लिए हर परिवार दस-दस रुपए का चंदा जुटाए। इसके अलावा इन्होंने सबसे बड़ा फैसला जो लिया वह यह था कि एक ही गोत्र में शादी पर पाबंदी लगाने के लिए हिन्दू मैरिज एक्ट-1955 में सरकार संशोधन करे। हिन्दू मैरिज एक्ट-1955 के सेक्शन-5 में लिखा है कि ‘उसी स्त्री से विवाह न्यायसंगत है जो मानसिक रूप से स्वस्थ हो, उसे बच्चे पालने में कोई कठिनाई नहीं हो, उम्र 18 साल से ज्यादा हो और पति के साथ ब्लड रिलेशन नहीं हो।ज् मतलब यह ब्लड रिलेशन माता-पिता की ओर से तीन-चार पीढ़ियों तक सीमित रखा गया है।
खाप पंचायतें जो एक ही गोत्र या फिर एक ही गांव के लड़का-लड़की के विवाह कर लेने पर उसे मौत के घाट उतारने का फरमान जारी करती हैं, की सबसे बड़ी आपत्ति तथाकथित जेनेटिक चिंताओं को लेकर है। इनका तर्क है कि एक ही गोत्र के लड़के-लड़की से जो संतान उत्पन्न होगी उसमें कई तरह के की विकृतियां होंगी। मसलन उनमें सफेद दाग, विकलांगता, हीमोफीलिया आदि-आदि बीमारियां हो सकती हैं। इस बात की पुष्टि के लिए जब मैंने कई विकलांग, हीमोफीलिया और सफेद दाग से पीड़ित लोगों से बात की तो पता चला कि उनके माता-पिता तो कोई समगोत्रीय नहीं थे। वे लोग जसा कि हिन्दू विवाह पद्धति का नियम है कि वे एक ही जाति के हों, तो वे वैसे ही थे। इसके अलावा शादी से पहले उनका दूर-दूर तक कोई रिश्ता भी नहीं था। मतलब विकृतियों की समस्या अलग-अलग गोत्रों के बीच हुई शादियों में भी हो सकती है। यह कहना कि सगोत्रीय शादी में ही ये समस्या उत्पन्न होती है, बेबुनियाद है। इस सिलसिले में मैंने मेडिकल साइंस के कुछ प्रगतिशील विशेषज्ञों से भी बात की तो उन सबका मिला-जुलाकर यही जबाव था कि हजारों में किसी एक करैक्टर में ही जेनेटिक विकृतियों की आशंका रहती है।
सारा विवाद इस एक शब्द ‘गोत्रज् को लेकर है। इस शब्द का उल्लेख पहले-पहल गवेद में मिलता है। गवेद की गुरु-शिष्य परंपरा या फिर उस आश्रम की जहां गुरु अपने शिष्यों को ज्ञान बांटने का काम करते थे जगजाहिर है। कहा जाता है कि यह ‘गोत्रज् शब्द वहीं से आया है। एक आश्रम में शिक्षा लेने वाले लोग सगोत्रीय माने जाते थे और उनके बीच शादी की मनाही थी। हम इस बात से अवगत हैं कि वैदिक काल में जाति के स्थान पर वर्ग अस्तित्व में था और आश्रम में ब्राह्मण, क्षत्रीय और वैश्य तीनों वर्ग के लोग शिक्षा प्राप्त कर सकते थे। इस आधार पर आश्रम में जब तीनों वर्ग के लोग शिक्षा प्राप्त कर सकते थे तब उनका ‘गोत्र एक कैसे हुआ? गोत्र का आधार जब ब्लड रिलेशन है तब फिर आश्रम के तीनों वर्गो के शिक्षार्थियों का भी जाहिर है, ब्लड ग्रुप अलग-अलग होगा। क्या विभिन्न क्षेत्रों, वर्गो और अनुशासनों से आने वाले लोगों को मनमाने तरीके से एक ही ‘गोत्रज् के खूंटे में बांध दें? और फरमान जारी कर दें की इनके बीच अब रोटी-बेटी का संबंध नहीं हो सकता। तब फिर दुनिया कैसे चलेगी! यह ‘गोत्र शब्द जब से अस्तित्व में आया है तब से ही यह फर्जीवाड़ा है। ये दावे के साथ कहा जा सकता है कि इस देश के 80 प्रतिशत लोगों को उसके ‘गोत्र का कुछ अता-पता नहीं। मैं अपने गांव के एक सम्पन्न मुशहर को जानता हूं, जिनसे श्राद्ध में उनके गोत्र का नाम जब उनके पुरोहित के द्वारा पूछा गया तो वे अकचका कर रह गए और उन्होंने अपने गोत्र का नाम बताने में असमर्थता जताई। तब पुरोहित ने अपने यजमान को अपने गोत्र का नाम दिया और कहा कि आज से आपके गोत्र का नाम हमारे ही गोत्र से चलेगा। और पूरा श्राद्ध पुरोहित के गोत्र से सम्पन्न हुआ। जाहिर है कि पुरोहित के पूर्वजों की आत्मा को ही शांति मिली होगी न कि यजमान के पूर्वजों की आत्मा को।
आदिवासी समाज की जीवन पद्धति को बहुत ही प्राकृतिक और वैज्ञानिक माना जाता है। उस समाज के वैवाहिक आधार को यदि हम देखें तो चौंक जाएंगे। भारत, ब्राजील और अमेरिका की कुछ जनजातियों में भाई-बहन, चाची-भतीजा, मौसी-भांजा और यहां तक कि दादी और पोते के बीच भी शादियां होती हैं। बशर्ते उन लोगों के बीच प्रेम हो। और ऐसी शादियों में उस समाज के चौधरियों और नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मुस्लिम समाज में ‘दूधज् के संबंध को छोड़कर धड़ल्ले से शादियां होती हैं। दक्षिण भारत में तो बहन अपने भाई की बेटी को अपने बेटे से ब्याह करवा देती है। आज जब दुनिया एक गांव में तब्दील हो गई है और कोई भी कहीं भी विचरने के लिए स्वतंत्र है तब फिर दो बालिग को जो एक-दूसरे से प्यार करते हैं और आपसी सहमति से शादी करना चाहते हैं, को मौत के घाट उतार देने का फरमान जारी करना कहां तक उचित कहा जा सकता है।

खाप पंचायतों की ओर से प्रेमियों के लिए मौत के जितने भी फरमान जारी किए जाते हैं उनमें लड़कियों की हत्या की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं, क्योंकि सामंती समाज में लड़कियां ही घर की इज्जत होती हैं। सामंती समाज का सीधा संबंध खेती और सत्ता से है। हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हरित क्रांति हुई और इसका फायदा वहां के किसानों को मिला। इस क्षेत्र के किसान अमूमन जाट हैं। हरित क्रांति की समृद्धि के बलबूते ही पिछले 25-30 वर्षो से हरियाणा में जाटों की सरकार है या उसके पास भी सत्ता है। इस सत्ता के नशे में ही वे पंचायती राज व्यवस्था को नहीं मानते और इसके समानांतर उन्होंने खाप पंचायतें चला रखी हैं। एक आंकड़े के अनुसार हरियाणा के 6759 गांवों में 6155 पंचायतों की व्यवस्था है लेकिन कई गांवों में इन पंचायतों की तुलना में खाप पंचायतें ज्यादा प्रभावशाली हैं। मतलब खाप पंचायतें आधुनिक सरकार और राज्य को सीधे-सीधे चुनौती देने का काम करती हैं। पिछले 25-30 वर्षो के दौरान हिन्दीभाषी राज्यों की मध्यवर्ती जातियों के पास भी सत्ता आई है। बिहार और उत्तर प्रदेश की यादव और कुर्मी और हरियाणा की जाट ये तीनों जातियां मध्यवर्ती जातियां तो हैं ही साथ ही ये मार्शल कास्ट भी मानी जाती हैं। मार्शल कास्ट प्राकृतिक रूप से दक्षिणपंथी रुझान की होती हैं। ये महिलाओं और दलितों पर उसी तरह से अत्याचार करेंगे जिस तरह से ब्राह्मण और राजपूत करते हैं। हरियाणा में पिछले दिनों मिर्चपुर में एक दलित पिता और उसकी बेटी को जिंदा जला देने की घटना इसी का ज्वलंत उदाहरण है। बिहार और उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों, ठाकुरों और भूमिहारों के बाद दलितों के ऊपर सबसे ज्यादा अत्याचार यादवों और कुर्मियों ने किए हैं। देखा जाए तो इन मध्यवर्ती जातियों ने आज पहले के ब्राह्मणों और ठाकुरों का स्थान ले लिया है। सती प्रथा और विधवाओं का विवाह नहीं होने देने की समस्याएं पहले निम्न जातियों में दूर-दूर तक देखने को नहीं मिलती थीं। मतलब महिलाओं का दमन यहां नहीं था। महिलाएं यहां स्वतंत्र थीं, क्योंकि वे अपनी आजीविका का साधन खुद जुटाती थीं। महिलाओं का दमन और खाप पंचायतों के फरमान सीधे-सीधे पुरुषवादी, सामंतवादी और वर्चस्ववादी लोगों से जुड़े हुए हैं।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...