Saturday, March 7, 2009

उद्गार

पंकज चौधरी जी हमारे सहकर्मी और कवि भी हैं। बिहार में मिथिलांचल की मिट्टी की महक और समसामयिक समस्याओं पर उनके उद्गार प्राय: शब्दों के रुप में बयां हो ही जाते हैं । प्रस्तुत है इसी तरह के कुछ उद्गार-

गरमी

भीषण गरमी है
आग के गोले बरस रहे हैं
पत्ता तक नहीं हिल रहा
पाताल भी सूख गया होगा
पिछले पच्चीस सालों का
रिकार्ड भंग हो गया है
..............

बड़े-बूढों की गरमी
ऐसे ही निकल रही थी

और दूधमुंहे-बेजुबान बच्चों की गरमी
घमोरियों में निकल रही थी ।


2. कैसा देश, कैसे-कैसे लोग
---------------------

कल तक जो बलात्कार करते आया है
और बलत्कृत स्त्री के गुप्तांगों में बंदूक देते चला आया है

कल तक जो अपहरण करते आया है
और फिरौती की रकम न मिलने पर
अपहृत की आंखें निकाल कर
और उसको गोली मारकर
चौराहे के पैर पर लटका देते आया है

कल तक जो राहजनी करते आया है
और राहगीरों को लूटने के बाद
उनके परखचे उड़ा देते आया है

कल तक जो बात की बात में
बस्तियां-दर-बस्तियां फूंक देते आया है
और विरोध नाम की चूं तक भी होने पर
चार बस्तियों को और फूंक देते आया है

कल तक जिसे
दुनिया की तमाम बुरी शक्तियों के समुच्चय के रूप
में देखा जाता रहा है
और लोग-बाग जिसके विनाश के लिए
देवी-देवताओं से मन्नतें मांगते आया है

आज वही छाती पर कलश जमाए लेटा हुआ है
नवरात्र में
दुर्गा की प्रतिमा के सामने
उसकी बगल में
दुर्गा सप्तशती का सस्वर पाठ किया जा रहा है
भजन और कीर्तन हो रहे हैं
कुछ लोग भाव-विभोर नृत्य कर रहे हैं
उसकी आरती उतारी जा रही है
अग्नि में घृत, धूमन और सरर डाले जा रहे हैं
घण्टी और घण्टाल बज रहे हैं

दूर-दूर से आए दर्शनार्थी
अपने हाथों में फूल, माला, नारियल आदि लिए
उसकी परिक्रमा कर रहे हैं

उसके पैरों में अपने मस्तक को टेक रहे हैं

और करबद्ध ध्यानस्थ
एकटंगा प्रतीक्षा कर रहे हैं
उससे आशीर्वाद के लिए

ये कैसा देश है
और यहां कैसे-कैसे लोग हैं!


3. वाह-वाह रे हमारा भारत महान
खाने-खेलने की उम्र में
कूड़े के ढेर पर
पोलिथिन बिछते बच्चे
अपने देश के नहीं
बल्कि जापान के बच्चे हैं

और उनकी धंसी हुई आंखें
पांजर में सटा हुआ पेट
और जिस्म पर गिननेवाली हड्डियों की रेखाएं
अपने देश की नहीं
बल्कि सोमालिया की हैं

और उनकी अर्जित की हुई सम्पत्ति
अपने देश भारत की है
वाह-वाह रे हमारा भारत महान!


4. चोर और चोर

पूस का महीना था
और पूरबा सांय-सांय करती हुई
बेमौसम की बरसात झहरा रही थी
जो जीव-जन्तुओं की हड्डियों में छेद कर जाती थी
और उसे उस बीच चौराहे पर
उस रोड़े और पत्थर बिछी हुई रोड पर
बूटों की नोक पर
फुटबाल की तरह उछाल दिया जाता था
तत्पश्चात उसकी फै्रक्चर हो चुकी हुई देह पर
बेल्टों की तड़ातड़ बारिश शुरू कर दी जाती थी
उसे लातों, मुक्कों, घुस्सों, तमाचों
रोड़े और पत्थरों से पीट-पीटकर
अंधा, बहरा, गूंगा और लूला बना दिया गया था
उसे बांसों और लकड़ियों से भी डंगाया जा रहा था
उसके ऊपर लोहे की रडों का ताबड़तोड़ इस्तेमाल करके
उसके दिमाग को सुन्न कर दिया गया था

और उस सबसे भी नहीं हुआ
तो उसके लहूलुहान मगज पर
चार बोल्डरों को और पटक दिया गया

जुर्म उसका यही था
कि वो एक चोर था
और एक बनिये की दुकान में
चोरी करते हुए पकड़ा गया था

दुनिया के सबसे बड़े और महान लोकतंत्र में
मानवाधिकार का साक्षात उल्लंघन हो रहा था

और ऐन उसी रोज एक चोर और पकड़ाया था
जो राष्ट्र का अरबों रुपया डकार गया था
लेकिन उसके लिए एयर कंडिशंड जेल का निर्माण हो रहा था!


5. यदि तुम्हारे


यदि तुम्हारे
कान बंद कर दिए जाएं तो?
तुम नहीं सुनोगे

यदि तुम्हारी आंखें
बंद कर दी जाएं तो?
तो तुम नहीं देखोगे

और यदि तुम्हारे
मुंह पर जाबी लगा दी जाए तो?
तो तुम्हारा शेर बनना लाजिमी है!


6. वे जब-जब राजपथ की ओर मुड़े


वे जब-जब राजपथ की ओर मुड़े
उनके बारे में प्रचार किया गया कि
उनके पास हाथ तो हो सकते हैं
पर खोपड़ी कहां
उनके सिर पर ताज तो हो सकता है
पर वैसा गौरव कहां
उनकी ही पूरी दुनिया है
क्या है कोई ऐसा विश्वासभाजन?

वे दुनिया को चला तो सकते हैं
पर वैसा चालक कहां
दुनिया के प्रति वे वफादार भी हो सकते हैं
क्या हैं कोई ऐसा माननेवाले माननीय?

उनके पास कुरूपता हो सकती है
सुन्दरता नहीं
उनकी जगह नरक में हो सकती है
स्वर्ग में नहीं
वे असुर हो सकते हैं
सुर नहीं
उनका स्थान पदतल है
सिर ऊपर नहीं

उनका राहु हो सकता है
चन्द्रमा नहीं!

वे कौन थे
और किनके बारे में ऐसा प्रचार करते आ रहे थे
आखिर उनका मकसद क्या था?


7. सचमुच


सचमुच में आप
बदलाव चाहते हैं?

सचमुच में आप
परिवर्तन चाहते हैं?

और सचमुच में आप
दुनिया को बदल देना चाहते हैं?

तो हटाइए
बोरिंग के उस मुहाने पर से
अपना जकड़ा हुआ हाथ
जिसकी कल-कल करती धारा को
आपने आजतक निकलने ही नहीं दिया!
- पंकज चौधरी


एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...