सदाचार, प्रचार और शिष्टाचार के माध्यम से अब चुनाव जीतना आंख बंद करके सटीक जगह तीर मारने जसा है। क्या-क्या नहीं करना पड़ता इस महापर्व के लिए। दिन रात एक करने के बाद भी अगर जनता जनार्दन का मूड ठीक रहा तो बात बन जाती है नहीं तो बस ठनठन गोपाल। अपने चुनिंदा समर्थकों के बीच यह बात नेता नेकराम बता रहे थे। सहीराम से अपनी पीड़ा और चुनाव के विषय में अपने अनुभव की बखान नेता नेकराम ने कही।
जनता के बीच उनकी छवि बदीराम के रूप में है। इस बात से सहीराम वाकिफ थे। उन्होंने कहा, लेकिन आपने विकास के नाम पर जनता का विनाश किया है इस बात से तो जनता नाराज है। नेकराम गुस्सा हो गए। उन्होंने कहा कि, सहीराम जी सबसे सामने तो ऐसा न बोलें। इस बार हम चुनाव प्रचार करने का तरीका बदल रहे हैं। लोगों को आध्यात्म के सहारे मन शुद्ध कराएगें और फिर जम्हूरियत, लोकतंत्र और डेमोक्रेसी का मतलब बताएंगे। सहीराम ने कहा लेकिन नेकराम जी इन तीनों का मतलब तो एक ही होता है। नेकराम ने कहा यह सब नहीं जानते हैं। हम योग, जोग और भोग के साथ इसे बताएंगे यकीन मानिए हमारी जनता इसे समझ जाएगी। यही नहीं हम अनुभवी नेताओं की तरह इस बार मोर्चा बनाएंगे, लोगों को बताएंगे कि संगठन में शक्ति है। विपक्षी दल के जासूस ने यह अच्छी खबर अपने दल के पास पहुचा दी फिर क्या था,
इस पर विपक्षी दल के नेता ने भाषण में नेकराम पर निशाना साधते हुए कहा कि, विपक्षी दल मोर्चा बनाने की बात कह रहे हैं लेकिन यह मोर्चा नहीं मिर्चा है। साथियों पहली बार चखने पर इसका स्वाद देर तक बना रहता है और अंतत: पानी पीने के बाद शांत हो जाता है। हमारे नेता बंधुओं आप मोर्चा की चर्चा पर ध्यान न दें, मंहगाई में हो रहे खर्चे के बारे में सोचें।
इसके अलावा वह समर्थकों से कह रहे हैं कि चुनाव लड़ने में नेता से अधिक समर्थकों को ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस मौसम में समर्थकों के कर कमल, बदन हाथी जसे मजबूत, दिमाग साइकिल की तरह तेज और जिंदगी को लालटेन की तरह जला देना पड़ता है।
सभा समाप्त होने के बाद दोनों नेताओं के समर्थक ऊर्जा से लबरेज हैं। नगाड़े बजा रहे हैं। पोस्टर बैनर लगा रहे हैं। लोंगों को भरमा रहे हैं। लेकिन नेताजी आचार संहिता के उल्लंघन की नोटिस देखकर परेशान हैं।