Thursday, March 12, 2009

महापर्व की दक्षिणा

महापर्व की दक्षिणा
अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र की जो परिभाषा दी वह भारत में शत-प्रतिशत लागू होती है। चाहे बस की सीट हो या भीड़ की धक्का मुक्की, चाहे दंगे में धमा-चौकड़ी हो या मंदिर में दर्शन की लाइन। लोकतंत्र को भरे बाजार में अंगड़ाई भरते देखा जा सकता है। इस लोकतंत्र का एक पर्व है चुनाव और इसके महारथी इसे महापर्व कहते हैं। चौधरी चौपट को चुनाव लड़ने के लिए नए-नए पैतरें सीखने की जरूरत पड़ रही है। वह समर्थकों को बता रहे हैं कि इस महापर्व में चार पैर की कुर्सी रानी की पूजा करनी पड़ती है। क्या पता रानी कब रूठ जाएगी और जनसेवक सड़क पर आ जाएं इसलिए ध्यान रखना पड़ता है।
ढोल-ताशे वाले,ऊं ट, हाथी, घोड़े यही नहीं गदहा तक के लिए इस महापर्व में आमंत्रण पत्र तैयार किये जा रहे हैं। तरह-तरह के गानों का कापीराइट खरीदा जा रहा है। इस पर हो रहे बेहिसाब खर्च से अनजान एक पोस्टर बनाने वाले ने कहा कि इस महापर्व के आने से एक महीने में ही साल भर का खर्च निकल जाता है। पिछली सदी के उत्तराध्र्द में हुए मध्यावधि चुनाव में समझ लिए हमारी चांदी हो गई थी। हम तो मनाते हैं कि यह महापर्व हर साल आए।
राजनीति का ककहरा सीख रहे चौधरी चौपट इस पर्व के आने से मगन हैं। नए-नए कुर्ते का आर्डर दिया जा रहा है। अपने क्षेत्र में लोगों का सुख-दुख पूछा जा रहा है। अद्धा, पौवा और पूरी बोतल का इंतजाम भी अपने चरम पर है। माने खर्च बेहिसाब, लेकिन पैसा न होने से नेता जी के सामने धर्म संकट है। इस मंगल उत्सव को मनाने के लिए दक्षिणा की व्यवस्था सबसे सामने परेशानी का संक ट बन गई है। बहन जी के भाइयों ने एक इंजीनियर को जबसे निपटाया, नेता जी के गुर्गे सरकारी लोगों को फिलहाल कम छू रहे हैं। किसी ने सलाह दे दी कि पूंजीपतियों की घंटी बजाई जाए लेकिन नेता जी परेशान हैं, वह बता रहे हैं कि ये बैरा गए हैं पुराना जूता, चम्मच, कटोरी, चश्मा, लाठी यही सब खरीद रहे हैं इस महापर्व की दक्षिणा के लिए ही इनकी मुट्ठी नहीं खुलती।
किसी ने कहा किसानों से ले लो, बजट में सरकार ने इनकी बहुत सुनी है और फसल भी कटने वाली है। बस क्या था, पकड़ लिए गए गांव के वरिष्ठ खेतिहर लेकिन दशा ऐसी कि चौपट जी चकरा गए। इकहरा बदन देखकर किसी ने पूछा ये क्या हाल बना रखी है? सरकारी योजनाएं यहां नहीं लागू होती क्या? क ल्लू किसान ने कहा, होती हैं लेकिन जमाखोर, सूदखोर, कामचोर ये सब सरकारी मौसेरे भाई हैं। क्या करें पंचायत, प्रधानी, विधान सभा और लोक सभा चुनाव इसमें दक्षिणा देते-देते बस शरीर पर हड्डी का ढांचा बचा है। जाने किस गोंद से चिपका है कि हड्डियां बिखरती नहीं है। नेता जी वहां से हट कर दूसरे के पास दक्षिणा के लिए चले गए।
अभिनव उपाध्याय

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