Sunday, November 1, 2009

यह इमारत तो इबादतगाह....



‘हमारे पूर्वज राव चुन्ना मल के बारे में लोग कहते थे कि आधी दिल्ली उनकी थी। उनका दिया हुआ आज भी हमारे पास बहुत कुछ है। चुन्नामल हवेली उनकी धरोहर है। वर्तमान में हवेली की देखरेख कर रहे व उनके वरिस अनिल प्रसाद बड़ी संजीदगी से ये बातें बताते हैं।
हवेली की पहचान अब ऐतिहासिक इमारतों के रूप में होती है। सैलानियों से लेकर फिल्म निर्माताओं के लिए यह पहली पसंद है। वर्तमान में इस हवेली की सुंदरता पर ग्रहण लग गया है। इसकी हालत देखकर फना कानपुरी का शेर ‘यह इमारत तो इबादतगाह..इस जगह एक मयकद़ा था क्या हुआ याद आता है। इस हवेली की कोई खास फिक्र किसी सरकारी संस्थान या गैर सरकारी संगठन को नहीं है। ऐतिहासिक महत्व की इस धरोहर के सामने बना पेशाब घर और खुलेआम वहां पर स्मैक पीते नशेड़ी देखे जा सकते हैं। हवेली के अंदर की सुंदरता को बरकरार रखने की अनिल प्रसाद ने पूरी कोशिश की है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि हॉलीवुड अभिनेत्री केट विसलेंट भी यहीं रहीं। हवेली की वास्तुकला देखने लायक है। 1842 में यह हवेली बनी। हवेली के हिस्से दर हिस्से को जोड़ते पुल अब भी देखे जा सकते हैं। वर्तमान में निचले फ्लोर पर दुकाने हैं, लेकिन 28,000 हजार वर्ग गज में फैली हवेली में तब संगमरमरी फव्वारे लगे होते थे। आज भी हवेली में प्रवेश करते ही चौड़ी सीढ़ियों पर पीतल की रेलिंग और अंतिम छोर पर शाही अंदाज दर्शाता शीशा देखा जा सकता है। यही नहीं यहां फारसी गलीचा, बड़े आइने, बोहेमियन ग्लास के झाड़ फानूस भी इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। इस हवेली में एक स्थान पर फारसी में लिखा हुआ है कि ‘यह कमरा 1842 में बना और बैठक खाने के लिए प्रयोग में लाया जाता था।ज्
अनिल प्रसाद बताते हैं कि यह हवेली भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से आए लोगों की शरणस्थली भी रही। उन्होंने इसकी प्रशासनिक उपेक्षा को लेकर भी चिंता जताई। इस हवेली की देख-रेख के बारे में वह बताते हैं कि ‘इसमें औसतन सत्तर रुपए एक दुकान से किराया आता है जिसकी बदौलत इसकी देखरेख संभव नहीं है। यह हमारे पुरखों की निशानी है। इसके संरक्षण की हम पूरी कोशिश करते हैं। अनिल प्रसाद पुलिस की मनमानी से भी दुखी हैं। उनका कहना है कि पुलिस उनके रिश्तेदारों तक से यहां आने के पैसे ले लेती है।

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