Wednesday, May 26, 2010

अभी जिंदा है निजामुद्दीन की बावली



प्रसिद्ध सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह से बस कुछ ही कदम की दूरी पर स्थित लगभग 800 वर्ष पुरानी बावली अभी जीवित है, मतलब आज भी उसमें पानी आता है। लेकिन कुछ साल पहले यहां आने वाले दर्शकों को यह पता भी नहीं था कि यहां पर इस सूफी संत द्वारा निर्माण कराई गई एक बावली भी है। बावली की वर्तमान स्थिति अब थोड़ी ठीक है लेकिन इसके चारो तरफ ऊंचाई में बने मकान हैं। मकानों से घिरा होने के कारण यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि यहां पर बावली भी है। लेकिन दिलचस्प यह है कि दिल्ली की इस भीषण गर्मी में भी इस बावली में तीन फीट पानी प्रतिदिन निकाला जाता है। बावली के संरक्षण और सफाई का काम कर रहे लोगों ने बताया कि निर्धारित स्तर से रोज तीन फीट पानी और बढ़ जाता है जिसे सफाई के कारण रोज सुबह निकाला जाता है।
स्थानीय निवासी मोहम्मद नियाज बताते हैं कि यह बावली संत निजामुद्दीन ने वुजु के लिए बनवाया था। लेकिन बाद में इस बावली के आसपास बस्तियां बन गईं और इस बावली में उनके घर का गंदा पानी आने लगा। यह बावली निजामुद्दीन के दरगाह के अहाते के उत्तरी फाटक की तरफ है। ऐसी बात प्रचलन में है कि जब इस बावली का निर्माण हो रहा था तभी गयासुद्दीन तुगलकाबाद का निर्माण कराने में व्यस्त था और उसने कारीगरों को कहीं और काम करने से मना कर दिया था परंतु वे रात में इस फकीर के लिए काम करने आते थे लेकिन जब गयासुद्दीन बलबन को पता चला तो उसने तेल बेचने को मना कर दिया जिससे रात को मजदूर काम न कर सकें। लेकिन उन्होंने तेल की जगह बावली के पानी का इस्तेमाल किया और पानी ने तेल की तरह काम किया। इसकी मान्यता के कारण यहां काफी दूर-दूर से लोग आते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि यह बावली लोदी काल में निर्मित है। आगा खां ट्रस्ट के आर्किटेक्ट रतीश नंदा का कहना है कि स्थानीय लोगों के सहयोग से इस बावली की सफाई हो रही है। यहां रहने वाले 18 परिवार को पिछले साल दूसरी जगह बसाया गया और उन्हे निश्चित मुआवजा दिया गया। बावली के बारे में एएसआई के मुख्य पुरातत्वविद् मोहम्मद केके ने बताया कि इसकी सफाई और संरक्षण एक लम्बा काम था एएसआई की अनुमति से आगा खां ट्रस्ट इसे बखूबी कर रहा है।

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