Friday, December 24, 2010

हिंदी साहित्य में आलोचना एक निष्फल प्रयास है : उदय प्रकाश

साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता वरिष्ठ साहित्यकार उदय प्रकाश से अभिनव उपाध्याय की विशेष बातचीत-

-ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी कहानी को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। अब इसके बाद आगे पाठकों के लिए क्या है?

साहित्य अकादमी का यह कदम ऐतिहासिक है। इससे पहले केवल निर्मल वर्मा के कहानी संग्रह को पुरस्कार मिला था। साहित्य में कहानी कभी भी स्वीकृत विधा नहीं रही, लेकिन कहानी बहुत ही महत्वपूर्ण विधा है। मेरा मानना है कि कहानी गद्य में कविता है। प्रेमचंद की रचना ‘गोदान एक महत्वपूर्ण उपन्यास है, लेकिन उनकी कहानियां उससे काफी आगे हैं। चेखव की कहानियों पर कई नाटक हुए हैं। ‘मोहनदासज कहानी को पुरस्कार देना ज्यूरी का साहसिक और महत्वपूर्ण कदम है। अभी हमारी दो कृतियां ‘चीना बाबा और बच्चों के लिए पहली बार एक किताब ‘चकमक आ रही है। इससे पहले बच्चों पर लिखी गई स्पेनिश में एक किताब काफी पसंद की गई थी।

-हिन्दी के अलावा कई और भाषाओं में छपने के कारण आपको एक वैश्विक पहचान मिल रही है, कै सा अनुभव रहा?

किसी भी सफलता के लिए कठिन प्रयास की जरूरत है। यह संघर्षो से हुआ है, इसके पीछे कोई तिकड़म नहीं है। लेखक दलितों से भी दलित और अल्पसंख्यकों से भी अधिक अल्पसंख्यक हैं। वह आरक्षित और उत्पीड़ित हैं। हम सब भुक्तभोगी हैं।किसी भी लेखक की रचना उसका अकेला प्रयास है। इसी प्रयास से अभी तीन और करार करने का प्रस्ताव है। अमेजोन पब्लिशर्स से भी एक करार की बात चल रही है।
-हिन्दी के विस्तार या संरक्षण में भूमिका को किस तरह से देखते हैं?

अंग्रेजी में दो शब्दावलियां है, डेमोगोगी और पेडागोगी। एक राजनीतिक शब्दावली है और दूसरे का प्रयोग शिक्षाशास्त्र के लिए इस्तेमाल किया जाता है। दोनों में हिन्दी की व्यस्तता झूठ के लिए इस्तेमाल की जाती है। हिन्दी का प्रयोग लोग अपने निजी जीवन में कम से कम करते हैं। यह जरूरत के लिए निर्मित की गई भाषा है। राजनीतिक आंदोलन और एकीकरण के लिए इसकी आवश्यकता थी। राष्ट्रवाद और बाजार हिन्दी में मौजूद रहा है और दोनों मनुष्य विरोधी हैं। लेकिन कुल मिलाकर यह हमारी भाषा है।
-आपकी रचना मोहनदास पर फिल्म भी बनी है, कितने संतुष्ट हैं आप?

मैं स्पष्ट कहना चाहता हूं कि, मैं उससे संतुष्ट नहीं हूं। निर्देशक प्रस्ताव लेकर आए थे और हमने सहमति दी लेकिन यदि पोस्ट मार्डन रूरल फिल्म बनाते तो अच्छा होता। फिल्म में चरित्रों का चयन महत्वपूर्ण होता है लेकिन इसमें न्याय नहीं हो पाया जबकि मेरे जानने वाले बहुत से कलाकार उसमें काम करने के लिए तैयार थे।
-सिनेमा के बारे में आपकी क्या राय है?

सिनेमा हिन्दी साहित्य से आगे है। हिन्दी सिनेमा ने जो विभिन्न वर्गो के किया है, कमाल का है। एक फिल्म बनाने वाले को किसी हाल में एक साहित्यकार या आलोचक से कमतर नहीं आंका जा सकता।
-अंत में, हिन्दी के आलोचकों के बारे में आपकी क्या राय है?

देखिए, मेरा मानना है कि हिन्दी में आलोचना नहीं है। यह महज एक निष्फल प्रयास है। हिन्दी गद्य 19वीं सदी की आधुनिकताओं के बीच संभव हुआ। जार्ज लुकाच ने यूरोपीय साहित्य के गहन अध्ययन के बाद कहा कि औद्योगीकरण में गद्य पैदा होता है। लेकिन हिन्दी में गहन अध्ययन का अभाव है, इसमें एक ‘एडहाकिज्म रहा है।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...