महात्मा गांधी गोपूजक थे और हिंदू- मुस्लिम एकता के हिमायती भी। आज के दौर में जब गोरक्षा और गोमांस के नाम पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण किया जा रहा है और भीड़तंत्र का न्याय हावी हो रहा है,तो उनके विचार नई प्रासंगिकता पा रहे हैं। दिल्ली के निकट गोमांस खाने के आरोप में दादरी में अल्पसंख्यक समुदाय के मजदूर को पीट-पीट कर मार डालने से देश सिहर गया है। जबकि एक खास सोच के लोग इस काम को सही ठहराने में लगे हैं। ऐसे में आइए देखते हैं कि 1909 में लिखी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक `हिंद स्वराज’ में इस विषय पर महात्मा गांधी ने क्या कहा था।
पाठकः-अब गोरक्षा के बारे में अपने विचार बताइए।
संपादकःमैं खुद गाय को पूजता हूं यानी मान देता हूं। गाय हिंदुस्तान की रक्षा करने वाली है, क्योंकि उसकी संतान पर हिंदुस्तान का, जो खेती प्रधान देश है, आधार है। गाय कई तरह से उपयोगी जानवर है। वह उपयोगी जानवर है इसे मुसलमान भाई भी कबूल करेंगे।
लेकिन जैसे मैं गाय को पूजता हूं, वैसे मैं मनुष्य को भी पूजता हूं। जैसे गाय उपयोगी है वैसे ही मनुष्य भी—फिर चाहे वह मुसलमान हो या हिंदू---उपयोगी है। तब क्या गाय को बचाने के लिए मैं मुसलमान से लड़ूंगा? क्या मैं उसे मारूंगा? ऐसा करने से मैं मुसलमान और गाय दोनों का दुश्मन हो जाऊंगा। इसलिए मैं कहूंगा कि गाय की रक्षा करने का एक ही उपाय है कि मुझे अपने मुसलमान भाई के सामने हाथ जोड़ने चाहिए और उसे देश की खातिर गाय को बचाने के लिए समझाना चाहिए। अगर वह न समझे तो मुझे गाय को मरने देना चाहिए, क्योंकि वह मेरे बस की बात नहीं है। अगर मुझे गाय पर अत्यंत दया आती है तो अपनी जान दे देनी चाहिए, लेकिन मुसलमान की जान नहीं लेनी चाहिए। यही धार्मिक कानून है, ऐसा मैं तो मानता हूं।
हां और नहीं के बीच हमेशा बैर रहता है। अगर मैं वाद विवाद करूंगा तो मुसलमान भी वाद विवाद करेगा। अगर मैं टेढ़ा बनूंगा, तो वह भी टेढ़ा बनेगा। अगर मैं बालिस्त भर नमूंगा तो वह हाथ भर नमेगाः और अगर वह नहीं भी नमे तो मेरा नमना गलत नहीं कहलाएगा। जब हमने जिद की तो गोकशी बढ़ी। मेरी राय है कि गोरक्षा प्रचारिणी सभा गोवध प्रचारिणी सभा मानी जानी चाहिए। ऐसी सभा का होना हमारे लिए बदनामी की बात है। जब गाय की रक्षा करना हम भूल गए तब ऐसी सभा की जरूरत पड़ी होगी।
मेरा भाई गाय को मारने दौड़े तो उसके साथ मैं कैसा बरताव करूंगा? उसे मारूंगा या उसके पैरों में पड़ूंगा? अगर आप कहें कि मुझे उसक पांव पड़ना चाहिए तो मुसलमान भाई के पांव भी पड़ना चाहिए।