Thursday, June 4, 2009

तुर्की ब तुर्की - गुहा चरन्ति मनुष:

चुनाव बीत गया। संसद में जाने के बाद सांसद फूले नहीं समा रहे हैं। जो नए हैं वो तौर तरीके सीख रहे हैं जो पुराने हैं वो सिखा रहे हैं। संसद में सीखने-सीखने का और बाहर पीने-पिलाने का दौर दिल खोलकर चल रहा है माने खुशियां उफन रही हैं मन के गुलगुले बुलबुले बन कर फूट रहे हैं। नए नए कपड़ों से लेकर पारंपरिक परिधान मे सज संवरकर लोग आ रहे हैं। जो हर बार जीत रहे थे और इस बार नहीं जीते वह बस टीवी देखकर संतोष कर रहे थे।
बहरहाल सांसद को की एक नई नर्सरी इस बार संसद में आई है पुराने सांसद उन्हे सिखा पढ़ा रहे हैं। कुछ पुराने सांसद भी चाटुकारिता बस अपने को नया कह रहे हैं। लेकिन विपक्ष के अर्ध बूढ़े सांसद ने उनके बयान पर टिप्पणी की कि सांड की सींग काटने पर वो बछड़ा नहीं बन जाता है। विपक्ष के सांसद ने नए सांसदों की क्लास ली और कहा कि देश को कल्चरल क्राइम से बचाओ। सरकार ने संस्कृति की रक्षा की कोई चिंता नहीं है। वादे पर वादे लेकिन सब बेकार सरकार रानीतिक पारदर्शिता के नाम पर पोलिटिकल अत्याचार भी कर रही है। देश को सांस्कृ तिक विमर्श की आवश्यकता है। तभी एक युवा सांसद ने जोर देकर क हा बुढ़ऊ लोगों को ब्रेनवाश की आवश्यकता है।
रिटायर्ड सांसद तिलमिला गए लेकिन शांत भाव का अभिनय करके बोले गवेद में भाषा के सौंदर्य पर अनेक सूक्तियां पाई गई हैं उसमें से एक है, ‘गुहा चरन्ती मनुष: न योषा सभावती विदथि एव सं वाक्ज् अर्थात जसे संभ्रांत पुरुष की स्त्री परदे में रहती है उसी तरह सभा में प्रयुक्त शिष्ट जन की वाणी अर्थ गर्भित और सधी हुई होती है। आप लोगों को ऐसा नहीं बोलना चाहिए। और विकास पर जोर देना जरूरी है। विकास का प्रयास ही हमें शिखर तक ले जाएगा। कभी कभी यह अपवाद हो जाता है जसे मैं।
तभी एक सांसद ने रोष पूर्वक कहा लेकिन मन का मंत्रालय नहीं मिला है तो विकास कैसे हो। आखिर आला कमान को योग्यता के आधार पर विभागों का वितरण करना चाहिए था।
संसद में जाने के बाद वहां किस चीज की ध्यान देने की आवश्कता होती है? एक नए नवेले सांसद के पूछने पर भूूतपूर्व सांसद ने जवाब दिया कुछ खास नहीं बस सब ये देख लेना कि जहां बैठेगें वहां से विपक्षी दल के सांसद कितनी दूर पर बैठते हैं। कुछ सभ्य गालियां जरुर सीख लेना, ट्रेडिशनल गाली तो बिल्कुल छोड़ देना और हां इस बार सुना है कुछ नई महिला सांसद भी आई हैं इसके लिए शायरी की किताब ले जाना मत भूलना।
अभिनव उपाध्याय

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...