Friday, April 3, 2009

प्रिज्म

प्रिज्म

बांट देता है सूर्य की कि रणों को
सात रंगों में
जो हमें रंगहीन दीखती हैं
और हम चमत्कृत होते हैं
कि सूर्य की प्रत्येक पारदर्शी किरणों में
सात रंगों की मोहक दुनिया में

वास्तव में जो रंगहीन दिख रहा है
वह रंगहीन नहीं है
उसके अंदर भी मचलती है
सात रंगों की रंगीन दुनिया
वह भी छिटका सकता है
सतरंगी,मोहक, विस्मयी, रौशनी
इसके लिए आवश्यक है
एक प्रिज्म की
मगर अफसोस-
कि बिक गए हैं प्रिज्म सारे
और कैद हो गए हैं
पब्लिक स्कूल की प्रयोगशालाओं में।
कुमार अजय गिरि
(कुमार अजय गिरि की कविताओं के संकलन बाजार में उपलब्ध में लेकिन आग्रह पर उन्होंने अपनी अप्रकाशित कविताओं को दिया जो कभी आलमारी की दराज में थी। मुङो पसंद आई हैं उनकी कविता उम्मीद है आपको भी पसंद आएगी।)

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