
अब दिन में लगता है डर..
प्राय: जब रात होती थी तो डर लगता था अब जब धूप होती है तो डरता हूं। डरने की वजह सूरज नहीं है, तेज धूप भी नहीं है भीड़-भाड़ भी नहीं, दरअसल एक सर्वे आया है कि हादसे रात स्ेा अधिक दिन में होते हैं, सर्वे कंपनी ने अपना भी स्पष्ट शब्दों में नहीं लिखा है। अब तो सरेआम, दिनदहाड़े, आड़ में नहीं सबके सामने बदनाम भी किया जाने लगा। बस रात कहने को रह गई है। अब तो फू लों की बात करने के लिए भी रात की जरूरत नहीं है। हाइब्रिड रातरानी दिन-दोपहर-शाम किसी टाइम खिल सकती है। अब तो इजहारे मोहब्बत को भी गोधुलि बेला का इंतजार नहीं रहा। तो जनाब अब हादसों के लिए रात का इंतजार कतई नहीं । अंट-शंट, बेअंट-शंट और किसी भी प्रकार के स्टंट लेने के लिए दिन सबसे महफू ज है।
दिल्ली जसे शहर में भी बुड्ढे अब रात में नहीं दिन में ही चोरों का शिकार हो रहे हैं। जब एक चोर ने दिन में एक बुढ़िया का गला रेतने का मन बनाया तो उसके साथी ने दबी जुबान में कहा कि अभी दिन है, रात को काम तमाम कर लेना। पहले चोर ने फौरन कहा जान मरवाना चाहते हो क्या, दिन के हादसे की खबर अगले दिन छपती है और रात की खबर तो सुबह ही छप जाती है। हमें भागने का वक्त नहीं मिलता इसलिए जल्दी करो..।
ठीक इसी तरह की पुनरावृत्ति बसों में भी होती है। अब साहसी पाकेटमार पर्स न देने पर पांच इंच का चाकू सरेआम दिन में चलती बस में ही दिखा देते हैं। ये गैर सरकारी प्रबंधन है जो रात का इंतजार नहीं करता। लेकिन सरकारी प्रबंधन भी इससे जरा भी पीछे नहीं है। पुलिस सही नम्बर की गाड़ी लाइसेंस, प्रदूषण और विभिन्न तरह के कागज सहित तड़क कर पकड़ती है और पैसा लेने के बाद मुस्कुराकर छोड़ती है। गलती से दिन में सहीसलामत एक पत्रकार की गाड़ी पकड़ ली। जब उसने अपना परिचय दिया तो नाश्ता पानी कराकर कहा क्या करें साहब कभी-कभी दिन में भी गलत नम्बर लग जाता है। इसके बाद देर तक पुलिस ने हवा में हाथ लहरा उसकी विदाई की जब तक को लेंस वाले चश्मे से दिखाई दिया।
जबसे दिल्ली में मेट्रो के हादसे हुए हैं दिन में मेट्रो में चढ़ते वक्त मेरे एक मित्र सकते में आ जाते हैं, बार-बार शीशे से बाहर झांकनें की कोशिश करते हैं वह यह मापने की कोशिश करते हैं कि मेट्रो धरती से कितनी ऊपर है अगर गिरे तो बच जाएंगे या क्रेन लाना पड़ेगा और क्रेन आ भी गया तो क्या पता वह भी कहीं उलट न जाए। सहीराम ने उन्हे सलाह दी अब रात में चलिए रात में हादसे कम होते हैं।
अभिनव उपाध्याय