Thursday, August 12, 2010

एक हिजड़े की अंतरआत्मा की अवाज है मेरी आत्म कथा

दिल्ली में आए अब लगभग तीन साल हो गए। बीच में घर आना जाना रहा। दो वषों से जब पत्रकारिता में सक्रिय हुआ तो किन्नरों पर काम करने का मन हुआ। लेकिन कई कारणों से मुराद पूरी नहीं हुई। जब भी किसी से उनकी गतिविधियां जानने की इच्छा जताता वह या तो हंसता या फिर उनके बारे में बहुत कुछ बुरा कह देता। लेकिन आज एक किन्नर से मिलकर आ रहा हूं। इंडिया इंटरनेशल सेंटर में ठहरी थी। उनकी पुस्तक पेंगुइन से आई है, ए ट्रुथ अबाउट मी: ए हिजड़ा लाइफ स्टोरी। इसकी लेखिका हैं किन्नर ए रेवती। रेवती वर्तमान में बहुत व्यस्त हैं। जब उनसे मैंने फोन पर बात की तो वह खुद रिशेप्शन पर लेने आई। उनका स्वभाव कहीं से भी मुङो उस हिजड़े जसा नहीं लगा जिसे मैं देखता था या जिसके बारे में लोगों से सुनता था। लेकिन बातचीत का सिलसिला जब शुरू हुआ तो उसमें उनके सभी दुख प्रकट हुए यह बातचीत एक घंटे से अधिक चली विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हुई। अपने समुदाय की अच्छाइयों बुराइयों का विवेचन सुनने लायक था। उनकी पुस्तक सहित जो चर्चाएं हुईं उसे संक्षिप्त में प्रस्तुत कर रहा हूं-

अपनी पुस्तक के बारे में उन्होने बताया कि मेरी आत्म कथा मेरी अंतराआत्मा की आवाज है। जो मैंने सहा, जो मेरे साथ हुआ और जिस संघर्ष के साथ मैंने उसका सामना किया वह सब अपनी पुस्तक में लिखने की कोशिश की है। यह आत्म कथा केवल एक रेवती की आवाज नहीं बल्कि पूरे किन्नर समुदाय की आवाज है। संभवत: पहली बार इस विषय पर एक किन्नर द्वारा लिखी गई किताब आ रही है। किन्नर रेवती ने बताया कि वह शरीर से तो पुरुष है लेकिन उसकी भावना एक स्त्री की है और इसलिए एक स्त्री के रूप में रहना पसंद है। रेवती संगमा संगठन में कार्यकर्ता भी हैं। वह दक्षिण भारत में हिजड़ों के विकास और उनके अधिकार के लिए भी व्यापक पैमाने पर काम भी करती हैं। मूलत: तमिलनाडू की सेलम जिला की रहने वाली रेवती दसवीं बाद किन्नर समुदाय में शामिल हो गई। लेकिन जब समाज में किन्नरों की स्थिति देखी तो इनके लिए कुछ करने का जज्बा आया। 9वीं पास होने के बाद वह आगे की पढ़ाई तो नहीं कर पाई लेकिन लोगों को जागरू क करने का काम भी किया। रेवती का विरोध किन्नरों के साथ हो रही यौन हिंसा से लेकर रोजगार तक है। उसका कहना है कि विदेश में किन्नर नौकरी भी करते हैं हमारे यहां भी किन्नरों में यह प्रतिभा है लेकनि उन्हे रोजगार मुहैया नहीं कराया जाता,शिक्षा का भी अभाव है। वह किन्नरों के लिए सामाजिक स्वीकृति की बात भी करती हैं जिससे उन्हे आत्मबल मिलेगा। दक्षिण की फिल्मों में अदाकारी कर चुकी रेवती तमिलनाडु सरकार द्वारा किन्नरों के हित में बिल पास करवाने बाद कर्नाटक सरकार के समक्ष इनकी शिक्षा, मतदान, औरत के रूप में पहचान तथा बुढापा पेंशन की मांग रखी जिसे सरकार ने मान लिया है। वह इसे एक बड़ी जीत मनाती हैं। यौन गतिविधियों और अपराध में किन्नरों की लिप्तता के सवाल पर वह समाज और पुलिस को दोषी मानती हैं। उनका कहना है कि पुलिस किन्नरों से अवैध वसूली करती है उन्हे भोजन आवास की कोई व्यवस्था नहीं है और सामाजिक स्वीकृति भी नहीं लिहाजा वह इन कार्यो में लिप्त हैं। किन्नरों अवसर देने की जरूरत है वह भी बेहतर काम कर सकती हैं। रेवती के मन में अपने परिवार के लिए अगाध प्रेम है। वह बताती हैं कि जब उन्होने नाम कमाया तो उनके परिवार ने भी उन्हे स्वीकार कर लिया। पुस्तक लिखने से पूर्व जो पैसा मिला उसे उन्होने अपनी मां के इलाज में लगा दिया लेकिन दुर्भाग्यवश मां जीवित नहीं बची। पिता सहित एचआईवी पाजिटिव भाई के परिवार और उसके बच्चों का खर्च रेवती खुद चलाती हैं। यह भारत सहित विभिन्न देशों में व्याख्यान देने तथा इस समुदाय की समस्या के लिए आवाज भी उठाती हैं। रेवती ने इससे पहले भी 50 किन्नरों का साक्षात्कार करके एक किताब का रूप दिया है। रेवती को कविता लिखना बहुत पसंद है और यहीं से लिखने की प्रक्रिया भी शुरू हुई। रेवती इस बात पर बल देती हैं कि हम भी आईएस, पीसीएस या अन्य सेवाओं में जा सकते हैं बस हमें मुख्यधारा में शामिल किया जाए। यदि आज हम हिजड़ा हैं तो इसमें मेरा क्या दोष है जिससे कारण समाज हमें तिरस्कृत करता है।
रेवती दिल्ली में अपने गुरुओं से भी मिलेंगी उन्होने बताया कि मेरे इस सुधार के निर्णय का मेरे गुरु ने भी विरोध किया लेकिन मैंने वही किया जो मुङो उचित लगा।

रेवती के जज्बे को सलाम! उनसे मिलने के बाद मैें देर तक सोचता रहा, उसकी लगन,मेहनत और कुछ कर गुजरने की जिज्ञासा के बारे में। इतनी लोकप्रियता के बाद भी वह राजनीति में नहीं आना चाहती। उसे पता है शक्ति भ्रष्ट करती है और अधिक शक्ति अधिक भ्रष्ट करती है। वह तो बस काम करना चाहती है जिससे उसके समुदाय के अन्य लोगों को भी हौसला मिले आगे बढ़कर कु छ करने का। रेवती की किताब का विमोचन आज होगा उम्मीद है वह लोगों को पसंद आएगी। वैसे रेवती इस किताब को कई अन्य भाषाओं में चाहती है जिससे भारत सहित विश्व के सभी लोग इसे पढ़ सके और उस समुदाय की पेरशानियों और अपनी जिम्मेदारियों को समझ सकें। बधाई रेवती पुस्तक के लिए, इस प्रयास के लिए के लिए।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...