Tuesday, December 29, 2009

सजनी हमहूं राज कुमार

नए साल की मुबारकबाद, ईद बीत गई लेकिन मियां वह मजा नहीं आया जो छन्नू हलवाई की दुकान की सेवइंयों में आता था, मियां सेवइयां ऐसी की बस मुंह में डाला और गले के नीचे उतर गई। बनारसी दास की पान की दुकान पर गिलोरी मुंंह में डालते मियां गुमसुम बोल बड़े अंदाज में बोल रहे थे। बाबू बनारसी ने चुटकी लेते हुए कहा, मियां तब सिवइयां अठन्नी की भरपेट आती थीं, आज तो महंगाई ने सेंवइयों का स्वाद ही बिगाड़ दिया है, गुमसुम ने कहा, जनाब मिले भी कैसे अठन्नी तो बाजार से ऐसे गायब हो गई जसे गधे के सर से सींग। एक वाकया बताता हूं, मियां जुम्मन के बेटे को मरने के लिए जहर नहीं मिला तो फुन्नन के बेटे ने कहा कि अठन्नी निगल लो, उसे यह सस्ते का उपाय लगा लेकिन वह आज तक खोज रहा है न अठन्नी मिली ना ही उसकी तमन्ना पूरी हुई।
बनारसी बोले महंगाई की महिमा से तो सभी दबे हैं। मियां मनमोहन सिंह देश के ही मोहन नहीं ऐसा लगता है मंहगाई के भी मोहन हैं, मिंया की मोहब्बत जितनी गद्दी से है उतनी ही महंगाई से भी है। अब राम जाने नए साल में इन दोनों से उनकी मोहब्बत कितनी परवान चढ़ती है। वैसे साठ के बाद पढ़ाए जाना वाला पाठ लोगों को समझ कहां आता है। चढ़ती मंहगाई के कारण अब तो दुकानदार के सामने, होने वाले दूल्हे को भी लुगाई की तरह शर्माना पड़ता है।
मियां गुमसुम को अपनी शादी की याद आ गई। बोल पड़े, मियां बेगम को लाने में कुल चालीस रुपए बारह आने खर्च हुए थे। वहीं बेटे की शादी में चालीस हजार में भी जरुरत पूरी नहीं हुई। ये सब बातें युवा नेता चतुर लाल सुन रहे थे। उन्होनें बाबू बनारसी से जर्दा, चूना और कच्ची सुपारी की मांग करते हुए बोले, अब देखिए न ऊंचे ओहदों पर साठ के पार लोगों को बैठाते हैं इसीलिए मंहगाई भी ऊंचे-ऊं चे चल रही है। अब कम्युनिस्ट पार्टी में देख लीजिए देर से ही सही मांग तो उठ ही गई कि सफेद बाल वालों को बाहर कीजिए। जनाब मैं तो कहता हूं कि सफेद बाल वाले ही नहीं खिजाब लगाने वालों के बारे में भी पार्टी के आला कमान सोचना चाहिए। क्योंकि सत्तासुख लेते-लेते ये लोग जनता का दुख भूल जाते हैं। खुद तो काजू-बादाम की ख्वाहिश रखते हैं लेकिन जनता के लिए रोटी पानी की फिक्र इन्हे जरा भी नहीं है। उस युवा नेता की यह व्यथा मियां गुमसुम बड़े ध्यान से सुन रहे थे। उनसे रहा नहीं गया और बोल पड़े भावी कर्णधार जी कथा तो सभी कहते हैं लेकिन व्यथा का समाधान कहां लोग करते हैं। मियां कुर्सी पर बैठने के लिए तो सभी लोग कहते हैं.. सजनी हमहूं राजकुमार। अब झारखंड में देखिए ना कोड़ा पर कोड़ा चला कि गुरु शुरु हो गए।
अभिनव उपाध्याय

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...