Thursday, February 12, 2009

ये इश्क नहीं आसां...


ं ये इश्क नहीं आसां...
प्रेम दिवस के साथ ही नागफनियां भी उगने लगती हैं। युगल लुकाछिपी शुरु कर देते हैं। ये प्रेम पुजारी बचते रहते हैं कि कहीं श्रीराम भक्तों द्वारा घंटा न बज जाए। सहीराम ने अपने कवि मित्र से पूछा कि इस बार क्या प्रोग्राम है। उन्होनें दबी जुबान से कहा कि क्या बताएं, मंहगाई ने जेब ढीली कर दी है और शिव,राम की सेना ने. . .।
मधुमास मनाने की संभावनाएं बनने से पहले बिगड़ जाती हैं। आप तो जानते ही हैं कि लव मी, लव माई डाग। दरअसल उनका डॉग बेस्लम डॉग है, बहुत चटोर है। हमेशा बढ़िया चाकलेट ही खाता है। लव के चक्कर में डॉग की इतनी सेवा हो गई कि मधु चन्द्रिका की मिलन यामिनी को मंहगाई का ग्रहण लग गया। इस बार मधुमास को खास बनाने की सारी योजनाएं पानी भरती नजर आ रही हैं। फिर भी बड़ी मुश्किल से अठन्नी-चवन्नी जोड़कर रखा था कि 14 फरवरी को प्रेम दिवस मना ही लेंगे लेकिन डर लग रहा है कि पकड़े गए तो स्वघोषित नैतिक ब्रिगेड के सैनिक कहीं तेरही न कर दें। सुना है जितना राम ने सीता को नहीं खोजा था उससे अधिक श्री राम सेना वाले युगलों को खोज रहे हैं। अब सच बताएं सहीराम जी किसी ने सच ही कहा है कि ये इश्क नहीं आसां..।
सहीराम जी पिछले दिनों एक अद्भुत दुर्घटना मेरे साथ हो गई, वसंत के आगमन पर शहर के घोषित रसिकों ने ‘प्रेम पियासाज् कवि सम्मेलन किया उसमें मुङो भी आमंत्रित किया गया था। सच कहूं तो ‘लवज् पर कविता पाठ का आमंत्रण पाकर मन लबालब हो गया। मैंने कविता शुरू की, ‘मोहिनी तेरे नैन कटार, झंकृत होते मन के तारज् अभी स्वर पंचम तक पहुंचा ही था कि मंच के पीछे भगवा और त्रिशूल धारी भाइयों को देखा और श्रृंगार रस की कविता वीर रस में बदल गई। सहीराम ने आगे पूछा, क्या आपने कविता सुनाई? उन्होंने कहा हां लेकिन ऐसे- ‘गोरी तेरे नैन कटार, कर दुश्मन को तार-तार। तोड़, मरोड़ गर्दन उसकी, बैरी छुपा है सीमा पार।ज्
परेशानी तब हो गई जब इस अद्भुत कविता को सुनाकर श्रोताओं ने मुङो श्रृगांर और वीर रस के संयुक्त कवि ‘रसिक विद्रोहीज् की संज्ञा दे दी। रसिक विद्रोही ने आंख बंद कर संत वेलेंटाइन के प्रेम मंत्र का जप किया और प्रार्थना की कि हे संत जी इन घोंघा बसंतों को सपने में समझाओ, साथ में कवि बिहारी से भी अनुरोध किया और कहा, हे रीतिकाल के केशव इन्हे विरह व्यथा से अवगत कराओ शायद इनका पाषाण हृदय पिघल जाए। इस व्यथा को सुनने के बाद सहीराम ने कहा, इस नैतिक ब्रिगेड से मुङो भी चिंता है क्योंकि इश्क तो ऐसा गुनाह है जो शादीशुदा भी करता है।
अभिनव उपाध्याय

बीन की धुन पर अब सांप नहीं, नाचते हैं सपेरे



सांप पर प्रतिबंध के कारण इसमें सपेरों की होती है भागीदारी

सूरजकुं ड मेले में देश के विभिन्न प्रदेशों से आए लोकनृत्यों को देखने में दर्शकों की रुचि रही लेकिन आजकल मेले सपेरा नृत्य की धूम है। लेकिन आश्चर्य इस बात का है यहां बीन की धुन पर सांप नहीं बल्कि सपेरे खुद अपने साथियों के साथ नाचते हैं।
इस सपेरा नृत्य के मुखिया सीसानाथ ने बताया कि अब सरकार ने सांप नचाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। लेकिन दर्शकों को अब भी बीन की धुन सुनने और सांप का नृत्य देखने का शौक है। इसलिए हमारे नृत्य को देखने के लिए देश में ही नहीं विदेशों में भी दर्शकों की कमी नहीं रही।
मूलत: नाथ संप्रदाय के ये सपेरे कानिपा नाथ को अपना गुरू मानते हैं। उनका कहना है कि लोग हमारे बारे में जानना चाहते हैं हमारे नृत्य और बीन की धुन को भी समझना चाहते हैं।
सीसाराम भारत में हरियाणा ट्यूरिज्म की तरफ से इंडिया हैबिटेट सेंटर से लेकर अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर तीस लोगों के साथ प्रस्तुति दे चुके हैं। इसके अलावा वह विश्व के कई देशों में अपनी प्रस्तुति देने गए हैं। इंग्लैंड में बैंड के साथ ‘आन लॉग सांगज् और स्काटलैंड में ‘इमेजिन ग्रेमज् की धुन पर बीन की प्रस्तुति को वह यादगार मानते हैं यही नहीं एक सौ पांच सपेरों के साथ इटली में बीन की प्रस्तुति पर दर्शकों की सराहना वह आजतक नहीं भूलते हैं। वह हरियाणा सरकार का भी धन्यवाद व्यक्त करते हैं कि जो इस कला को जीवित रखने के लिए आर्थिक सहायता और कलाकारों को प्रोत्साहन देती है।

अभिनव उपाध्याय

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...