Thursday, December 4, 2008

artical- सारा खेल टीआरपी का है

सारा खेल टीआरपी का है
चमचमाता स्टेज, शोर करते दर्शक, रंग-बिरंगे कपड़ों में प्रतियोगी, कभी गंभीर तो कभी नाजुक अंदाज में दिखते जज और सर्वगुण सम्पन्न एंकर। आमतौर से यही होता है एक रियलिटी शो में। नाज, अंदाज और नाटक से लबरेज ये रियलिटी शो वास्तव में कितने रियल है, वर्तमान में इसके ऊपर प्रश्नचिह्न लगाए जा रहे हैं। और प्रश्नचिह्न् भी क्यों न लगाए जाएं, क्या शो को हिट करने का एकमात्र साधन विवाद ही है? और विवाद को दर्शाने का माध्यम भी ऐसा कि जसे मंच पर दो प्रतियोगी नहीं, बल्कि दो महारथी युद्ध करने आ रहे हैं। कार्यक्रम के प्रायोजक एक ऐसा रोमांच पैदा करने की कोशिश करते हैं जिसको दर्शक दिल से ले बैठते हैं और फिर वही होता है जो चैनल वाले चाहते हैं। मतलब उनके कार्यक्रम की टीआरपी (टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट) में इजाफा और दर्शक प्राय: इस भ्रामक रोमांच को देखने के लिए कार्यक्रम की टीआरपी में इजाफा करते हैं।
आजकल लोकप्रिय बनने के एक नए तरीके इन कार्यक्रमों में देखे जा सकते हैं। इसके जज प्रतियोगी को पीट भी सकते हैं। अभी हाल ही में नाइन एक्स चैनल पर एकता कपूर का कार्यक्रम कौन जीतेगा बालीवुड का टिकट का कार्यक्रम चल रहा था। कार्यक्रम बस चल ही रहा था कि उसकी टीआरपी अचानक बढ़ गई वजह वही पुरानी कार्यक्रम में जज की भूमिका निभाने वाले चेतन हंसराज ने एक लड़के को पीट दिया। इसी तरह का एक और रोमांच एक बंगाली टीवी चैनल के रियलिटी शो में हुआ। यह मामला कोलकता की 16 वर्षीय दसवीं की छात्रा शिंजिनी सेनगुप्ता का था। उसे जज ने डांट लगाई और उसकी हालत बिगड़ गई। यह मामला पूरे देश में चैनलों के लिए हॉट न्यूज बन गया।
सवाल यह भी है कि प्रतियोगी को किस बात की सजा दी जा रही है? उनकी यह हालत सिर्फ इसलिए हो रही है कि वे प्रतियोगिता का हिस्सा हैं या नीरसता भरा कार्यक्र म इस तरह के ट्विस्ट से मसालेदार हो जाएगा।
इस चकाचक रियल्टी शो के जजों ने आपसी भिड़ंत क रके भी ऐसे कार्यक्रमों की टीआरपी बढ़ाई हैं। अधिक पीछे जाने की जरूरत नहीं है, 2007 में सा रे गा मा पा के रियल्टी शो में संगीतकार अनु मलिक और गायिका आलिशा चिनॉय के बीच ऐसी ही नोंकझोंक हुई थी वजह आलिशा के पसंदीदा प्रतियोगी को बाहर कर दिया गया था। वॉयस ऑफ इंडिया में बखेड़ा खड़ा करने के उस्ताद हिमेश रेशमिया ने अपने बड़बोलेपन से कार्यक्रम की टीआरपी बरकरार रखी। इसी तरह ललित सेन और गायक अभिजित के वाकयुद्ध ने कार्यक्रम का मसाला बरकार रखा।
इसके अलावा भी ऐसे कार्यक्रमों में रोचकता पैदा करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। सुस्ती से चल रहे कार्यक्रम में यह दिखाया जाता है कि प्रतियोगी को अपने ही बीच की किसी प्रतियोगी से प्रेम हो जाता है या मंच पर प्रतियोगी अपनी साथी महिला प्रतियोगी को प्रपोज कर देता है, इसे और हॉट बनाने के लिए वह किस भी ले सकता है। इस बात में कितनी रियलिटी होती है यह तो पता नहीं, लेकिन कार्यक्रम का एंकर इसे इस अंदाज में प्रस्तुत करता है जसे यह कार्यक्रम का आवश्यक अंग हो।
आजकल छोटे-बड़े सभी चैनल इस तरह के रियलिटी शोज को बढ़ावा दे रहे हैं। झलक दिखला जा, उस्तादों के उस्ताद, छोटे उस्ताद, लिटिल चैंप इत्यादि। यही नहीं अब कार्यक्रम मे रोमांच से भरने के लिए अक्षय कुमार जसे फि ल्म स्टार भी खतरों के खिलाड़ी कर रहे हैं। अगर इन रियलिटी शो को गौर से देखा जाए तो इनमें आने वाले जज भी लगभग वही होते हैं जो पहले के कार्यक्रमों में आए हुए होते हैं। कुछ संगीत गुरुओं के नाम इस प्रकार हैं- इस्माइल दरबार, आदेश श्रीवास्तव, ललित सेन, विशाल- शेखर, प्रीतम आदि लेकिन सबकी महागुरू आशा भोंसले।
इसके पीछे भी मामला टीआरपी का है। ऐसा लगता है कि जो गुरु जितना अधिक विवाद खड़ा करेगा उसे उतनी ही बार जज बनाया जाएगा। और जब दो महारथी संगीत के विश्व युद्ध में लड़ेंगे तो लोग देखेंगे ही।
पर्दे के पीछे की दुनिया भी वास्तविक दुनिया में चमक ला सकती है। बिग बॉस ने शिल्पा शेट्टी खास सेलेब्रेटी बना दिया। लेकिन सबकी किस्मत शिल्पा जसी नहीं है। इंडियन आइडल अभिजीत सावंत फिर किसी स्टार के रूप में नहीं दिखे। अमूमन यही हाल बाद के स्टार प्रतियोगियों का भी रहा।
अब रियलिटी शो का मतलब वाक् युद्ध, प्रतियोगियों की मोहब्बत, तिजारत, रूठना, मनाना, इश्क, मुश्क, गुरुओं का किसी प्रतियोगी पर अपार स्नेह, अनावश्यक टीका टिप्पणी। लेकिन सबकुछ प्रायोजित। चटकारा। एकदम मसालेदार। और जब इतना कुछ एक कार्यक्रम में मिलेगा तो दर्शक निहारेगा ही।
अभिनव उपाध्याय

विनाश काले विपरीत बुद्धि


विनाश काले विपरीत बुद्धि
हे लक्ष्मी मइया पधारो मेरे धाम, स्वागत है। हम आपका अपमान कतई नहीं करेंगे। बुरा हो सांसदों का आपको सबके सामने उछालते हैं और कहते हैं कि आपसे उनका कोई वास्ता नहीं है। जसे जीते लकड़ी मरते लकड़ी जरूरी है उसी तरह बिन लक्ष्मी सब सून। सुन ले माई सुन ले चवन्नी की अरज सुन ले। सहीराम गुजर रहे थे कि देखा चौधरी चवन्नी अगरबत्ती जलाकर लक्ष्मी जी की पूजा कर रहे थे। गौरतलब है कि चौधरी चवन्नी यूं तो बेइमान पार्टी के नेता हैं लेकिन राजनीति की आर्थिक दृष्टि से समीक्षा करने के लिए जाने जाते हैं।
सहीराम पूछ बैठे, चवन्नी जी सुना है सांसदों ने सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए पैसा लिया था? चवन्नी जी मंद मुस्कान और तिरछी तकान से बोले- सहीराम जी, रह गए ना सीधे के सीधे। अरे संसद तक पहुंचने के लिए कम पापड़ बेलने पड़ते हैं और रोज-रोज थोड़े ही बिल्ली के भाग्य से छींका टूटता है। बहती गंगा में हाथ धो लेा भाई फिर ना जाने कब मौका मिलेगा।
हमें तो तरस आता है उन सांसदों पर जिन्होंने माता लक्ष्मी का अपमान किया। वो भी सनसनी फैलाने वाले चैनलों के सामने। मुंह लजाकर रह जाता है और सोचकर बुद्धि भी चकरिया जाती है कि कैसे हैं अपने भाई-बंधु। अब आप ही बताइए नेता की कोई जाति होती है अगर ऐसे होगी बिना मुद्रा के पालिटिक्स तो राजनीति का भाग्य तो रसातल में जाएगा ही। जाने कैसे टिकट पा गए मूरख जपाट। अरे, जब लक्ष्मी मेहरबान थी तो सबके सामने छाती पीटकर बताने की क्या जरूरत थी, चले थे बड़के राजा हश्चिन्द्र बनने। दबा लेते अगल-बगल कौन देख रहा है। और यह संसद है, कोई देख भी लेता तो क्या। संसद ने सबकुछ देखा, ये भी देख लेती। लेकिन नहीं, पार्टी भक्ति चरचराई थी। सरकार रोज-रोज थोड़े ही अल्पमत में आती है लेकिन क्या करें सहीराम जी विनाश काले विपरीत बुद्धि। मैंने तो बड़ी कोशिश की थी कि चुनाव जीत जाऊं लेकिन लटक गया। बस जान जाइए कलेजा कचोट कर रह जाता है ऐसे अवसर देखकर।
इस लम्बे उत्तर के बाद सहीराम ने पूछ लिया, वामपंथियों के बारे में क्या खयाल है? मैं तो उन्हे पूरे सावन भर रात्रिभोज कराऊं। इस अल्पमत वाले ड्रामे के सूत्रधार अपने करात भाई तो थे ईश्वर उनकी सत्ता पक्ष से भी दुश्मनी बरकरार रखें। काश मेरे समय तक भी सरकार एकाध बार अल्पमत में आ जाती तो खुदा कसम जितना पैसा वोट पाने में लगाता उससे कई गुना एक वोट देने में वसूल कर लेता, काश..., कहकर चौधरी चवन्नी रुक गए उनके चेहरे पर संसद तक न पहुंच पाने की निराशा थी। सहीराम अभी कुछ पूछना चाहते कि उन्होंने कहा कि उन्हे अगले चुनाव की तैयारी करनी है और उनके पास जरा भी समय नहीं है।
अभिनव उपाध्याय

पिछलग्गू लेखक

पिछलग्गू लेखक

सहितस्य भावं साहित्यं- हम तो सबके हित की बात लिखते हैं और हमेशा इस चीज का ख्याल रखते हैं कि समाज का अहित कभी न हो, चाहे सरकार गिरे या ठहर जाए, चाहे बाबा बर्फानी पिघले या जम जाएं, चाहे कश्मीर जले या बुझ जाए, चाहे सेतु समुद्रम में सुनामी आए या वह सूख जाए। हम हमेशा इसमें पब्लिक को हित देखकर किसी न किसी विषय पर लिख ही देते हैं। ये सारी बातें पिछलग्गू लेखक संघ के नवनिर्वाचित अध्यक्ष नकलचीराम सहीराम से बड़े ही गौरव की मुद्रा में कह रहे थे। दरअसल नकलची राम की रचनाएं किसी न किसी बड़े लेखक की नकल होती हैं लेकिन नकलची राम इसे पूरी तरह चौबीस कै रेट का प्योर गोल्ड मानते हैं। सहीराम ने सोचा क्यूं न आज इनसे साहित्यिक उपलब्धियों की चर्चा की जाए। पूछ लिया, इधर कोई नई किताब लिखी है? इधर-उधर क्या हम तो हर हफ्ते कोई न कोई किताब टीप ही देते हैं वो भी पूरी प्योर, हाइब्रिड एकदम नहीं। अभी पिछले दिनों मेरी एक किताब दि लॉस्ट मुगल एण्ड फर्स्ट दुग्गल चर्चा में रही। दि लॉस्ट मुगल तो सुनी हुई पुस्तक लग रही है लेकिन फर्स्ट दुग्गल कौन है? ये हमारे पैसे वाले पड़ोसी हैं जिनकी दिली ख्वाइश थी कि उनके ऊपर एक पुस्तक लिखी जाए सो मैंने उनकी आखिरी इच्छा पूरी कर दी। इस किताब की उपलब्धि ने तो मुङो अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचाया है।
अच्छा, अपनी कुछ और रचनाओं के नाम बताएंगे? बता तो दूंगा लेकिन प्लीज पलट कर सवाल मत कीजिएगा। कुछ चर्चित पुस्तकें इस प्रकार हैं- विष्णु भट्ट की आत्मकथा और चिरौंची लाल की व्यथा, कितने पाकिस्तान जितने हिन्दुस्तान, गुनाहों का देवता दैत्यों की उदारता, ए ट्रेन टू पाकिस्तान एण्ड ए प्लेन टू कब्रिस्तान और भी बहुत सी हैं बताने लगूं तो शाम हो जाएगी। वैसे आप इतना जान जाइए कि शायद ही कोई विषय हो जिस पर मेरी लेखनी ने मैराथन दौड़ न लगाई हो। सहीराम ने कहा कि नकलची राम जी आप की पुस्तकों का पहला नाम किसी न किसी बड़े लेखक की किताब के शीर्षक से मिलता है। देखिए सहीराम जी, मैंने पहले ही कह दिया था कि आप कोई सवाल नहीं करेंगे नकलची राम ने आंख तरेर कर कहा। जो चाहे वो लांछन लगा दिया, लोकतंत्र का इतना फायदा मत उठाइए। सरकार समङो हैं क्या कि जिसका मन हुआ मुंह उठाकर बड़बड़ा दिया और कोई कुछ नहीं कहेगा। सहीराम ने उनको खुश करते हुए कहा कि मुझे आपकी प्रतिभा पर शक नहीं है। अच्छा एक बात बताइए कैसे लिख पाते हैं इतना सबकुछ? यह राज की बात है प्रॉमिस करिए किसी से बताइएगा नहीं, चलो भाई प्रॉ.. है। कट-कॉपी-पेस्ट उसके बाद हमारा रेस्ट पब्लिक कहती है ये है नकलची राम का बेस्ट। वैसे सहीराम जी मैं एक नई किताब लिखना चाहता हूं सहीराम संग नकलचीराम।
अभिनव उपाध्याय

भाईगिरी संग गांधीगिरी

भाईगिरी संग गांधीगिरी
धंधे की क म्पटीशन और आए दिन हो रहे नए लोचे से परेशान होकर अब भाई लोगों का धंधा मंदा चल रहा है। दादा लोग धंधागिरी के साथ चमचागिरी भी कर रहे हैं। आजकल सभी भाई लोग मुम्बई से लेकर दुबई तक परेशान हैं। यह बात सुलेमान भाई ने जब्बार भाई से कही। बोला, भाई ! आजकल धंधे में कोई भी डांट देता है, पुलिस ने भी हफ्ता बढ़ा दिया है। नए-नए छोरे खुद को भाई कह रहे हैं। इन मुश्किलों को ध्यान में रखते हुए सभी छोटे, बड़े, मझले भाइयों ने एक मीटिंग बुलाई है। इसमें कोई न कोई रास्ता निकाला जाएगा। मीटिंग शुरू हुई। जंगी कसाई ने कहा हमें कोई दूसरा रास्ता निकालना चाहिए जिससे पब्लिक हमें के वल भाई न समङो, कभी धंधा मंदा पड़ जाय तो हम पालिटिक्स या फिल्म टाइप लाइनों में भी हाथ आजमा सकें।
कुछ बुद्धिजीवी भाइयों ने विश्व में आई आर्थिक मंदी पर चिंता जताई और कहा कि आजकल जिस तरह पुलिस और प्रशासन ने सख्ती और वसूली बढ़ा दी है। उससे तेजी से उभरते हुए इस कारोबार पर खतरा मंडराने लगा है। हम दुर्गा पूजा, रोजा इफ्तार पार्टी से लेकर राजनीतिक पार्टियों को चंदा देते हैं लेकिन मौके पर सभी हमसे मुंह फेर लेते हैं। इस सभा में थोड़े पढ़े-लिखे लिखे इस्माइल भाई ने गले से रुमाल की गांठ खोलते हुए कहा कि भाई जान हम लोग अब गांधीगिरी करेंगे। पास में बैठे खुंखार सिंह ने कहा पागल हो गया है क्या अब पिस्तौल की जगह पिचकारी पकड़ेगा क्या? या धंधे में तेरी नीयत बदल गई है। कहीं तू पुलिस का चमचा तो नहीं, बोल नहीं तो अभी टपका दूंगा। इस्माइल ने संभलते हुए कहा खुदा कसम, भाई पहले हमारी बात सुनो चाहे बाद में खल्लास कर देना। तब खुंखार सिंह ने कहा सुनो भाई लोग अपुन लोग को इस्माइल एक आइडिया देने वाला है कुछ गांधीगिरी टाइप। सब दौड़कर सुनने आए। इस्माइल ने कहा अब हम किसी को टपकाएंगे तो उसकी मजार पर फू ल भी चढ़ाएंगे, किसी का थोबड़ा उड़ाएंगे तो उसे हास्पीटल भी ले जाएंगे। लूट का एक हिस्सा मरहम पट्टी के लिए लोगों में बांट देंगे। इससे पब्लिक में पापुलरिटी बढ़ेगी और हमारी इमेज एक लवली भाई लोगों की तरह हो जाएगी। इससे धंधा मंदा पड़ने पर भी हम लोग चुनाव वगैरह में हाथ आजमा सकते हैं। खूंखार ने पूछा ये अकल कहां से आई रे। स्माइल ने मुस्कुरा कर कहा, सरकार से। सरकार पहले बाढ़ आने को इंतजार करती है फिर राहत की घोषणा मतलब पहले मुसीबत पैदा करो बाद में समाधान। मतलब पहले भाईगिरी फिर गांधीगिरी।
अभिनव उपाध्याय

हिन्दी पखवाड़े का हिंग्लिश भाषण

हिन्दी पखवाड़े का हिंग्लिश भाषण
बैंकों, अस्पतालों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों में हिन्दी पखवाड़े की धूम देखकर हिन्दी उत्थान समिति के अध्यक्ष और स्वनाम धन्य साहित्यकार सनेही सुकुल लम्ब्रेटा ने एक ऐसा ही आयोजन कराने का मन बनाया। जब सहीराम ने उनसे पूछा कि नाम के पीछे लम्ब्रेटा क्यों लगाते हैं तो वो मुस्कु राते हुए कह देते, इससे स्मार्टनेश थोड़ी बढ़ जाती है और कोई खास बात नहीं है। लेकिन ये स्मार्टनेश उनके वक्तव्यों में भी दिखाई देती है। प्रस्तुत है हिन्दी उत्थान समिति की बैठक में उनके दिए गए भाषण के कुछ अंश-
डियर लिसनर! हमारी हिन्दी निरंतर आगे बढ़ रही है। शायद यही कारण है कि विदेशी लोग हमारी भाषा की स्मग्लिंग कर रहे हैं। हिन्दी के साथ रहना मिंस, इट विल बी ए रियल स्पिरिचुअल एक्सपिरिएंस। लेकिन हिन्दी की कंडीशन आजकल कुछ बिगड़ गई है। इसका सबसे अधिक नुकसान लिटरेचर के तिलचट्टों ने किया है। हिन्दी इंफे क्शन से ग्रस्त है उसे अंग्रेजी के एंटीबायटिक की आवश्यकता है। साहित्यकार रूपी डॉक्टर इसका एमआरआई, सीटी स्कैन, ईसीजी कराकर रोज नए इंजेक्शन लगाकर इसके साथ एक्सपेरिमेंट कर रहा है।
लेकिन एफएम चैनल वालोंे ने हिन्दी की प्रगति में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। म्यांऊ -च्यांऊ एफएम की एंकर तो प्योर इंग्लिश बोलते-बोलते आहिस्ते से सीरियस हिन्दी बोल देती है। यह फीलिंग कुछ ऐसी ही है जसे बर्गर चबाते-चबाते अचानक रसगुल्ला मुंह में आ गया हो और हिन्दी का कद फाइव गज उठ जाता है।
आइ एम रियली थैंक्स टूडेज हीरोइन्स बिकाज, ये हिन्दी फिल्मों की नायिकाएं अंग्रेजी में इंटरव्यू देते-देते जब हिन्दी में मुस्कुरा देती हैं तो एक बार में लाखों लोगों को इससे सीखने को मिलता है और हिन्दी को फोर मून (चार चांद)लग जाता है। हिन्दी फिल्मों में भी टाइटल आधा इंग्लिश में रखने का चलन है जसे दिल दोस्ती ईटीसी, जब वी मेट, किस्मत कनेक्शन, सिंह इज किंग और न जाने कितनी फिल्में अंग्रेजी नाम को पीछे और हिन्दी नाम को आगे रख रही हैं।
हमें अपने बड़ों से कुछ सीखना चाहिए। मुङो याद है वो दिन जब हमारे इंग्लिश के टीचर इंग्लिश गाली इडियट, नानसेंस, डफर कहते-कहते चोट्टा, नालायक और बेवकूफ पर आ जाते थे उनका हिन्दी प्रेम देखकर आंख भर आती है। सच ये उनका हिन्दी के साथ प्यार ही था, एकदम ट्रू लव।
साथियों! हिन्दी के डेवलपमेंट के लिए एक बात और, आप इंग्लिश की डिक्शनरी हमेशा साथ रखें, सीने से चिपका कर रखें। हिन्दी के विकास के लिए जरूरी है कि आप अपना डेली वर्क भी हिन्दी में करें। लंच, डिनर, लव, अफे यर्स, गुटुरगूं, मार-पिटाई, गाली-गलौज ऑल वर्क हिन्दी में ही हो, और हां पड़ोसी से रिक्वेस्ट करें कि प्लीज मेरी हिन्दी गाली का जबाव भी हिन्दी में ही दें। सरकार भी इस मामले में ठोस कदम उठाए जो हिन्दी में नहीं बोलेगा पर वर्ड सवा रुपए जुर्माना।
भाषण खत्म होने पर सहीराम ने पूछ लिया आप पर कितना जुर्माना लगे?
अभिनव उपाध्याय

सखी री मैं पनिया भरन नहीं जाऊं

सखी री मैं पनिया भरन नहीं जाऊं
चाहे गंगा हो या गोमती, चाहे कोसी हो या सरयू आजकल नदियों में न जाने क ौन सी दीवानगी छाई है कि बढ़ती ही जा रही हैें। लेकिन यमुना समझदार है इसे पता है कि कृ ष्ण जन्माष्टमी बीत चुकी है, चतुर, चितवन, चितचोर ने अपना चरण स्पर्श करा दिया है या कोई सरकारी आश्वासन टाइप कुछ मिल गया है कि मान जाओ हिमालय पुत्री चुनाव करीब है। हमें तुम्हारे सेहत का ख्याल है इस बार दिल्ली को थोड़ा बख्श दो, अगली सरकार बनते ही हम तुम्हारी आखिरी इच्छा पूरी कर देगें। और यमुना जी मान भी गई। थोड़ी गर्जना और थोड़ी सरकार के सुरक्षा उपायों की पोल खोल कर शांति के साथ बहने लगी।
मामला अटका है सरयूू का यूपी सरकार ने उन्हे कोई आश्वासन नहीं दिया है। सरयू जी नें भी अपनी दलील रखी कि हम राम की जन्मभूमि के पास से गुजरते हैं हमारा महत्व यमुना से कम नहीं है। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने दो टूक जवाब दिया, देखो, राम और जन्मभूमि यह बीजेपी का मसला है इसका दलितों की चेतना से कोई वास्ता नहीं है प्रधान मंत्री बनने दो तब कुछ सोचूगीं फिलहाल राहत कार्य बढ़ाने के अलावा मैं कुछ नहीं कर सकती।
बिहार में कोसी की हालत कुछ और ही है। कोसी भी सरकार को दोषी मानकर कोस रही है। ठीकठाक बह रही थी कोसी लेकिन सरकार की दरार बांध में दिखने लगी। सरकार तो चल रही है लेकिन बांध चल बसा और कोसी की लहरें और भंवर कह रही है हमारी मांगें पूरी करो। सरकार अभी कुछ सोचती आंदोलन और तेज हो गया। अब मामला बस राहत कार्य पर आकर अटका है। कोसी कह रही है मेरी सेहत देखो, तटबंधों को चौड़ा करो, मेरी गाद निकालो। लेकिन खद्दरधारी संत ने कहा चुप रह तुम्हारी दुदर्शा को हम लोग चुनावी एजेंडा बनाएंगें, इसमें विपक्ष को भी घसीटेगें बस एक गुजारिश है तुम और फैलो 15 नहीं 150 गांवों को घेरो, चार लाख नहीं चालिस लाख लोगों को बेघर करो। अरे अच्छा मौका है जनता की सेवा का मइया थोड़ा लूटने दो। नाविक से लेकर ठेकेदार, मददगार सब लूट कर खुश हैं काहे को पेट पर लात मारती हो बढ़ो थोड़ी और बढ़ो। एक मीटर और बढ़ जाती तो मजा आ जाता। कोसी फूल रही है उफना रही है हरहरा रही है। एकदम मदमस्त होकर, घुमड़-घुमड़ कर।
उधर सहीराम के गांव में भादों की रासलीला चल रही है। कलयुगी राधा ठुमक-ठुमक कर नाच रही है और मटका लेकर सखियों के संग गा रही है- सखी री मैं पनिया भरन नहीं जाऊं , ना सूङो पनघट ना सूझे मोहन, मैं बाढ़ देखि डर जाऊं। सखी री मैं पनिया भरन नहीं जाऊं।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...