Sunday, July 11, 2010

विमल रॉय: एक यथार्थवादी निर्देशक


फिल्म समाज का आइना है और फिल्मकार समाज को गहराई से देखकर एक कलमकार की तरह उसे पृष्ठों पर उकेरने वाला जनक। प्रसिद्ध फिल्मकार विमल राय उन्हीं फिल्माकारों में से थे जिन्होने समाज की सही दशा अपनी फिल्मों के माध्यम से लोगों के सामने लाए और दर्शकों को एक नए सिनेमा से रूबरू कराया। हम आज उनकी जन्मतिथि को उन्हे याद करते हैं और उनके कार्य को शत शत नमन करते हैं।
हिंदी फि ल्म जगत में मिल राय एक ऐसी सुहानी बयार की तरह आये जिन्होंने अपनी ‘देवदास, दो बीघा जमीन, ‘परणीता, ‘बिराज बहू और बंदिनी जैसी फि ल्मों से मनोरंजक और यर्थाथ सिनेमा की पारंपरिक सीमाओं को तोड़ दिया । साथ ही उन्होंने फि ल्म निर्माण के लगभग हर पक्ष को एक सर्वथा नया छंद दिया। समीक्षकों के अनुसार उनकी लगभग हर फिल्म विषय को बेहतरीन ढंग से उठाने की कला, संगीत, फिल्मांकन, अभिनय, गीत चिंत्राकन के कारण फि ल्मकारों के लिए आज भी पाठ्यपुस्तक का काम करती हैं। मिल राय की फि ल्में मानीय रिश्तों और समाज की बलती प्रृतियों को बहुत गहराई तक कुरेती हैं और उनकी फ ोटोग्राफि क नजर मधुमति जैसी फि ल्मों में प्रकृति की सूक्ष्म धड़कनों को महसूस करती है। 12 जुलाई 1909 को ढाका में जन्मे मिल राय ने श्याम श्वेत फिल्मों में फि ल्म निर्माण के कुछ ऐसे प्रतिमान गढ़ दिए जिन्हें तोड़ना आज के फि ल्मकारों के लिए भी मुश्किल है।
फि ल्मकार अनर जमाल उनके बारे में कहते हैं कि मिल राय और उनके ौर के फि ल्मकार सामाजिक सरोकारों के प्रति सेंनशील होते थे और उन्हें साहित्य एं संगीत की समझ होती थी। इससे उस ौर के फि ल्मकारों की फि ल्मों में सामाजिक, राजनीतिक, लित मिर्श और महिला मिर्श की स्पष्ट छाप दिखाई है। उनका कहना है कि र्ष 1953 में प्रर्शित उनकी फि ल्म ‘दो बीघा जमीन की प्रासंगिकता को इक्कीसीं सी में देखा जा सकता है। उस वक्त जब दूनिया ने ‘सुपर इकोनामिक जोन का सपना भी नहीं देखा था, मिल राय जैसे यथार्थवादी निर्देशक ने इस बात की कल्पना कर ली थी कि आने वाले समय में इसके नाम पर किसानों और खेतिहर मजूरों को किस तरह के संकट का सामना करना पड़ेगा। फि ल्म समीक्षक और इतिहासकार अमरेश मिश्रा इस संदर्भ में कहते है कि सामाजिक बला के दौर में विमल राय और महबूब दो प्रमुख फि ल्मकार थे। जहां विमल राय लोकतांत्रिक चेतना के वाहक थे और उनकी फि ल्मों का फलक इतना विशाल था कि उन्हें किसी खास विचारधारा से बांधा नहीं जा सकता, दूसरी तरफ महबूब की फि ल्मों का समाजावादी रूझान एकदम स्पष्ट था। विमल राय ने ‘सुजाता के जरिये समाज में व्याप्त छुआछूत की समस्या को परे पर उतारा। वहीं ‘परख के जरिये देश की चुनाव पद्धति को परखने की कोशिश की और यह भष्यिवाणी करी कि इस देश की चुनाव प्रणाली भ्रष्ट होती जा रही है। उन्होंने कहा, ‘‘विमल राय में, व्यासायिक सिनेमा की गहरी समझ थी और हर दर्शक की नब्ज से भली भांति परिचित थे। आजकल के फि ल्मकारों की कई फि ल्में उनकी फि ल्मों से प्रेरित नजर आती हैं। समाज, देश की बुराइयों के साथ ही स्त्रियों की समस्याओं पर भी उनकी दृष्टि थी। हिंदी सिनेमा में आज भी नायक प्रधान फि ल्में बनती हैं, जबकि मिल राय उस क्त नायिकाओं की अभिनय क्षमता को न केल सामने लाये बल्कि उन्होंने फि ल्मों के नाम भी महिलाओं पर रखे। छायाकार के रूप में ‘न्यू थियेटर कंपनी में काम करने वाले विमल राय को निर्देशन का सफ र तय करने में उन्हें आठ साल लग गये। उन्होंने 1944 में पहली हिंदी फि ल्म ‘हमराही का निर्देशन शुरू किया, जो बांग्ला फि ल्म ‘उयेर पाथेज का हिंी संस्करण थी। फिल्म की नई धारा की शुरूआत करने वाला यह सात जनरी 1966 को मुंबई में उनका निधन हुआ। लेकिन फिल्मों और विचारों के माध्यम से वह हमारे बीच सदैव मौजूद रहेंगे।
दीपक सेन

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