Saturday, August 8, 2009

दिल्ली से गायब होती गौरैया




चूं चू करती आई चिड़िया, दाल का दाना लाई चिड़िया। ये गीत बच्चे कभी मुंडेरों पर गौरैया देखकर जोर से गाते थे। लेकिन अब न मुंडेरों पर गौरैया दिखती है और न ही बच्चों के मुंह से ये गीत सुनाई देते हैं। घर, रसोई और बरामदे में कभी अपनी आवाज से गुलजार करने वाली गौरैया अब नहीं दिखती। इस संबंध में यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के वन्य जीव विशेषज्ञ फैय्याज ए खुदसर का कहना है कि अगर शहरों में गौरैया नहीं दिख रही तो इसके कई प्रमुख कारण हैं, जिसमें कबूतरों की संख्या में इजाफा भी है क्योंकि दिल्ली में कबूतरों को दाना दिया जाता है, जिससे कबूतर एक जगह इकट्ठा हो जाते हैं और उसी इलाके में उनकी संख्या बढ़ती जाती है। अब जहां गौरैया रहती थी, वहां कबूतर रहने लगे हैं। गौरैया का वैज्ञानिक नाम पैसर डोमेस्टिकस है, जिससे इसे घरेलू चिड़िया कहा जाता है। लेकिन दुर्भाग्यवश दिल्ली में ऐसे मकान बनाए जा रहे हैं कि उनमें चिड़ियों के लिए जगह नहीं है। गौरैया कीड़ों में इल्लियां खाती हैं, जिसमें प्रोटीन मिलती ये इल्लियां मिट्टियों में होती हैं, लेकिन दिल्ली में अब जमीन पर भी कंक्रीट बिछाई गई है इसलिए इनको खाद्य सुरक्षा नहीं मिल पा रही है। इसके अतिरिक्त इन्हें प्रजनन करने के लिए जगह का अभाव है।
हालांकि इस संबंध में दिल्ली विश्वविद्यालय में पर्यावरण विभाग में वन जीव विशेषज्ञ डा. एम शाह हुसैन का कहना है कि गौरैया बड़े शहरों की चिड़िया नहीं है। लेकिन दिल्ली में इसे रहने के लिए माकूल जगह नहीं है। झाड़ियां कम हो गई हैं। ये घास, पौधों के बीज खाती हैं। लेकिन अब दिल्ली में सजावटी पौधे लगाए जा रहे हैं, जो इसके लिए उपयोगी नहीं है। दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में जो खेत हैं, उनके बीज वह दवाओं के छिड़काव के कारण नहीं खा सकते। लेकिन इस संबंध में ओखला पक्षी विहार के संरक्षक जेएन बनर्जी का कहना है कि गौरैया आजकल बड़े होटलों में भी खाने में प्रयोग हो रही है, जिससे इसकी संख्या तेजी से घटी है।
अभिनव उपाध्याय

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