Saturday, January 3, 2009

एक न भूलने वाली शाम


एक न भूलने वाली शाम
ऑफिस की भाग-दौड़ और रिपोर्टिग के बाद जब शाम को खबर लिखने बैठा तो मेरे सहकर्मी रत्नाकर मिश्र ने एक बड़ी अच्छी सूचना थी। उन्होनें कहा कि प्रसिद्ध बांसुरी वादक पं.हरिप्रसाद चौरसिया मंडी हाउस के कमानी सभागार में आ रहे हैं और कार्यक्रम शायं सात बजे से है। मैं जल्दी से काम निपटा के उनके साथ 433 नम्बर बस से जंतर-मंतर पहुंच गया और फिर पद यात्रा के बाद आडिटोरियम। श्रोता बड़ी संख्या में कठोर ठंड की परवाह किए बगैर आए हुए थे। औपचारिकताओं के बाद कार्यक्रम शुरू हुआ। पंडित जी ने पहले राग सरस्वती पर आलाप और फिर पं. भवानी प्रसाद के पखावज के साथ जुगलबंदी सुनाई। सुरों के आरोह-अवरोह के बीच बांसुरी और पखावज पर थिरकती अंगुलियां और स्वर लहरियों का आकर्षण दर्शकों को ताली बजाने पर मजबूर कर रहा था। इसके बाद उसी राग में पं योगेश शम्शी के साथ तबले पर जुगलबंदी हुई। बांसुरी और तबले का साथ भी लोगों को खूब भा रहा था। इसके बाद राग यमन में पंडित जी ने सबसे साथ मिलकर बांसुरी बजाई इसमें उनका साथ बांसुरी पर सुनील अछावत और तानपुरे पर रेखा चतुर्वेदी ने दिया।
इसके बाद श्रोता राग भैरवी और दरबारी की मांग करने लगे लेकिन पंडित जी ने कहा कि यह उन रागों को सुनाने का वक्त नहीं है। इसलिए बात पहाड़ी राग पर आकर टिक गई। पंडित योगेश शम्शी की तबले पर थिरकती अंगुलियां और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी की तान से उठती स्वर लहरियों ने शांत माहौल में भी एक स्पंदन भर दिया था।
शाम जसे जसे ढल रही थी कार्यक्रम अपने चरम पर पहुंच रहा था। बांसुरी की धुन ने अपने मोह पाश में ऐसा बांधा कि श्रोता उसमें खोते चले गए। एक लंबी सांस के बाद बांसुरी की फूंक और उससे उठी जवान स्वर लहरियां चौरसिया जी कि उम्र को नकार रही थी और राग पहाड़ी सुनने पर बस ऐसा ही प्रतीत होता था कि हम दिल्ली में कंक्रीटों के जंगल से निकल कर पहाड़ की उन हसीन वादियों में चले गए हैं जहां हरियाली है, शांति है और लोक धुन पर नाचती पहाड़ी औरतें अपने पहाड़ का बखान कर रही हैं।
कार्यक्रम के समापन के बाद बाहर निकलते ही कपां देने वाली ठंड थी। हमने फुटपाथ पर चाय पी और रत्नाकर ने सिगरेट सुलगाई। रात के साढ़े नौ बज चुके थे अब बस का इंतजार था। मुङेा पहले बस मिल गई और मैं इस न भूलने वाली शाम और बांसुरी की आवाज को अपने मन मस्तिष्क में संजोए चला जा रहा था।
अभिनव उपाध्याय

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...