Wednesday, April 14, 2010

पथिक को तरसती राजों कि बावली

दोस्तों, सूरज आग उगल रहा है, और हम बूँद-बूँद को तरस रहे हैं. लेकिन पहले ऐसा नहीं था. शायद आज हमारी प्यास कुछ ज्यादा बढ़ गई है. अगर आज हम दिल्ली कि बात करें तो कभी यमुना में इतना पानी हुआ करता था कि जिसे लोग केवल पीते नहीं थे बल्कि दिल कि प्यास बुझाते थे. नहाकर, तैर कर,दुबकी लगाकर. लेकिन आज कि यमुना देखकर शायद कृष्ण भी बंशी बजने में संकोच करें. दोस्तों दिल्ली में मुग़ल काल में पानी को लोंगों कि जरुरत मानकर बादशाहों और राजाओं ने बावलियों का निर्माण करवाया था, कुछ बावलियां आज भी मौजूद हैं. हमारी कोशिश है कि दिल्ली कि कुछ बावलियों कि स्थिति से हम आपको रू-ब-रू कराएँगे. उम्मीद है आपके सुझाव हमें प्रेरणा देंगे.



गुजरे जमाने की बात है जब बावलियां जीवन के लिए उतनी ही जरुरी थी जितना घर। लेकिन आज हालात बदल गए हैं। दिल्ली में मुगल काल में बनी कुछ बावलियां अभी अस्तित्व में हैं। लेकिन इन्हे देख कर यह कहना मुश्किल है कि कभी यह लोगों के लिए जल के बड़े स्रोत के रूप में जानी जाती थी। दिलचस्प यह है कि आज भी भारतीय पुरातत्व विभाग के पास दिल्ली की बावलियों की स्पष्ट जानकारी नहीं है। दिल्ली की बहुत सी बावलियां अब अपना अस्तित्व खो चुकी हैं जो बची हैं वह कूड़े के ढेर में तब्दील हो चुकी हैं और जिन बावलियों में अभी पानी दिखता है वह इतना बदबूदार है कि पर्यटक क्या आम आदमी भी इनके पास फटकना पसंद नहीं करता।
दक्षिण दिल्ली में मेहरौली के पास मेहरौली आर्कियोजिकल पार्क में अधम खां गुम्बद से थोड़ी दूर चार स्तरों वाली राजों की बावली है जिसे राजों की बैन भी कहते हैं। इसके बारे में कहा जाता है संभवत: यह नाम कारीगरों द्वारा इस्तेमाल किये जाने के कारण मिला है। इसकी ऊपरी दीवार के भीतर की सीढ़ियां उसे एक मस्जिद से जोड़ती हैं जिसकी छतरी में 912 हिजरी लिखा है। एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि यह सिकंदर लोदी के शासनकाल (1498-1517) में बनवाया गया था। लेकिन स्थानीय लोगों की और ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्थाओं द्वारा उपेक्षित यह बावली आज बस असामाजिक तत्वों का अड्डा बनी है। यहां खुलेआम शराब की बोतलें और अन्य चीजें बिखरी पड़ीं हैं। कूड़े करकट का ढेर भी यहां देखा जा सकता है।
इस ऐतिहासिक बावली की ऐसी उपेक्षा पर भारतीय पुरातत्व विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा पूछे जाने पर उनका कहना है कि मई तक इसके सौंदर्यीकरण का कार्य शुरु कर दिया जाएगा। जहां तक गंदगी की बात है, इसके लिए स्थानीय लोंगो से भी सहयोग की अपेक्षा की जाती है यदि वह जागरुक रहेंगे तो कोई असामाजिक तत्व वहां नहीं आएगा।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...