गुरु-मंत्र
शोभना नारायणन
इस बार अपने गुरु बिरजू महाराज को याद करते हुए सुप्रसिद्ध नृत्यांगना शोभना नारायण कहती हैं कि महाराजजी तो मेरे लिए देवता हैं। वे कहती हैं कि ये उनका स्नेह ही था जो उन्होंने मुङो लोगों के सामने प्रफेशनल रूप में पेश किया। इतना ही नहीं देश-विदेश में अनेक कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने मुझसे करवाई। ऐसा गुरु मिलना आज दुर्लभ है। शोभनाजी कहती हैं कि नृत्य की जो भी बारीकियां या तकनीक मुझमें हैं वे सब गुरु बिरजू महाराजजी की देन हैं। वे कहती हैं कि आज भी जब मैं उनको याद करती हूं तो कृतज्ञता से भर उठती हूं।
सीखना लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। आदमी बचपन से सीखता है। सीखने का मेरा यह क्रम आज भी जारी है। कलाओं में नृत्य एेसी कला है, जो गुरु का सान्निध्य पाकर निखरती है। शिष्य में आत्मविश्वास बढ़ता है। मेरी कथक की पहली गुरु साधना घोष रहीं। कलकत्ते में मैंने उनसे एक साल तक नृत्य की प्रारंभिक तालीम ली। बाद में पिताजी का तबादला मुंबई हो गया। वहां मुङो जयपुर घराने के कुंदन लाल ने छह साल तक नृत्य की बारीकियों से अवगत कराया। नृत्य की तरफ मेरे बढ़ते रुझान और कला की समझ को देखते हुए पिताजी ने कथक के बड़े उस्तादों से शिक्षा दिलाना जरूरी समझा। इसके लिए पिताजी कथक के नृत्य सम्राट बिरजू महाराज के पिता के पास गए। पिताजी ने बिरजू महाराज से मेरे लिए निवेदन किया और वे तैयार हो गए। मैं आज जो कुछ भी हूं, उसका सारा श्रेय बिरजू महाराज को जाता है। मैं उनकी शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मेरे जंगपुरा निवास पर नियमित रूप से सुबह-शाम आकर मुङो तालीम दी। किसी-किसी दिन तो सीखने-सीखाने का क्रम पूरे दिन चलता। बिरजू महाराज ने दस सालों में कथक के सूक्ष्म से सूक्ष्म भावों और शरीर की गूढ़ मुद्राओं को मेरे भीतर उतार दिया।
नृत्य कथक की परिपूर्ण शैली है। कथक से ही कथा और कथाकार शब्द की व्युत्पत्ति हुई है। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में श्लोक में इसका वर्णन मिलता है। इसका प्रयोग ब्राह्मी लिपि में किया गया है। बनारस में कथक का उल्लेख प्राकृत भाषा में भी मिलता है, जिससे इसकी प्राचीनता का पता चलता है। महाराजजी ने नृत्य की तकनीक को बड़ी खूबसूरती से मुङो सिखाया। उन्होंने शारीरिक संरचना और अंग की खूबसूरती को निखारा। महाराजजी ‘डांस ड्रामाज् भी बहुत ही सलीके से कंपोज करते थे। उनसे काफी चीजें सीखने को मिलीं। उन्होंने ‘अप्रोच टू कोरियोग्राफीज् के साथ मेरे अंदर कथक की आत्मा भर दी। आज मैं अपने को बिल्कुल बदला हुआ पाती हूं। महाराजजी ने जिनको भी सिखाया उसकी अपनी खासियत है, सबकी कला की अपनी खुशबू है। प्रत्येक साधक आखिरी सांस तक कला का साधक और पुजारी है। गुरु की डांट हमारे लिए प्रसाद थी। उनकी बातों से हम आज भी लाभान्वित होते हैं। मुङो याद आ रहा है कि 1968 में सप्रू हाउस में उनका कार्यक्रम हुआ था। कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने मुझसे करवाई। यही नहीं बहुत सारे अपने कार्यक्रमों में उन्होंने मंच पर आने से पहले मुङो भेजा। यह मेरे प्रति उनका स्नेह है। मैं उनके प्रति कृतज्ञ हूं कि उन्होंने मुङो लोगों के सामने प्रफेशनल रूप में पेश किया। महाराजजी के साथ 1970 के बाद देश-विदेश में अनेक कार्यक्रम किए। पेरिस, लंदन, अमेरिका के कई शहरों में मैं उनके साथ गई। मंच पर नृत्य करने के बाद अंत में सभी लोग तराना के समय एक साथ नृत्य करते थे। इस दौरान मैंने कई शानदार प्रस्तुतियां दीं।
अपने शिष्यों के प्रति महाराजजी का लगाव इतना अधिक होता था कि उनका मेकअप वह स्वयं किया करते थे। मेरा मेकअप महाराजजी ने खुद किया है। 1969 से लेकर 74 तक नृत्य की जितनी भी मेरी तस्वीरें हैं, उनमें मेरा मेकअप महाराजजी ने ही किया है। इस दौरान मैं मिरांडा हाउस की छात्रा थी। नृत्य के प्रति समर्पित होने में मेरी पढ़ाई कभी बाधा नहीं बनी। हालांकि, मैं भौतिकी की छात्रा रही हूं। और इसी विषय में पीएचडी भी की है। बचपन से पढ़ाई में अच्छी रही। सभी परीक्षाओं में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होती रही। पढ़ाई में लगन और मेहनत के चलते मैं 1976 के सिविल सर्विसेज में चुनी गई। मैंने अब तक एेतिहासिक और पौराणिक चरित्रों को आधार बनाकर ढेर सारी प्रस्तुतियां दी हैं।
प्रत्येक शागिर्द का यह धर्म होता है कि वह अपने गुरु की परंपरा को आगे बढ़ाए। गुरु के लिए यह सबसे बड़ी खुशी है कि कथक परंपरा को उनके शिष्य मर्यादा के साथ आगे ले जा रहे हैं। हम जो करते हैं, उसका समाज पर असर पड़ता है। जो कलाकार कला में डूबा है, उसके लिए कला आत्मा है। जो एेसा नहीं करते उनके लिए कला इस्तेमाल करने की चीज या वस्तु होती है। नृत्य जब तक हृदय की अतल गहराइयों से न उपजा हो तब तक वह अपनी संपूर्णता और प्रभाव में साकार नहीं होता। महाराजजी की 70 के दशक में लाल किला, बाम्बे, सप्रू हाउस में दी गई प्रस्तुति आज भी आखों में बसी है। कथक में महाराजजी ने अलग-अलग वाद्ययंत्रों को लेकर जो कंपोजीशन किया है, वह अद्भुत होने के साथ ही बेजोड़ है। मेरे लिए बिरजू महाराजजी देवता हैं।
प्रस्तुति-अभिनव उपाध्याय