Wednesday, August 25, 2010

बस काम करते रहिये........

काम करो और दिल लगा के करो, मन लगा कर करो, जरूरी है कि दिमाग भी वहीं हो, इसलिए बस तन्मयता से काम करो। तुम्हे पता है जब इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति हुई थी तो वहां पर लोग अठ्ठारह घंटे लगातार काम करते थे। बिना रूके बिना थके। क्या तुम्हे पता है रूस के सैनिक लगातार लड़ते थे विजय के लिए। बिना खाए पिए भूखे प्यासे। इसलिए काम को युद्ध की तरह लो, बस करते जाओ। काम करना अपना हुनर दिखाने का मौका है इसलिए इससे चूको मत। काम करो लेकिन फल की चिंता मत करो। यह मैं नहीं कह रहा यह गीता में लिखा है। आप लोग गीता को तो मानते हैं न? बस उसी की बात को मन में बिठाकर काम करिए। उक्त उत्साहवर्धक बातें एक उच्च संस्थान के अति वरिष्ठ अधिकारी अपने निम्न कर्मचारियों से कह रहे थे।

संस्थान के निम्न कर्मचारी पिछले कई महीने से वेतन न पाने के कारण कुम्हलाए थे। नाटेराम विद्रोही ने तन कर कहा साथियों अब काम बंद। बहुत हो गया गीता का प्रवचन अब महाभारत होगी। रोज रोज की प्रवचन से कान कुकुहाने लगा है। मालिक है कि मक्खीचूस, क्या दीवाली क्या होली क्या ईद क्या रमजान, स्वतंत्रता दिवस को सरकार भी छुट्टी देती है लेकिन ये तो आजादी के बाद भी गुलाम बनाकर रखा है। साथियों हम कब तक गुलाम बने रहेंगे। अब तो सांसद संसद में जूता चलाने गाली गलौज करने के बाद भी अपनी तनख्वाह बढाने के लिए अड़े हैं फिर हम तो दिन रात एक करके मालिक के लिए मर रहे हैं और यह मालिक का तोता हमारी तनख्वाह न बढाकर रोज प्रवचन सुना जाता है। साथियों अब बात से बात नहीं बनेगी हमें कुछ करना होगा। मालिक के मिट्ठू को कर्मचारियों की बात पता चली तो वह थोड़ी देर के लिए सकते में आ गया।

बात मालिक तक भी पहुंची। मालिक को मजदूरों का पैसा बढाने के नाम पर खुजली होती थी और हड़ताल जसा कुछ सुनकर खुजली बढ़ जाती थी। तोता तलब हुए, हालात का जायजा लिया गया। मालिक ने तोते को मिर्च बढ़ाई, अपना कान खुजलाया और जोर से बोला कोई हड़ताल नहीं होनी चाहिए। तोता आवाज सुनकर तुलतुलाया बोला, मालिक अब तो आप तनख्वाह भी देर से देने लगे हो कितनों की तो महीनों से बाकी है कुछ कृपा कर दीजिए साल भर से प्रवचन दे रहा हूं लेकिन नाटेराम ने विद्रोह कर दिया है। इसलिए मजदूर नाराज हैं। मालिक ने फिर कान खुजलाया बोला तुम्हारी तनख्वाह दुगनी कर देता हूं और नाटेराम की तीन गुनी। तोता अब स्पष्ट बोल रहा था। कहा, मालिक कैसी हड़ताल इस बार हिटलर की कथा सुनाऊंगा सब सही हो जाएगा।

Tuesday, August 17, 2010

खेल खेल में खेल..

दिन बदलते देर नहीं लगती, मेरी बात मानों एक दिन शेरा का भी दिन बदलेगा। लोग शेरा के पीछे पड़े हैं हम कहते हैं कि भइया दम हो तो आगे आओ। लेकिन वही है न कि पीठ पीछे जो मन में आए कह दो और सामने आने पर मुकर जाओ। चाय बेचने वाला पल्टू यह बात लोगों को समझा रहा था। वह कह रहा है कि लोग समझ नहीं रहे हैं कि शेरा जंगल का राजा है और देश के राजा टाइप लोग ही इस खेल के खेवनहार हैं। राष्ट्रमंडल खेल परियोजना में काम करने वाला मजदूर रफ्फू सुनते-सुनते बोल पड़ा, चाचा लोग शेरा के पीछे नहीं पड़े हैं ये राजा टाइप लोग जनता के पीछे पड़े हैं कि इनकी दाल रोटी इस मंहगाई में भी कैसे चल रही है? चाचा पल्टू, शेरा का दिन तो बदलेगा लेकिन हमारे दिन बिगाड़ कर। खेल-खेल में जाने कैसा खेल शुरू हो गया कि हमारे मुंह से रोटी और सिर से चोटी गायब हो गई। पल्टू ने रफ्फू को चौंक कर देखा, बोला रोटी का तो पता है लेकिन चोटी का नहीं। रफ्फू ने सिर सहलाते हुए कहा कि चाचा ईंट गारा ढोते-ढोते सिर पर एक बाल तक नहीं बचा तो चोटी कैसे रहेगी। सरकार अपनी नाक बचाने पर लगी है और कान से कुछ भी सुनने को तैयार है।

पल्टू-रफ्फू संवाद का लोगोंे ने जम कर आनंद लिया। लेकिन टीवी प्रेमी राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों को लेकर टेलीविजन से चिपके हैं। गिल को भरोसा है कि गिली-गिली छू जसा कुछ होगा जिससे सब कुछ सही से हो जाएगा। मुख्यमंत्री भी मीडिया के सामने तैयारियों को लेकर हलकाते हुए बयान दे रही हैं। सुना है बिना फल-फू ल वाले पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं जो केवल सुंदर लगेंगे। लेकिन सावन के अंधे को उससे क्या फायदा। कायदा तो यह है कि इनसे कुछ मिले भी। तो जनाब अब तक दौड़ने से घोड़ी बिदकती थी लेकिन अब तो खबर सुनकर दौड़ने वाले खिलाड़ी भी बिदक रहे हैं। यही सब देखकर खेल मंत्री ने अपने संतरी को भेजा होगा कि जाओ स्टेडियम देखकर आओ और जब उसने हाल बताया होगा तो बस एक ही चिर परिचित बयान याद आया कि अब तो बारात दरवाजे पर आ गई है इसके स्वागत की तैयारी की जाए। लेकिन क्या करें जब भी स्वागत की तैयारी होती है मौसम नासाज हो जाता है और दिल्ली का हाल तो और बुरा है यहां जब बादल छाए होते हैं तभी से जाम लगना शुरू हो जाता है और बारिश के बाद तो पूछिए मत। अब जाम में काम कैसे होगा। मंत्री परेशान हैं बयान से, संसद के घमासान से, कंपनियों के काम से। एक नेता ने जोर से कहा हम बारातियों की तैयारी में लगे हैं और विपक्ष शेरा की पूंछ में आग लगाने पर तुला है।
कार्टून- मंसूर नकवी
अभिनव उपाध्याय

Thursday, August 12, 2010

एक हिजड़े की अंतरआत्मा की अवाज है मेरी आत्म कथा

दिल्ली में आए अब लगभग तीन साल हो गए। बीच में घर आना जाना रहा। दो वषों से जब पत्रकारिता में सक्रिय हुआ तो किन्नरों पर काम करने का मन हुआ। लेकिन कई कारणों से मुराद पूरी नहीं हुई। जब भी किसी से उनकी गतिविधियां जानने की इच्छा जताता वह या तो हंसता या फिर उनके बारे में बहुत कुछ बुरा कह देता। लेकिन आज एक किन्नर से मिलकर आ रहा हूं। इंडिया इंटरनेशल सेंटर में ठहरी थी। उनकी पुस्तक पेंगुइन से आई है, ए ट्रुथ अबाउट मी: ए हिजड़ा लाइफ स्टोरी। इसकी लेखिका हैं किन्नर ए रेवती। रेवती वर्तमान में बहुत व्यस्त हैं। जब उनसे मैंने फोन पर बात की तो वह खुद रिशेप्शन पर लेने आई। उनका स्वभाव कहीं से भी मुङो उस हिजड़े जसा नहीं लगा जिसे मैं देखता था या जिसके बारे में लोगों से सुनता था। लेकिन बातचीत का सिलसिला जब शुरू हुआ तो उसमें उनके सभी दुख प्रकट हुए यह बातचीत एक घंटे से अधिक चली विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हुई। अपने समुदाय की अच्छाइयों बुराइयों का विवेचन सुनने लायक था। उनकी पुस्तक सहित जो चर्चाएं हुईं उसे संक्षिप्त में प्रस्तुत कर रहा हूं-

अपनी पुस्तक के बारे में उन्होने बताया कि मेरी आत्म कथा मेरी अंतराआत्मा की आवाज है। जो मैंने सहा, जो मेरे साथ हुआ और जिस संघर्ष के साथ मैंने उसका सामना किया वह सब अपनी पुस्तक में लिखने की कोशिश की है। यह आत्म कथा केवल एक रेवती की आवाज नहीं बल्कि पूरे किन्नर समुदाय की आवाज है। संभवत: पहली बार इस विषय पर एक किन्नर द्वारा लिखी गई किताब आ रही है। किन्नर रेवती ने बताया कि वह शरीर से तो पुरुष है लेकिन उसकी भावना एक स्त्री की है और इसलिए एक स्त्री के रूप में रहना पसंद है। रेवती संगमा संगठन में कार्यकर्ता भी हैं। वह दक्षिण भारत में हिजड़ों के विकास और उनके अधिकार के लिए भी व्यापक पैमाने पर काम भी करती हैं। मूलत: तमिलनाडू की सेलम जिला की रहने वाली रेवती दसवीं बाद किन्नर समुदाय में शामिल हो गई। लेकिन जब समाज में किन्नरों की स्थिति देखी तो इनके लिए कुछ करने का जज्बा आया। 9वीं पास होने के बाद वह आगे की पढ़ाई तो नहीं कर पाई लेकिन लोगों को जागरू क करने का काम भी किया। रेवती का विरोध किन्नरों के साथ हो रही यौन हिंसा से लेकर रोजगार तक है। उसका कहना है कि विदेश में किन्नर नौकरी भी करते हैं हमारे यहां भी किन्नरों में यह प्रतिभा है लेकनि उन्हे रोजगार मुहैया नहीं कराया जाता,शिक्षा का भी अभाव है। वह किन्नरों के लिए सामाजिक स्वीकृति की बात भी करती हैं जिससे उन्हे आत्मबल मिलेगा। दक्षिण की फिल्मों में अदाकारी कर चुकी रेवती तमिलनाडु सरकार द्वारा किन्नरों के हित में बिल पास करवाने बाद कर्नाटक सरकार के समक्ष इनकी शिक्षा, मतदान, औरत के रूप में पहचान तथा बुढापा पेंशन की मांग रखी जिसे सरकार ने मान लिया है। वह इसे एक बड़ी जीत मनाती हैं। यौन गतिविधियों और अपराध में किन्नरों की लिप्तता के सवाल पर वह समाज और पुलिस को दोषी मानती हैं। उनका कहना है कि पुलिस किन्नरों से अवैध वसूली करती है उन्हे भोजन आवास की कोई व्यवस्था नहीं है और सामाजिक स्वीकृति भी नहीं लिहाजा वह इन कार्यो में लिप्त हैं। किन्नरों अवसर देने की जरूरत है वह भी बेहतर काम कर सकती हैं। रेवती के मन में अपने परिवार के लिए अगाध प्रेम है। वह बताती हैं कि जब उन्होने नाम कमाया तो उनके परिवार ने भी उन्हे स्वीकार कर लिया। पुस्तक लिखने से पूर्व जो पैसा मिला उसे उन्होने अपनी मां के इलाज में लगा दिया लेकिन दुर्भाग्यवश मां जीवित नहीं बची। पिता सहित एचआईवी पाजिटिव भाई के परिवार और उसके बच्चों का खर्च रेवती खुद चलाती हैं। यह भारत सहित विभिन्न देशों में व्याख्यान देने तथा इस समुदाय की समस्या के लिए आवाज भी उठाती हैं। रेवती ने इससे पहले भी 50 किन्नरों का साक्षात्कार करके एक किताब का रूप दिया है। रेवती को कविता लिखना बहुत पसंद है और यहीं से लिखने की प्रक्रिया भी शुरू हुई। रेवती इस बात पर बल देती हैं कि हम भी आईएस, पीसीएस या अन्य सेवाओं में जा सकते हैं बस हमें मुख्यधारा में शामिल किया जाए। यदि आज हम हिजड़ा हैं तो इसमें मेरा क्या दोष है जिससे कारण समाज हमें तिरस्कृत करता है।
रेवती दिल्ली में अपने गुरुओं से भी मिलेंगी उन्होने बताया कि मेरे इस सुधार के निर्णय का मेरे गुरु ने भी विरोध किया लेकिन मैंने वही किया जो मुङो उचित लगा।

रेवती के जज्बे को सलाम! उनसे मिलने के बाद मैें देर तक सोचता रहा, उसकी लगन,मेहनत और कुछ कर गुजरने की जिज्ञासा के बारे में। इतनी लोकप्रियता के बाद भी वह राजनीति में नहीं आना चाहती। उसे पता है शक्ति भ्रष्ट करती है और अधिक शक्ति अधिक भ्रष्ट करती है। वह तो बस काम करना चाहती है जिससे उसके समुदाय के अन्य लोगों को भी हौसला मिले आगे बढ़कर कु छ करने का। रेवती की किताब का विमोचन आज होगा उम्मीद है वह लोगों को पसंद आएगी। वैसे रेवती इस किताब को कई अन्य भाषाओं में चाहती है जिससे भारत सहित विश्व के सभी लोग इसे पढ़ सके और उस समुदाय की पेरशानियों और अपनी जिम्मेदारियों को समझ सकें। बधाई रेवती पुस्तक के लिए, इस प्रयास के लिए के लिए।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...