Wednesday, November 4, 2009

महफूज नहीं मेहमान परिंदे



भारत का वातावरण केवल विदेशी सैलानियों को ही आकर्षित नहीं करता बल्कि दूर देश के परिंदों को भी लुभाता है। अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में आने वाले परिंदे साइबेरियाई देश, चीन, तिब्बत, यूरोप, लद्दाख आदि से भारी संख्या में भारत में आते हैं। नवंबर के प्रथम सप्ताह में ये बड़ी संख्या में आते हैं लेकिन वह जिस संख्या में आते हैं उतने लौट नहीं पाते। इसके कई कारण हैं। प्रमुख कारण इन परिंदों का शिकार करना है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के पक्षी विशेषज्ञ डा. एम शाह हुसैन का कहना है कि विदेशी पक्षी आने-जाने के लिए मूलत: दो रास्ते अपनाते हैं, एक पूर्वी रास्ता जो चीन-तिब्बत होकर आता है, दूसरा पश्चिमी रास्ता जो ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान होकर आता है। जब यह लौटते हैं तो ये अपने शरीर में लम्बी यात्रा के लिए काफी चर्बी इकट्ठा कर लेते हैं जो उनकी यात्रा के लिए ऊर्जा देने का कार्य करते हैं। लेकिन इनकी तंदरुस्ती के कारण भी लोग बड़ी संख्या में इनका शिकार करते हैं। दिल्ली के यमुना जव विविधता पार्क के वन्य जीव वैज्ञानिक फैय्याज ए खुदसर का कहना है कि जलीय और स्थलीय दोनों तरह के पक्षी दिल्ली आते हैं। इन दिनों यूरोप व साइबेरिया में ठंड बढ़ जाती है। इनको खाने के लिए काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसे समय में ये परिंदे भारत आते हैं। फरवरी के पहले-दूसरे सप्ताह में पुराने पंख गिराकर नए पंख लेकर अपने देश लौट जाते हैं। भारत के विभिन्न प्रांतों से इन पक्षियों को मारने की खबरें आती हैं लेकिन दिल्ली में ऐसा हो रहा है सुनने में नहीं आया है। ऐसा माना जाता है कि अगर 2004 के बाद साइबेरिया क्रे न भारत में नहीं आते हैं तो इसका प्रमुख कारण अफगानिस्तान युद्ध और उस समय उनका शिकार किया जाना है।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...