Saturday, February 7, 2009

एक पत्र कुबेर के नाम

एक पत्र कुबेर के नाम
लोकतंत्र में गणतंत्र को याद करने के बाद मंहगाई की मार से त्रस्त एक भारतीय नागरिक ने स्वर्ग में धन के देवता को एक पत्र लिखा। पत्र इस प्रकार है-
प्रिय कुबेर जी
दंडवत नमस्कार, बिना इस परवाह के कि कपड़े गंदे हो जाएंगे और इस आशा में कि शायद इसी बहाने आपकी तिजोरी की कुंडी खुल जाए और स्वर्ण कलश से छलक कर एक दो स्वर्ण मुद्रा इधर भी आ जाए। बड़ी आशा से यह पत्र आपको लिख रहा हूं। पिछले साल भी लिखा था लेकिन साढ़े नौ महीने तक कोई जवाब नहीं आया और इतने दिनों से मंदी बरकरार है। इसलिए फिर लिख रहा हूं मेहरबानी करके रिसीव कर लीजिएगा मेहरबानी होगी।
कुबेर जी धरती की बुलेटिन आप तक पहुंच रही होगी तो पता तो चल गया होगा कि आजकल कलमकारों के फांके कट रहे हैं, लेकिन आप निश्चिंत रहिएगा पुजारियों की चांदी है। मंदिर में भक्तों की कमी नहीं है। परेशानी कामन मैन को है, दुकानदार उनकी जेब काटने के लिए-नए उस्तरे इस्तेमाल कर रहा है। दुकान पर सामानों की रेट बढ़ते जा रहे हैं लेकिन वहां काम करने वाला नौकर सूखता जा रहा है। हमारी सरकार कोशिश कर रही है कि कुछ जादू हो जाए लेकिन आप तो जानते ही हैं कि ये लोग कितने अनाड़ी हैं।
कुबेर जी, हमारे पंडित जी ने बताया था कि आप देवताओं के वित्तमंत्री हैं शायद इसीलिए टीवी से लेकर फोटू तक में देवी-देवता एकदम चकाचक दिखते हैं, गहनों से लकधक। लेकिन हमारे यहां के वित्त मंत्री थोड़ा उस टाइप के हैं क्या करें एक साथ कई जिम्मेदारियां हैं, लड़खड़ा कर खड़े भी होते हैं तो पड़ोसी देश लंगी लगा देता है। हमारे प्रधानमंत्री भी सत्तर पार के हो गए हैं निर्णय भी उम्र के हिसाब से ही लेते हैं। वो आपके इंद्र का क्या हाल चाल है उनके रंग-ढंग बदले कि अभी..। उनसे कहिएगा इस साल थोड़ी मेहरबानी कर देगें हमारे यहां काफी किसान सूखे के कारण आपके पास चले गए हैं।
एक बात और वो युधिष्ठिर जी के कुत्ते का हाल भी लिखिएगा, हमारे यहां तो स्लमडॉग करोड़पति हो गया है और बेस्लमडॉग कार के शीशे से मुंह निकालकर स्लम वालों को जीभ चिढ़ाता है।
मनोरंजन का भी बुरा हाल है फिल्मों के टिकट मंहगे हो गए हैं, तारिकाओं पर मंदी का असर नहीं है इनका रेट बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन आप अपने यहां की उर्वशी और मेनका टाइप तारिकाओं के बारे में थोड़ा डिटेल में दीजिएगा। एक बात भूल ही रहा था हमारे वित्त मंत्री को मंदी से निकलने का हल सपने में जरुर दे दीजिएगा भूलिएगा मत।
क्या करुं लिखना तो बहुत कुछ है लेकिन अभी पन्ना भर गया है और पेन की स्याही भी जवाब दे रही है। हमारे यहां पेट्रोल पर सब्सिडी है लेकिन कागज, कलम को कौन पूछता है। और अंत में लक्ष्मी जी से मेरा हेलो कहिएगा।
शेष सब ठीक है!
आपका दर्शनाभिलाषी
दुखीराम
अभिनव उपाध्याय

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