Saturday, September 26, 2009

नानी की कहानी में जोड़ो पानी



गौहर रजा
चंद्रमा पर पानी होने की पुष्टि होना निश्चित रूप से धीरज बधाने वाली बात है। मनुष्य पहली बार 1969 में चंद्रमा पर कदम रखा। तभी से चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता लगाने के लिए खोज शुरू हो गई। अमेरिका, रूस और भारत के खगोल वैज्ञानिकों ने पानी की मौजूदगी को लेकर तमाम शोध किए। अमेरिका और रूस ने मिशन भेजे। लेकिन यहां मैं एक बात और जोड़ना चाहूंगा कि चंद्रयान -1 के इस खुलासे के पहले अब तक चंद्रमा से प्राप्त आंकड़ों और जानकारियों पर दुनिया के वैज्ञानिकों में मतैक्य नहीं था। वैज्ञानिकों का एक धड़ा चंद्रमा पर पानी होने के पक्ष में था, जबकि एक तबका पानी होने के तर्क को खारिज करता आया है। लेकिन चंद्रयान-1 पर गए नासा के ‘मून मैपरज् ने चंद्रमा पर पानी होने की ताकीद कर दी है। यही नहीं बहुत पहले अपोलो-9 द्वारा लाए गए चट्टान भी इस बात की जानकारी देते हैं कि चंद्रमा पर पानी की संभावना है। लेकिन वैज्ञानिकों का एक समूह उस डाटा पर विश्वास नहीं करता था। आज 40 साल बाद यह बात साबित हो गई। सन 1998-99, 2007 और अब 2009 में चंद्रमा पर पानी होने की बात स्वीकारी गई है। सिर्फ निश्चित सिद्धांत न होने के कारण इतना समय निकल गया।
चंद्रयान-1 के कारण पहली बार हमारे पास आंकड़े भी हैं और एक निश्चित सिद्धांत भी। यह सिद्धांत सूर्य से आने वाली हवाओं पर आधारित है, जिससे हाइड्रोजन आयन समृद्ध होता है। सूर्य की किरणें जब किसी भी चीज से टकराती हैं, तो उससे वे संपृक्त हो जाती हैं। इसी कारण यह ओएच बांड बनाती हैं और आक्सीजन के साथ आसानी से जुड़ती हैं। पहली बार हमारे पास यह सिद्धांत मौजूद है। जहां तापमान कम होता है, वहां पानी का बनना सामान्य प्रक्रिया है। इससे यह माना जाता है कि चंद्रमा के निचली सतहों पर पानी हो सकता है। यह सिद्धांत है कि जहां सूरज ढल रहा होता है, वहां पानी अधिक होता है, जिस तरह ध्रुवों पर पानी अधिक है। यहां पर एेसा सूर्य के तिरछी किरणों के आने के कारण है। लेकिन जहां पर सूर्य की सीधी किरणें पड़ती हैं, वहां पर यह संभावना कम होने लगती है। भारत को मार्च 2009 में ही चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता चल गया था। इसे चंद्रयान ने साबित किया है। निश्चित रूप से यह दुनिया के लिए बड़ी उपलब्धि है। और इस उपलब्धि पर भारत को सौ प्रतिशत गर्व है। निश्चित रूप से विकासशील देशों में यह उपलब्धि हासिल करने वाला भारत पहला देश है। आज अगर गैलीलियो जिंदा होता तो वह शायद धरती का सबसे खुश इंसान होता। उसने जो बात पहले कही, आज सही साबित हो रही है।
चांद पर पानी किस रूप में है। यह कहना कठिन है, क्योंकि इसे लेकर अभी केवल कयास ही लगाए जा सकते हैं। प्रामाणित तथ्यों का अभाव है। लेकिन यह खुशी की बात है कि चंद्रमा पर जीवन संभव है। थोड़ी मुश्किलें आ सकती हैं। लेकिन चंद्रमा पर जीवन बनाया जा सकता है। लेकिन इससे पहले अभी यह पता लगाना जरूरी है कि वहां पानी कितना और किस रूप में है। अभी चंद्रमा पर पानी की मात्रा को लेकर स्थितियां साफ नहीं हो पाई हैं। अब चंद्रयान के इस खुलासे के बाद निश्चित तौर पर अमेरिका, रूस और चीन चंद्रमा पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे। चंद्रमा पर पानी होने की पुष्टि से अन्य ग्रहों पर भी पानी, जीवन की संभावना तलाशने में मदद मिलेगी। यदि आने वाले दिनों में वैज्ञानिक चंद्रमा पर आधार शिविर बनाने में सफल हो जाते हैं तो अन्य ग्रहों और आकाश गंगा को खंगालने में काफी मदद मिल सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि चंद्रयान-1 की इस सफलता से इसरो ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी छलांग लगाई है। उसने इतिहास रचा है। लेकिन चंद्रमा पर पानी होने की खोज का श्रेय हम केवल इसरो या केवल नासा को नहीं दे सकते। यह विज्ञान और अंतरिक्ष के क्षेत्र में जुटे दुनिया भर के वैज्ञानिकों का मिला जुला प्रयास है। इसमें सभी का योगदान है। लेकिन भारत के लिए यह विशिष्ट उपलब्धि है। और प्रत्येक भारतीय इस उपलब्धि पर गौरवान्वित और फख्र महसूस कर सकता है। अब चंद्रमा पर पानी होने की पुष्टि ने उसकी खूबसूरती में और इजाफा कर दिया है। चांद पहले से और शीतल होगा। शायरों के लिए चांद अब पहले वाला चांद नहीं रहेगा।

(अभिनव उपाध्याय से बातचीत पर आधारित)

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