Monday, December 26, 2016

वर्षांत: कहीं सम्मान तो कहीं धूमिल हुई छवि





अभिनव उपाध्याय,  नई दिल्ली


राजधानी में वर्ष भर साहित्य कला और संगीत के क्षेत्र में गहमा गहमी बनी रही। वर्ष के शुरूआत में विश्व पुस्तक मेला, साहित्य अकादमी पुरस्कार, विभिन्न किताबों के आगमन पर चर्चा और संगोष्ठियों का आयोजन किया गया। लेकिन वर्ष भर सबसे अधिक चर्चा इस वर्ष दिल्ली सरकार के हिंदी अकादमी में पुरस्कार को लेकर रही। हिंदी दिवस पर राजधानी में मनाए जाने वाले कार्यक्रम में आयोजित सम्मान समारोह से पहले ही यहां साहित्यकार अपमानित हुए। यह विवाद दिल्ली सरकार के अधीन हिंदी अकादमी का यह ताजा विवाद लेखकों के भाषा दूत सम्मान को लेकर था। अकादमी ने पहले तीन लेखकों को डिजिटल माध्यम में हिंदी संगोष्ठी एवं भाषा दूत सम्मान ग्रहण के लिए आमंत्रित किया लेकिन बाद में ये कहकर खेद जता दिया कि उन्हें गलती से आमंत्रण चला गया था और इसे मानवीय भूल समझा जाए। 
 इसमें दिल्ली के लेखक अशोक कुमार पांडेय,उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद से अरुण देव और इलाहाबाद से संतोष चतुर्वेदी सहित कुछ और लेखक थे। 
दिलचस्प यह था कि अकादमी ने 10 सितंबर को पत्र और फोन के जरिये सूचना भेजी गई थी और सम्मान के लिए सहमति ली गई थी लेकिन 12 सितंबर को हिंदी अकादमी ने मानवीय भूल माना। 
हिंदी अकादमी के इस कृत्य की चौतरफा निंदा हुई और सोशल मीडिया पर भी लोगों ने अपनी टिप्पणी दी। 
साहित्यकार मंगलमूर्ति ने लिखा कि हिंदी अकादमी को जिस कैंची से फीता काटना था उसी से अपनी नाक काट ली,अच्छा है।
पहली हिंदी अकादमी की उपाध्यक्ष ने अपनी विवशता दिखाई और मीडिया से दर्द साझा करते हुए कहा कि मुझे कुर्सी मेज़ की सुविधा के लिये भी सचिव से पूछना पड़ता है। उपाध्यक्ष के लिये न कोई कमरा होता है न गाड़ी। हां मैंने कुछ हस्तक्षेप किया है। पुराने ढर्रे को तोडऩे की कोशिश की है अब जितना भी हो जाये। 
भाषा दूत सम्मान के लिए मुझसे नाम मांगे गए थे जो मैंने दिए, लेकिन मैं न तो चयनकर्ताओं में शामिल हूं और न ही चयन में मेरी किसी तरह की भूमिका रही है। जो नाम मैंने दिए थे उन नामों का चयन ही नहीं किया गया है।
अदीबों का सम्मान करने के लिए जानी जाने वाली अकादमी की छवि इस घटना के बाद धूमिल हुई।
 
विगत वर्ष पुरस्कार वापसी के लिए चर्चा रही साहित्य अकादमी 2016 में विवादों से दूर रही। वयोवृद्ध साहित्यकार रामदरश मिश्र को उनके कविता संग्रह आग की हंसी के लिए, उर्दू में शमीम तारिक को उनकी समालोचना तसव्वुफ और भक्ति के लिए 16 फरवरी को राजधानी में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्यकार रामदरश मिश्र को पुरस्कार देने में देरी के लिए साहित्य अकादमी की कुछ लोगों ने आलोचना भी की। स्वयं रामदरश मिश्र ने कहा कि लोग कह रहे हैं कि काफी देर बाद यह सम्मान आपकी कृति को मिला लेेकिन मैं इसमें क्या कर सकता हूं। मुझे खुशी है। मेरी ही एक कविता है कि जहंा आप पहुंचे छलांगे लगाकर मगर मैं भी पहुंचा वहां धीरे धीरे। 

नौ अक्टूबर को भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारक दीन दयाल उपाध्याय के जन्म शताब्दी वर्ष पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके दर्शन को समर्पित कार्यों की एक श्रृंखला दीनदयाल उपाध्याय संपूर्ण वाङ्मय का विमोचन किया। जिसमें पंडित दीन दयाल उपाध्याय के बौद्धिक संवादों, उपदेशों, लेखों, भाषणों और उनके जीवन से जुडी घटनाओं को शामिल किया गया है जिनमें उनके एकात्म मानववाद के दर्शन के बारे में बताया गया है। यह श्रृंखला प्रभात प्रकाशन से आई है। 

साहित्यिक जगत में विशुद्ध साहित्यिक सामग्री इस वर्ष कम आई है। कोई ऐसा कविता संग्रह भी नहीं आया जिस पर चर्चा हो। हालांकि इस बीच पारंपरिक प्रकाशन विधा से हटकर ऑनलाइन प्रकाशन और वेबपोर्टल तथा साहित्यिक ब्लागों पर लिखी गई सामग्रियों की चर्चा रही। ऐसा भी देखा गया कि हिंदी प्रकाशकों की किताबें पहले अंग्रेजी में अनुदित कर फिर उसे हिंदी में लाया गया। जगरनॉट प्रकाशन से प्रियदर्शन और अन्य लेखकों की किताबें इसका उदाहरण है। डिजिटल माध्यम में यह किताबें अधिक बिकी हैं। 
साहित्य अकादमी ने 21 दिसंबर को 2016 के साहित्य अकादमी पुरस्कार की घोषणा भी कर दी और यह पुरस्कार हिंदी के लिए नासिरा शर्मा को उनकी कृति पारिजात के लिए पुरस्कृत किया गया।
अंग्रेजी के प्रतिष्ठित प्रकाशक आक्सफोर्ड प्रेस ने हिंदी में प्रकाशन के शुरूआत की घोषणा भी इसी वर्ष की है। यह साहित्य जगत  के ऐसे बदलाव हैं जो समय के साथ अपने को बदले हैं। 
वर्ष में दो पुस्तक मेला देखने वाला यह शहर किताबों की बिक्री के मामले में उदास रहा। विश्व पुस्तक मेला में जहंा दर्शकों की संख्या बढी और बिक्री कम रही वहीं दिल्ली पुस्तक मेला न अपेक्षित दर्शक आए और न ही बिक्री ही हुई। 
राष्ट्रीय नाट््य विद्यालय में पहली बार हर दो वर्ष पर होने वाला नाटकों का मेला जश्न ए बचपन अब अंतरराष्ट्रीय हो गया यही नहीं आने वाले समय में यहां नाटकों के ओलंपिक करने की घोषणा भी की गई। 

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...