Sunday, October 10, 2010

मूलत: नृत्य निर्देशक हूँ - आस्ताद देबू

दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में जश्न ए बचपन के दौरान पुंगचोलम का निर्देशन करने आए प्रसिद्ध कोरियोग्राफर आस्ताद देबू से बातचीत के कुछ अंश

प्रश्न- पुंग चोलम में बच्चों का चयन कैसे करते हैं?
उत्तर- बच्चों को संस्थानों में उनके माता पिता सीखने के लिए भेजते हैं। फिर उनमें से चयन होता है। ये छोटा ग्रुप है इसमें सभी बच्चे 8 से 12 साल के बीच हैं। जबकि एक बड़ा ग्रुप है जिसमे 18 साल से 28 साल तक के बच्चे हैं।
प्रश्न- यह कला कितनी पुरानी है?
उत्तर- यह कला काफी पुरानी है लगभग 1777 ई की है। इसमें लोगों की रुचि थी जिसके कारण यह पीढ़ी दर पीढी आगे बढती गई।


प्रश्न- इस कला का भारत से बाहर कैसा प्रदर्शन रहा?
उत्तर- लोग लोक कला को पसंद करते हैं और हम ग्रुप में आधुनिकता का समावेश करके बजाने और नृत्य करने जाते हैं। मैं मूलत: नृत्य निर्देशक हूं।
प्रश्न- क्या इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर हैं?

उत्तर-हां, और शायद इसलिए इसकी तरफ लोगों का रुझान भी है। बच्चे उत्साह से इसमें भाग लेते हैं।

प्रश्न-क्या मणिपुर से हट कर यह अन्य देशों में भी इस कला का विस्तार हुआ है?

उत्तर- हां, इसे भारत के बाहर के लोग भी सीखने आते हैं। लेकिन जो जड़ों के लोग हैं वही इसका विस्तार करते हैं क्योंकि विदेशों के लोग सीखकर इसकी प्रस्तुति में वह रस नहीं दे पाते। लेकिन इसे विभिन्न फार्मो में अपनाया जा रहा है।
प्रश्न-आप कितने ग्रुप से जुड़े हैं?
उत्तर- अभी तीन ग्रुप देश में है इसके अलावा विदेशों में कई ग्रुप से जुड़ा हूं। 22 सालों से बहरे लोगों के साथ काम कर रहे हैं। हम हर साल नए ग्रुप को खोजते हैं।
प्रश्न- उत्तर पूर्व के प्रदशों में कई समस्याएं हैं इसमें इस कला को कितना प्रोत्साहन मिल पाता है?
उत्तर-यह कला वहां के लोगों से जुड़ी है। खुशी में, मृत्यु में उत्सव में हर मौके पर वह इसे ढोल या पुंग बजाते हैं। ऐसा नहीं है कि वह स्टेज पर ही बजाते हैं। वह जन्मदिन दावत आदि पर भी बुला लिए जाते हैं।



प्रश्न-आपका पुंग और ड्रम के प्रति रूझान कैसे हुआ?
उत्तर-ड्रम में एक लय है। यह उत्तेजना भी है और मैंने जसा कि बताया कि मूलत: एक नर्तक हूं। मेरे लिए यादगार रहा जब 1986 में वियना में एक प्रदर्शन किया जिसमें दुनिया के दस ड्रमर मेरे लिए बजा रहे थे। मणिपुर से मेरा खासा जुड़ाव है। तबला,ढोल आदि बैठ कर बजाते हैं लेकिन पुंग में यह बात नहीं है इसे खड़ा होकर बजाते हैं और ताल के साथ नाचते भी हैं। ये लोग करताल भी बजाते हैंे और बोलते भी हैं।
प्रश्न-आपने फिल्मों में भी कोरियोग्राफी की है कैसा अनुभव रहा?
उत्तर-फिल्मों का एक बड़ा दर्शक वर्ग होता है। इसका एक अगल ही अनुभव है। हमारे फिल्म कलाकार भी प्रतिभावान हैं उनमे सीखने की क्षमता है।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...