Thursday, February 26, 2009






चित्र मन के भाव बयां करते हैं। इरान के कलाकार इमान मलिकी की पेंटिंग आँखों को सजीव चित्र का आभास कराती हैं . ऊपर पेश है कुछ ऐसी ही पेंटिंग.जो गूगल से साभार ली गई है .
सभी चित्र गूगल से साभार हैं.






















Monday, February 23, 2009

सबकी जय हो

सबकी जय हो
स्लमडॉग मिलेनियर ने भारतीय सिनेमा के लिए भी इतिहास रच दिया। अब विदेशी सिनेमा के लोग भी भारतीयों को थोक के भाव अवसर देगें। पहले बस गिने चुने लोग ही हालीवुड में जाकर अर्ध, पूर्ण और अपूर्ण तरीके से डायलॉग बोलते समय मुंह खोलते थे। जो नहीं जा पाते थे। उनका कलेजा कचोटता था लेकिन फिलहाल संकरा रास्ता और चौड़ा हो गया है। अब भारतीय लोग भी विदेशियों के साथ इस चौड़े रास्ते पर चलेगें। मुम्बई का हर स्लमडॉग अब मिलेनियर बनने के लिए डैनी बोएल का इंतजार करेगा। काश किसी की नजर इधर पड़ जाए।
भारतीय सिनेमा जगत और व्यापार पर भी इसका असर पड़ेगा। तमाम बेस्लमडाग सोच में पड़ गए होंगे। गुलजार ने एक बार फिर अपने को सिद्ध कर दिया। अल्ला रक्खा रहमान अब हालीवुड के मेहमान बन जाएगें। शायद इनका भी रेट बढ़ जाए। अनिल कपूर को भी इसका फायदा मिलेगा। फ्रिदा पिंटो और देव पटेल की भी कई फिल्मों के लिए आफर पाएंगें। माने एक साथ सबकी जय हो गई।
इतनी बधाइयां मिली की मन अघा गया। जय हो गाना, बजट पास होने के बाद पराजय की मुद्रा होने पर भी जुबान पर चढ़ गया। मतलब तबीयत कैसी भी हो हर हाल में जय हो।
सब फायदों के बीच एक बात समझ में नहीं आई, क्या गुलजार ने जय हो से बेहतर गाने नहीं लिखें हैं या रहमान ने इससे अच्छा संगीत नहीं दिया है या भारतीय कलाकारों ने इससे बेहतर अभिनय नहीं किया है। इसका उत्तर भी हम जानते हैं। क्योंकि भारत का हिंदी भाषी गीत प्रेमी गुलजार को और पूरे भारत का संगीत प्रेमी रहमान की संगीत का दीवाना है। लेकिन जब ऑस्कर की बात आती है तो हमें सारी योग्यता मूढ़ता में बदल जाती है। हमें शुक्रगुजार होना चाहिए डैनी बॉयल का जिसकी बदौलत हमारे देश में भी आस्कर आ गया और हम सुबह से ही जय हो-जय हो कहते लगे। एक प्रश्न जो कचोटता है वह यह है कि आखिर कब तक हमें ऑस्कर के लिए डैनी बॉयल जसे लोगों की राह देखनी पड़ेगी।

Saturday, February 21, 2009

इन्हे देखकर याद आया कुछ


इन्हे देखकर याद आया कुछ
‘मैं पिछले बाइस साल से यहां आती हूं। तब मेले में मजदूरी करने आई थी, लेकिन जब यहां पर लोगों की भीड़ देखी तो लगा मैं भी सामान बेंच सकती हूं और तभी से हर साल आती हूं।ज् राजस्थानी लोक कला को समृद्ध करने भंवरी देवी सूरजकुंड मेले में तब से आती हैं जब से यह मेला शुरु हुआ है। दिल्ली और आस-पास के लोगों को राजस्थानी लोक कला इतनी भाती है कि इनका कोई भी सामान बच कर वापस नहीं जाता। चाहे लड़ी हो या छल्ले, कठपुतली हो या इंडी या फिर कपड़े का बना पर्स, घोड़ा या गणेश जी इनकी हर सामान से ग्राहक मौजूद हैं।
इस काम में इनका बड़ा लड़का मदन मेघवाड़ सहयोग करता है। ये गांव की चक्की पर बाजरा पीसती हुई दर्शकों को दिखाती हैं। उनका कहना है कि शहर के लोग चक्की नहीं देखे हैं इसे चलाते हुए वह देखना चाहते हैं, खासकर बच्चे इसमें काफी रुचि लेते हैं।
भंवरी देवी ने यह काम कैसे सीखा इसके बारे में वह बताती हैं कि ‘जब मैंे दस साल की थी तभी से बकरी चराती थी और उन लोगों के पास बैठती थी जो कसीदेकारी और गोटे का काम करती थी तभी से मैं भी यह बनाने लगी।ज् इनके काम की खासियत यह है कि इसमें केवल सुई-धागा और कतरन का प्रयोग किया गया है। मात्र सोलह रुपए दिहाड़ी पर काम करने वाली भंवरी देवी मेले में अपनी रोज की आमदनी पांस सौ से दो हजार बताती हैं। लगभग बासठ वर्षीय भंवरी देवी कला श्री सम्मान से सम्मानित हो चुकी हैं। राजस्थान में नागौर जिला के भांवता गांव की रहने वाली भंवरी देवी जब अपने गांव होती हैं तो शादी या अवसरों पर गीत भी गाती हैं। मेले के बारे में वह बताती हैें कि यहां पर मिलने वाला लोगों का प्यार उन्हे इस उम्र में भी खींच लाता है।
ये एक खबर है अखबार के लिए लेकिन इसमें कई सच्चाई भी है जसे आज के युवा चक्की से अनभिज्ञ हैं। कबीर ने चक्की को पूजने की बात की थी लेकिन आज का युवा मेले में इस चक्की को देखते आता है। कितने तो वहां पर अजीब-अजीब से सवाल भी करते थे। भंवरी एक मिसाल लगी। मेहनत की। साहस की। और अपनी में से अर्जित की गई प्रतिष्ठा की।
लेकिन आखिर यह बाल मन कब तक खोजेगा, सरसों के फूल, गेंहू की बाली। ओखल-मूसल या आम की डाली। पब्लिक स्कूल का अध्यापक कबीर के दोहा पढ़ाने के बाद कैसे बता पाएगा कि चक्की कैसी होती है।
एक सवाल जो कौंधता है वह यह है कि हम वाकई अपनी जड़ों से कितना कट गए हैं।
अब एक व्यक्ति गत अनुभव बताता हूं- दिल्ली में दस रुपए गिलास गन्ने का रस पीना खल जाता है इस छोटी कमाई में और गांव का कोल्हू शायद तब बहुत याद आता है और देर तक पकते हुए गुड़ की खुशबू मदहोश कर देती है।
अभिनव उपाध्याय

Monday, February 16, 2009

सन्नाटा का संगीत


सन्नाटा का संगीत
संगीत जीवन से जुड़ा वह आवश्यक तत्व है जिसके बिना फीका है सबकुछ। यह किसी भी तत्व से उत्पन्न हो सकती है। चाहे सिल-बट्टे की खट-खट हो या चक्की के दो पाटों का घर्षण, चाहे ओखल में मूसल का प्रहार हो या सूप में उछलते गेहूं की ध्वनि, गरजते बादल हों या बूदों की रिमझिम, ऊंचाई से लहराकर गिरता झरना हो या समुद्र में थिरकती लहरों की उछल-कूद, पंक्षियों की फड़फड़ाहट हो या हवाओं की सरसराहट, सांसों की गति हो या दिल की धड़कन, सब में बसा है एक सुनाई देने वाला संगीत। लेकिन अगर सन्नाटा का संगीत सुनना हो तो पंडित बिरजू जी महाराज की महफिल में शिरकत करें और उनसे इसकी प्रस्तुति के लिए आग्रह करें। इकहत्तर वर्षीय पंडित जी की यौवन मदमाती प्रस्तुति आपको मंत्रमुग्ध कर देगी।
स्पिक मैके के सौजन्य से आयोजित लेडी श्रीराम कालेज में पंडित बिरजू जी महाराज के कथक नृत्य की प्रस्तुति की सूचना जसे मिली मन में एक बेचैनी सी हो गई, क्योंकि मैं कई दिनों से उनका कार्यक्रम देखने की चाहत पाले बैठा था। मेरा मानना है कि दिल्ली की भागमभाग में ऐसे कार्यक्रम अगर आप देखे तो ये आपको रिचार्ज कर देते हैं।
अपने सहकर्मी मित्र आलोक को जब यह बात बताई तो वह खुशी मन से मेरे साथ चलने को तैयार हो गए। वजह मैं जानता हूं, एक तो वह साहित्य प्रेमी हैं और दूसरे संगीत के प्रति अनुग्रही। एक सच यह भी है कि हम दोनों संगीत की गूढ़ता के अल्पज्ञ भी हैं। इसलिए एक दूसरे पर अपनी विद्वता आरोपित, प्रतिरोपित और अंतत: सहमति प्रदान क रते हैं। उनका कम बोलना हमें अवसर देता है।
बहरहाल, हम मदर डेरी से आए नोयडा मोड़ लेकिन कम्बख्त बस छूट गई, भला हो उस माल ढोने वाली टैक्सी का जिसने हमें गन्तव्य तक पहुंचाया। लेकिन हमें देर हो रही थी और आयोजन स्थल हम दोनों ने नहीं देखा था। मुश्किल तब हो गई जब हमें रास्ता भी गलत बता दिया गया। अब ये सोच रहा था कि कहीं कार्यक्रम शुरु न हो जाए लेकिन जब कार्यक्रम में पहुंचे तो पंडित जी ठीक पहले मंच पर आए थे और लोग खड़ा होकर उनका स्वागत कर रहे थे। पंडित जी के प्रशंसकों की भीड़ ने हमें बालकनी में बैठने को मजबूर कर दिया नहीं तो हम पंडित जी को करीब से निहारना चाहते थे। अद्भुत भाव-भंगिमा और घुंघरु की खनक के बीच पंडित जी ने अपने पिता और गुरु पं. लक्षन जी महाराज के बारे में बताते हुए अपना परिचय दिया। कथक और संगीत के बारे में जो उन्होंने बताया उनकी कुछ बातें इस प्रकार हैं, ‘संगीत वह भाषा है जो लय के आंचल में छिपी बैठी है। ताल लय को मात्रा देते हैं और घुंघरु उसे लय देते हैं। लय ईश्वर की कृपा है, यह हमारी जिंदगी है। संगीत हर जगह है। सन्नाटा में भी संगीत है।ज् इस संक्षिप्त उद्बोधन के बाद पंडित जी ने राग मालकोश में, ‘बरनत छवि श्याम सुंदर, लसत अंग पीत बसन, बंक भृकुटि गरे भाल..ज् पर मनमोहक प्रस्तुति दी।
इसके बाद शुरु हुई विशेष प्रस्तुति, मैंने बहुत से शास्त्रीय कार्यक्र म देखें हैं लेकिन ‘सन्नाटा के संगीतज् को सुनने और महसूस करने का यह हमारा पहला अनुभव था। घुंघरु की हल्की खनक और वातावरण की शांति पूर्ण सन्नाटा का आभास दे रही थी।
शरीर की लचक और पैरों की थिरकन से कहीं भी नहीं लगता था कि यह प्रस्तुति इकहत्तर वर्षीय उस जवान की है जो जिसे गुरु मानकर न जाने कितने जवान कथक की शिक्षा लेते हैं।
इस प्रस्तुति के बाद अब बारी थी तीन ताल की पर प्रस्तुति की। पंडित जी ने बताया कि तीन ताल आकाश है और घुंघरु इसमें तारों की भांति चमक रहा है। इसके बाद तीन ताल की पूरी प्रस्तुति में घुंघरु सुरों के बीच टिमटिमाता रहा। फिर पंडित जी ने छन्द, लय, ताल और बोल के माध्यम से कार्यक्रम में तराना, आरोह-अवरोह के बीच लचकती कमर और थिरकते पांव ने ऐसा जादू किया कि दर्शक समूह मंत्रमुग्ध सा देखते रह गये और हर प्रस्तुति पर दर्शकों की अनवरत तालियां बजती रहीं।
इसके बाद की प्रस्तुति भी आकर्षक और आनंदायक भी थी क्योंकि अब नायक और नायिक के यमुना पर मिलन की बारी थी। दरअसल नायक तबला था और नायिका घुंघरु थी। नायक आगे-आगे और नायिका पीछे-पीछे। इस बीच नायक का रुकना, नायिका का उसे चिढ़ाना, नायक का रुठना और नायिका का मनाना, नायिका के पांव में कांटा चुभना और नायक द्वारा निकालना, और एक कहासुनी के बाद अंतत: यमुना के किनारे दोनों का मिलन। इसका कथक के माध्यम से प्रस्तुति पर सैकड़ों हाथों की तालियों की गड़गड़ाहट की गूंज देर तक हाल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही। दर्शकों के लिए इस न भूलने वाली प्रस्तुति के बाद पारंपरिक कथक के साथ कुछ नए प्रयोग पंडित जी ने दिखाए, इसमें सांप-नेवला की लड़ाई, प्रकृति का चित्रण और अंतत: एक आलसी व्यक्ति की गतिविधियों के माध्यम से हास्य प्रस्तुत किया वह किसी भी लाफ्टर शो अधिक मनोरंजक लगी। यही नहीं इशारों में गोपनीय बातचीत की प्रस्तुति ने मानों लोगों को लोट-पोट कर दिया।
और अब अंत में एक ठुमरी की प्रस्तुति, ‘मोरी गागरिया काहे को फोरी रे श्याम, मैं तो गारी दूंगी ना..., जाए कहूंगी नन्द के दुआरे..ज् की प्रस्तुति के साथ इस कार्यक्रम का समापन किया। उनके साथ उस्ताद अकरम खान ने तबले पर थिरकती अंगुलियों का जो जादू बिखेरा उससे सभी दर्शक उद्वेलित हो गए। राजेश प्रसन्ना ने सरोद पर अच्छी प्रस्तुति दी।
इस तरह एक शाम सुहानी बीती। इसके बाद मैं हर उस शाम को जब अकेला होता हूं तो सन्नाटा में संगीत ढूंढता हूं और उसके मिलने पर एक मिठास देर तक महसूस करता हूं।
अभिनव उपाध्याय

हरियाणा का पनिहारी नृत्य - जिसे देखने की प्यास कभी नहीं बुझती

राजस्थान का कालाभेरिया नृत्य- जिसमें थिरकता पोर- पोर

Thursday, February 12, 2009

ये इश्क नहीं आसां...


ं ये इश्क नहीं आसां...
प्रेम दिवस के साथ ही नागफनियां भी उगने लगती हैं। युगल लुकाछिपी शुरु कर देते हैं। ये प्रेम पुजारी बचते रहते हैं कि कहीं श्रीराम भक्तों द्वारा घंटा न बज जाए। सहीराम ने अपने कवि मित्र से पूछा कि इस बार क्या प्रोग्राम है। उन्होनें दबी जुबान से कहा कि क्या बताएं, मंहगाई ने जेब ढीली कर दी है और शिव,राम की सेना ने. . .।
मधुमास मनाने की संभावनाएं बनने से पहले बिगड़ जाती हैं। आप तो जानते ही हैं कि लव मी, लव माई डाग। दरअसल उनका डॉग बेस्लम डॉग है, बहुत चटोर है। हमेशा बढ़िया चाकलेट ही खाता है। लव के चक्कर में डॉग की इतनी सेवा हो गई कि मधु चन्द्रिका की मिलन यामिनी को मंहगाई का ग्रहण लग गया। इस बार मधुमास को खास बनाने की सारी योजनाएं पानी भरती नजर आ रही हैं। फिर भी बड़ी मुश्किल से अठन्नी-चवन्नी जोड़कर रखा था कि 14 फरवरी को प्रेम दिवस मना ही लेंगे लेकिन डर लग रहा है कि पकड़े गए तो स्वघोषित नैतिक ब्रिगेड के सैनिक कहीं तेरही न कर दें। सुना है जितना राम ने सीता को नहीं खोजा था उससे अधिक श्री राम सेना वाले युगलों को खोज रहे हैं। अब सच बताएं सहीराम जी किसी ने सच ही कहा है कि ये इश्क नहीं आसां..।
सहीराम जी पिछले दिनों एक अद्भुत दुर्घटना मेरे साथ हो गई, वसंत के आगमन पर शहर के घोषित रसिकों ने ‘प्रेम पियासाज् कवि सम्मेलन किया उसमें मुङो भी आमंत्रित किया गया था। सच कहूं तो ‘लवज् पर कविता पाठ का आमंत्रण पाकर मन लबालब हो गया। मैंने कविता शुरू की, ‘मोहिनी तेरे नैन कटार, झंकृत होते मन के तारज् अभी स्वर पंचम तक पहुंचा ही था कि मंच के पीछे भगवा और त्रिशूल धारी भाइयों को देखा और श्रृंगार रस की कविता वीर रस में बदल गई। सहीराम ने आगे पूछा, क्या आपने कविता सुनाई? उन्होंने कहा हां लेकिन ऐसे- ‘गोरी तेरे नैन कटार, कर दुश्मन को तार-तार। तोड़, मरोड़ गर्दन उसकी, बैरी छुपा है सीमा पार।ज्
परेशानी तब हो गई जब इस अद्भुत कविता को सुनाकर श्रोताओं ने मुङो श्रृगांर और वीर रस के संयुक्त कवि ‘रसिक विद्रोहीज् की संज्ञा दे दी। रसिक विद्रोही ने आंख बंद कर संत वेलेंटाइन के प्रेम मंत्र का जप किया और प्रार्थना की कि हे संत जी इन घोंघा बसंतों को सपने में समझाओ, साथ में कवि बिहारी से भी अनुरोध किया और कहा, हे रीतिकाल के केशव इन्हे विरह व्यथा से अवगत कराओ शायद इनका पाषाण हृदय पिघल जाए। इस व्यथा को सुनने के बाद सहीराम ने कहा, इस नैतिक ब्रिगेड से मुङो भी चिंता है क्योंकि इश्क तो ऐसा गुनाह है जो शादीशुदा भी करता है।
अभिनव उपाध्याय

बीन की धुन पर अब सांप नहीं, नाचते हैं सपेरे



सांप पर प्रतिबंध के कारण इसमें सपेरों की होती है भागीदारी

सूरजकुं ड मेले में देश के विभिन्न प्रदेशों से आए लोकनृत्यों को देखने में दर्शकों की रुचि रही लेकिन आजकल मेले सपेरा नृत्य की धूम है। लेकिन आश्चर्य इस बात का है यहां बीन की धुन पर सांप नहीं बल्कि सपेरे खुद अपने साथियों के साथ नाचते हैं।
इस सपेरा नृत्य के मुखिया सीसानाथ ने बताया कि अब सरकार ने सांप नचाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। लेकिन दर्शकों को अब भी बीन की धुन सुनने और सांप का नृत्य देखने का शौक है। इसलिए हमारे नृत्य को देखने के लिए देश में ही नहीं विदेशों में भी दर्शकों की कमी नहीं रही।
मूलत: नाथ संप्रदाय के ये सपेरे कानिपा नाथ को अपना गुरू मानते हैं। उनका कहना है कि लोग हमारे बारे में जानना चाहते हैं हमारे नृत्य और बीन की धुन को भी समझना चाहते हैं।
सीसाराम भारत में हरियाणा ट्यूरिज्म की तरफ से इंडिया हैबिटेट सेंटर से लेकर अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर तीस लोगों के साथ प्रस्तुति दे चुके हैं। इसके अलावा वह विश्व के कई देशों में अपनी प्रस्तुति देने गए हैं। इंग्लैंड में बैंड के साथ ‘आन लॉग सांगज् और स्काटलैंड में ‘इमेजिन ग्रेमज् की धुन पर बीन की प्रस्तुति को वह यादगार मानते हैं यही नहीं एक सौ पांच सपेरों के साथ इटली में बीन की प्रस्तुति पर दर्शकों की सराहना वह आजतक नहीं भूलते हैं। वह हरियाणा सरकार का भी धन्यवाद व्यक्त करते हैं कि जो इस कला को जीवित रखने के लिए आर्थिक सहायता और कलाकारों को प्रोत्साहन देती है।

अभिनव उपाध्याय

Saturday, February 7, 2009

एक पत्र कुबेर के नाम

एक पत्र कुबेर के नाम
लोकतंत्र में गणतंत्र को याद करने के बाद मंहगाई की मार से त्रस्त एक भारतीय नागरिक ने स्वर्ग में धन के देवता को एक पत्र लिखा। पत्र इस प्रकार है-
प्रिय कुबेर जी
दंडवत नमस्कार, बिना इस परवाह के कि कपड़े गंदे हो जाएंगे और इस आशा में कि शायद इसी बहाने आपकी तिजोरी की कुंडी खुल जाए और स्वर्ण कलश से छलक कर एक दो स्वर्ण मुद्रा इधर भी आ जाए। बड़ी आशा से यह पत्र आपको लिख रहा हूं। पिछले साल भी लिखा था लेकिन साढ़े नौ महीने तक कोई जवाब नहीं आया और इतने दिनों से मंदी बरकरार है। इसलिए फिर लिख रहा हूं मेहरबानी करके रिसीव कर लीजिएगा मेहरबानी होगी।
कुबेर जी धरती की बुलेटिन आप तक पहुंच रही होगी तो पता तो चल गया होगा कि आजकल कलमकारों के फांके कट रहे हैं, लेकिन आप निश्चिंत रहिएगा पुजारियों की चांदी है। मंदिर में भक्तों की कमी नहीं है। परेशानी कामन मैन को है, दुकानदार उनकी जेब काटने के लिए-नए उस्तरे इस्तेमाल कर रहा है। दुकान पर सामानों की रेट बढ़ते जा रहे हैं लेकिन वहां काम करने वाला नौकर सूखता जा रहा है। हमारी सरकार कोशिश कर रही है कि कुछ जादू हो जाए लेकिन आप तो जानते ही हैं कि ये लोग कितने अनाड़ी हैं।
कुबेर जी, हमारे पंडित जी ने बताया था कि आप देवताओं के वित्तमंत्री हैं शायद इसीलिए टीवी से लेकर फोटू तक में देवी-देवता एकदम चकाचक दिखते हैं, गहनों से लकधक। लेकिन हमारे यहां के वित्त मंत्री थोड़ा उस टाइप के हैं क्या करें एक साथ कई जिम्मेदारियां हैं, लड़खड़ा कर खड़े भी होते हैं तो पड़ोसी देश लंगी लगा देता है। हमारे प्रधानमंत्री भी सत्तर पार के हो गए हैं निर्णय भी उम्र के हिसाब से ही लेते हैं। वो आपके इंद्र का क्या हाल चाल है उनके रंग-ढंग बदले कि अभी..। उनसे कहिएगा इस साल थोड़ी मेहरबानी कर देगें हमारे यहां काफी किसान सूखे के कारण आपके पास चले गए हैं।
एक बात और वो युधिष्ठिर जी के कुत्ते का हाल भी लिखिएगा, हमारे यहां तो स्लमडॉग करोड़पति हो गया है और बेस्लमडॉग कार के शीशे से मुंह निकालकर स्लम वालों को जीभ चिढ़ाता है।
मनोरंजन का भी बुरा हाल है फिल्मों के टिकट मंहगे हो गए हैं, तारिकाओं पर मंदी का असर नहीं है इनका रेट बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन आप अपने यहां की उर्वशी और मेनका टाइप तारिकाओं के बारे में थोड़ा डिटेल में दीजिएगा। एक बात भूल ही रहा था हमारे वित्त मंत्री को मंदी से निकलने का हल सपने में जरुर दे दीजिएगा भूलिएगा मत।
क्या करुं लिखना तो बहुत कुछ है लेकिन अभी पन्ना भर गया है और पेन की स्याही भी जवाब दे रही है। हमारे यहां पेट्रोल पर सब्सिडी है लेकिन कागज, कलम को कौन पूछता है। और अंत में लक्ष्मी जी से मेरा हेलो कहिएगा।
शेष सब ठीक है!
आपका दर्शनाभिलाषी
दुखीराम
अभिनव उपाध्याय

Friday, February 6, 2009

कैसी लग रही हूँ मैं....


sambharpuriya dance in orissa


siddh goma dance


badhai dance in madhy predesh


Monday, February 2, 2009

सत्यम् झूठम् सही है लूटम्

सत्यम् झूठम् सही है लूटम्
जनवरी की ठंड का अगर सबसे अधिक असर किसी पर पड़ा है तो वह है शेयर बाजार। आदमी तो फिर भी थोड़ा बहुत बाहर घूम टहल लेता है लेकिन शेयर तो ठंड के मारे उठा ही नहीं। ये आलस्य मीडिया को भी था बम्बई बम धमाके के बाद वह भी मसाले के अभाव में बस इधर उधर की दिखा सुना रहा था। एकाएक रामालिंगा राजू ने अपने क्रिया कलापों की जानकारी देकर लोगों के मिजाज में गर्मी ला दी। शेयर तो फिर भी आराम फरमाता रहा। मीडिया में खबर चल रही थी, सत्यम ने झूठा कारोबार दिखाकर करोड़ों रुपए ठगे। माने रामलिंगा राजू ने बिना गंगा नहाए काजू खाने का इंतजाम कर लिया। लेकिन धन्य हो भारत का सपूत कि पत्र लिखकर धोखाधड़ी की आत्मस्वीकृति कर ली। दो दिन भूमिगत रहा और निकला तो सीधे हवालात।
उसका यह कार्य चर्चा में रहा। इस पर तत्काल टिप्पणी के लिए सहीराम ने बाबा अठन्नी से संपर्क साधा। बाबा अठन्नी से जब सहीराम ने राजू की चर्चा की तो उन्होंने कहा, भक्त सहीराम मैं राजू की कारगुजारियों से तंग आ गया था कितनी बार समझाया कि सारा माल अकेले मत उड़ाओ कुछ आश्रम टाइप जगहों पर भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में दिया करो, माघ का महीना है दुनिया बाबाओं को दान पुण्य करती है। लेकिन उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगी। अब बताओ देश की चौथी आईटी कंपनी की उसने तेरही कर दी।
सहीराम ने बाबा अठन्नी से कहा कि, बाबा कुछ भी हो रामलिंगा ने तो शेयर को गंगा में डुबा दिया। एकदम से नाक कटा दी। बाबा अठन्नी ने मुस्कुराते हुए कहा, सहीराम तुम्हे नहीं पता ऐसे लोग दो नाक वाले होते हैं। एक कट भी जाए तो दूसरी लेकर मुस्कुराते हुए जेल के बाहर फ्लाइंग किस देते हुए फिर वापस आ जाते हैं। सहीराम ने गर्दन हिलाते हुए बाबा अठन्नी की बात पर हैरानी जताई और बोले बाबा रामलिंगा राजू ने आत्मस्वीकृति करके अपनी नाक पर ही उस्तरा चला लिया। यही तो बात है भक्त, तुम्हे मार्केट का मंत्र पता नहीं है। राजू की इस क्रिया के बाद न जाने कितने विशेषण जुड़ते गए। सरकार ने भी उस पर अपनी सहानुभूति जता कर मदद करने की अपील की है। राजू ने यह काम अपने आजू-बाजू देखकर किया है।
सहीराम ने कहा, लेकिन कंपनी की तो काफी साख थी अब क्या होगा? होना क्या है इस कंपनी को तो अभी इक्कीसवां लगा है और जवानी में ऐसी गलती हो ही जाती है इसे सरकार भी समझती है और व्यापार भी। एक लाइन में बाबा इस प्रकरण को क्या कहेगें, सहीराम ने पूछा? बाबा ने कहा, सत्यम् झूठम् सही है लूटम्।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...