Monday, May 25, 2009

भारत के लोकतंत्र की विजय है 2009 का चुनाव

भारत के लोकतंत्र की विजय है 2009 का चुनाव
लोकसभा चुनाव के बाद आए परिणामों और राजनीति के ऊपर मशहूर पत्रकार और लेखक मार्क टली से साक्षात्कार-
प्रश्न-लोकसभा चुनाव 2009 को आप कैसे देखते हैं?

उत्तर-चुनाव 2009 दरअसल भारतीय लोकतंत्र की जीत है। कांग्रेस बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन फैसला केवल उसके हक में हुआ यह नहीं कह सकते। जिसने काम किया वह जीता। इसी से यह निष्कर्ष निकलता है कि केंद्र सरकार को काम करके दिखाना होगा। जनता ने उसे एक स्थिर सरकार वाली सुविधा भरपूर दी है।
भारत में पंद्रहवीं लोकसभा के आम चुनाव ने दुनिया को दिखा दिया है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इस बार खास बात रही कि किसी भी दल ने परिणाम पर टीका टिप्पणी न करते हुए अपनी हार स्वीकार की है, जबकि अक्सर देखा गया है कि हार के बाद राजनीतिक पार्टियां इसे पचा नहीं पाती। विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने भी अपनी हार स्वीकार की है। निश्चित तौर पर यह भारत के लोकतंत्र की विजय है।
यह काफी लम्बा चुनाव था जो करीब एक महीने तक चला लेकिन किसी भी राष्ट्रीय पार्टी के पास खास मुद्दा नहीं था। हम यह भी नहीं कह सकते कि यह जीत स्पष्ट रुप से कांग्रेस की जीत है, क्योंकि हर राज्य में स्थानीय मुद्दे परिणाम के लिए प्रभावी रहे। मिसाल के तौर पर बिहार में नीतीश कुमार का शासन संचालन, महाराष्ट्र में शिवसेना का विभाजन, पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम और सिंगूर जसे मुद्दे चुनाव परिणाम को प्रभावी करने वाले कारकों में थे। जिसने विकास किया वह जीता। दिल्ली को ही लें विधान सभा चुनाव हों या लोकसभा चुनाव शीला दीक्षित की छवि विकास करने वाली मुख्यमंत्री की है इसलिए दिल्ली में कांग्रेस की विजय हुई। नीतीश ने भी अच्छी सरकार देने की कोशिश की और इसके अच्छे परिणाम आए। आंध्र प्रदेश में भी राजशेखर रेड्डी ने सुधारात्मक कार्य किए और परिणाम उसके पक्ष में रहे। इसतरह चुनाव परिणाम के लिए कई स्थानीय मुद्दे प्रभावी रहे।
इसमें एक खास बात जो निकल कर सामने आई है वह यह कि जनता ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि जो हमारे लिए काम करे, विकास करे उसको ही चुनाव करेंगे। हांलाकि ऐसा देखा गया है कि प्रदेश में जो सरकार रहती है प्राय: उसका असर लोकसभा चुनावों पर पड़ता है लेकिन ऐसा इस बार नहीं हुआ है। इसमें उत्तर प्रदेश की स्थिति अलग है वहां कांग्रेस ने अपनी सीटें तो बढ़ाई हैं लेकिन मतों का प्रतिशत बहुजन समाज पार्टी के पास अधिक है।

प्रश्न- क्या सरकार के कार्यकाल को लेकर कोई संदेह है?

उत्तर- इस बार कांग्रेस के पास अधिक सीटों को देखकर लगता है कि यह स्थायी सरकार होगी। इसमें अस्थिरता नहीं होगी। कांग्रेस ने इस बार तालमेल बनाने के लिए कोई सिफारिश नहीं की क्योंकि अगर एक पार्टी नहीं साथ देगी तो दूसरी दे देगी और पार्टियां तैयार भी हैं। एक बात और इस बार वामपंथी दल भी नहीं हैं जो बाहर से समर्थन दे रहे हैं या टांग खींच रहे हैं, इसलिए इस बार एक सुदृढ़ सरकार की उम्मीद है।

प्रश्न- जिस तरह क्षेत्रीय पार्टियों को सीटें नहीं मिली हैं क्या ऐसा लगता है कि एक उफान के बाद इनका हस हो रहा है?
उत्तर- क्षेत्रीय पार्टियों की कम सीटें आने पर कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि क्षेत्रीय पार्टियों का भविष्य खतरे में है लेकिन मेरा मानना है कि यह अभी कहना जल्दीबाजी होगी। क्योंकि उत्तर प्रदेश की तरह ही उड़ीसा और तमिलनाडु में भी क्षेत्रीय पार्टियों क ो सीट नहीं मिली हैं लेकिन वोट मिला है।

प्रश्न- इस चुनाव परिणाम को देखते हुए भाजपा के बारे में आप क्या कहेंगे ?

उत्तर- इस समीकरण को देखते हुए लगता है कि सबसे अधिक दिक्कत भारतीय जनता पार्टी के लिए है। भारतीय जनता पार्टी में कुशल नेतृत्व का अभाव है। इसकी विचारधारा में भी विभाजन है। भारतीय जनता पार्टी का एक दल तो विकास चाहता है जबकि दूसरा दल कट्टर हिंदुत्व की बात करता है। इससे भाजपा को खतरा है। कोई भी दल एक साथ दो घोड़ों की सवारी नहीं कर सकता या दो राष्ट्र पर नहीं चल सकता। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी भाजपा को मोदी और वरुण गांधी की लाइन में लाना चाहता है।

प्रश्न- इस सरकार की क्या-क्या चुनौतियां हो सकती हैं?

उत्तर- वर्तमान सरकार की चुनौतियों का जहां तक सवाल है सरकार को शासन प्रणाली में सुधार लाना आवश्यक है। इससे भ्रष्टाचार कम होगा। सरकार जो पैसा विकास पर खर्च करनी चाहती है वह विकास पर ही खर्च हो तब ही विकास होगा। सरकार मूलभूत सुविधाओं के निर्माण में पैसा खर्च करे। चीन में विकास कार्य तेजी से हो रहा है लेकिन भारत में यह दर धीमी है। सरकार पैसा भी लगाती है तो इसे अधिकतर बिचौलिए खा जाते हैं। भाजपा के शासन में सड़क परियोजना जितनी तेजी से चली उसका वह विकास दर कांग्रेस के शासन में नहीं रहा। सरकार को इस पर ध्यान देना होगा।

प्रश्न- भारत का अपने पड़ोसी देशों के संबंधों के बारे में आपका क्या मानना है?

उत्तर- भारत के सार्क देशों से संबंध का मामला भी महत्वपूर्ण है, भारत पड़ोस के देशों के साथ दखलंदाजी नहींे कर सकता क्योंकि वे उसके खिलाफ हो जाएगें। हालांकि श्रीलंका के विकास के लिए भारत कुछ आर्थिक मदद कर सकता है या सुझाव दे सकता है। भारत की पाकिस्तान से बातचीत जारी होनी चाहिए। भारत को यह सोचना भी चाहिए कि पाकिस्तान मुसीबत में फंस गया है। तालिबानियों का बढ़ना भारत के हित में नहीं है। किसी भी हाल में पाकिस्तान का नुकसान भारत के हित में नहीं हो सकता। वर्तमान में दक्षिण एशिया में शांति और सहयोग की आवश्यकता है।

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...