Saturday, May 2, 2009

नेता की फिसलन

नेता की फिसलन
लोग अक्सर पानी कीचड़ या केले के छिलके पर फिसलते हैं लेकिन नेता लोगों की फिसलन में मौसम, कीचड़ या कोई फल कारक नहीं होता इनके लिए तो बस अवसर की बात है जब मौका मिला पल्टी मार गए।
सहीराम की एक ऐसे ही नेता जुगाड़ीराम से मुलाकात हो गई। उम्र अस्सी पार लेकिन सबसे दहाड़ कर कहते हैं कि वही लोकतंत्र के असली पहरुए हैं। सहीराम ने उनसे पूछा कि इस चुनावी समर में आपकी सक्रियता का क्या कारण है? क्या किसी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं या बस हो हल्ला है? यह सुनते ही जुगाड़ीराम भड़क उठे। उन्होंने जोर देकर कहा आप बच्चों जसा सवाल न करें। हम पैदाइशी नेता हैं। हमारे पुज्य पिता जी नेताओं की सभाओं में भाषण सुनने के लिए खेत जोतना छोड़ देते थे। सहीराम ने फिर पृूछा, अच्छा किस पार्टी को समर्थन कर रहे हैं? शायद ही कोई पार्टी हो जिसको हमने समर्थन न किया हो, बह्मचर्य में क्रांतिकारी कम्युनिस्ट था, गृहस्थ आश्रम में कांग्रेसी रहा वानप्रस्थ में जाने के बारे में सोच रहा था लेकिन जंगल कट कर मकान बन गए इसलिए भाजपा ज्वाइन कर मंदिर-मंदिर घूमने लगा सच कह रहा हूं खूब जोर-जोर से कह रहा था कि मंदिर वहीं बनाएंगे लेकिन न राम सुने न कल्याण और व्यथित मन ने सन्यास के लिए व्याकुल हो गया अभी सन्यास के बारे में विचार बनाया था कि समाजवादियों ने पकड़ लिया अब उम्र के इस पड़ाव पर भी मैंने मुलायम मन से लोहिया-लालू-लल्लन का जप किया लेकिन क्या पता था ये सब इतना बेदर्दी से धकिया देगें।
मतलब पार्टियों की सेवा कर कर के आप बूढ़े हो गए हैं, बूढ़ा होगा तुम्हारा बाप, अभी तो मैं जवान हूं। जोर देकर जुगाड़ी राम चिल्लाए। अच्छा आपका मुद्दा क्या है किस मुद्दे को लेकर चुनाव लड़ना चाहते हैं? इस पर उन्होंने दुखी मन से कहा सहीराम जी यही तो रोना है मेरे जितने भी मुद्दे थे विपक्षी दलों ने चोरी कर लिया है मैंने तो लोगों को इस चुनाव में जुगाड़ के भरोसे जीवन यापन क रने की शिक्षा देने वाला हूं। ये सारी बातें सुनकर जुम्मन मियां ने जम्हाई लेते हुए कहा कि जुगाड़ीराम जी हमें भी कुछ बताइए महंगाई देखकर तो आंसू भी नहीं सूख चुके हैं उन्होंने छट से बताया अब प्याज का पराठा खाएं आंसू फिर निकल पड़ेगें। पिंटू पढ़वइया ने चुनाव और आईपीएल के समय को लेकर और उसमें नियमित पिता जी की डांट से परेशान होने की बात कही कि ‘सरस्वती का ध्यान करो बेटा पढ़ो नहीं तो लक्ष्मी रूठ जाएगी।ज् इस पर जुगाड़ीराम ने बताया कि सरस्वती की वीणा के तार से उल्लू की टांग बांध दो बिना उल्लू के लक्ष्मी जी किस पर बैठ कर जाएंगी। सहीराम ने जुगाड़ीराम से कहा कि नेता जी ये उपाय तो.., कोई बात नहीं कम से कम हम औरों की तरह सच्चाई से मुंह तो नहीं मोड़ रहे हैं।
अभिनव उपाध्याय

मुस्कान के प्रकार

मुस्कान के प्रकार
कवि बिहारी ने मुस्कान पर बहुत कुछ लिखा है, मुस्कान शायरों की पहली पसंद हुआ करती थी। लेकिन अब मुस्कान के प्रकार बदल रहे हैं। जसे प्रोफेशनल मुस्कान, एजुकेशनल मुस्कान, अनप्रोफेशनल मुस्कान, सम मुस्कान, विषम मुस्कान, स्थाई मुस्कान, अस्थाई मुस्कान आदि आदि। मतलब यह है कि आप अगर कहीं जा रहे हैं तो उस अनुसार आपकी मुस्कान होनी चाहिए। कारपोरेट जगत की मुस्कान तो माशाअल्लाह। शायरों ने मुस्कान को कभी नहीं मापा था लेकिन आजकल मुस्कान सेंटी मीटर, इंच और मिली मीटर में नापी जाती है। डेढ़, ढाई या सवा इंच टाइप मुस्कान पर किताब भी आ चुकी है। मुङो चिंता तब होती है कि कहीं साहित्यकारों के पास मुस्कान मापने का नैनो मीटर टाइप पैमाना न आ जाय, विज्ञान से संभव है नहीं तो कला तो है ही।
जबसे प्रेस कांफ्रेंस में जूता चलना शुरु हुआ है एक नई तरह की मुस्कान हमारे नेताओं के चेहरे पर देखने को मिल रही है। यह भी दो प्रकार की है, जूता चलने से पूर्व की मुस्कान और जूता चलने के बाद की मुस्कान। एक चैनल की एंकर ने मुस्कुराते हुए इन दोनों मुस्कानों के मध्य तुलनात्मक विेषण प्रस्तुत किया, सबने मुस्कुराते हुए उसकी प्रशंसा की लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि ये किस टाइप की मुस्कान है।
सहीराम के पड़ोसी हंसमुख बाबा के शिष्य दुखहरन मास्टर जब क्लास में बच्चे से पूछते हैं कि ‘पज् से क्या होता है बच्चा जोर से बोलता है काइट और तब मास्टर की मुस्कान देखने लायक होती है।
मंहगाई देखकर एक मध्यम वर्गीय कुत्ते की हंसी पर ग्रहण लग गई लेकिन फिर भी वह पूंजीवादी कुत्ते को देखकर गाली देकर तिक्ष्ण मुस्कान बिखेर देता था थोड़ी देर बाद ढेरों सर्वहारा कुत्ते विभिन्न सुरों में गाली देकर पीछे-पीछे मुस्कुरा शुरू कर दिए।
गांव में जो लोग अधिक हंसते हैं उन्हे प्राय: ‘दंत चियारज् संज्ञा से विभूषित किया जाता है। वह भूखे, प्यासे रह लेगें लेकिन मुस्कुराए बिना नहीं रह सकते। कुछ तो विचित्र तरीके से हंसते हैं अगर जोर से हंस दें तो अट्टहास से आस-पास के पशु पंक्षी ही लापता हो जाए। दंत चियार टाइप एक सज्जन सहीराम के गांव में भी थे जिनकी सार्वजनिक मुस्कुराहट प्रसिद्ध थी। गांव में बाढ़ आए या सूखा, हैजा हो या इंसेफेलाइटिस, बारात निकले या जनाजा वह निम्न, मध्यम या उच्च श्रेणियों में मुस्कुरा ही लेते हैं। लेकिन जब उनके गांव में कोई करबद्ध नेता चुनाव प्रचार करने आता है और उसे वोट डालने का निवेदन करता है तो उसकी हंसी रोके नहीं रुकती।
अभिनव उपाध्याय

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...