Saturday, May 30, 2009

तुर्की ब तुर्की-

यह व्यंग चुनाव के पहले लिखा गया था-

इंटलैक्चुअल गधा

सूरज तप रहा है और पारा चढ़ रहा है, चुनाव का पारा तो लगता है थर्मामीटर तोड़ कर बाहर निकल आएगा। ऐसे में चुनावी परिचर्चा के लिए सहीराम समेत कई लोग नुक्कड़ पर इकट्ठा हुए। सब लोग नेताओं के क्रिया कलाप पर अपनी चर्चा कर रहे थे। एक सज्जन ने कहा कि ऐसा कवि लोग लिखते हैं कि बरसात में विरहन को प्रिय की याद बहुत सताती है और चुनाव जसे-जसे करीब आता है इस मौसम में नेता लोगों का भी विरह जाग जाता है और वोटरों से मिलने की तड़प अपने चरम पर होती है। किसी ने कहा कि लेकिन हम ये कैसे समङों कि सच्चा नेता कौन है और कौन नेता वोट के लिए वास्तविक मेहनत कर रहा है। इस पर बुद्धिराज ने अपनी राय रखी, देखिए नेता कई प्रकार के होते हैं। कु छ दलीय, कुछ निर्दलीय और कुछ दलदलीय। इसलिए सूक्ष्म अध्ययन के बाद मैंने यह जाना कि जब चुनाव के मौसम में लू चल रही हो, गर्म हवा न चाहने पर भी अंदर तक छौंक दे, दूर-दूर तक चील कौवे न दिखे रात्रि के तीसरे पहर में भी जो नेता करबद्ध नीग्रो सुंदरी की तरह दंक्तपंक्तियां चमकाते हुए आपके सामने वोट के लिए याचना करे तो सुधी जन उस पर विचार अवश्य करें।
इस बात पर सबने सहमति जताई। जनपद के विद्वान और वरिष्ठ नेता प्रोफेसर जनहितराम ने अपने चुनाव चिह्न् गधे के साथ तन्मयता से चुनाव प्रचार शुरू किया। धोबी कमालू ने उनके निवेदन पर अपना गधा दो सौ रुपए दिहाड़ी और दाना-पानी पर एक दिन पहले ही बांध दिया। नेता जी जी तोड़ मेहनत करने लगे लेकिन गधा पहले ही दिन खूब दौड़ा- भागा, अपनी डोर खोल दी, खूंटा उखाड़ दिया, घूम फिर कर आता तो नेता जी को भी दुलत्ती लगा देता। सब परेशान कि इसे क्या हो गया है। धोबी कमालू को बुलाया गया जांच पड़ताल के बाद जॉन स्टुवर्ट मिल की पुस्तक ‘ऑन लिबर्टीज् की चबाई गई लुगदी मिली। प्रोफेसर जनहितराम को पता चल गया कि यह उनकी लाइब्रेरी में रात को घुस गया था। किसी तरह नेता जी ने प्रचार किया लोगों का भारी समर्थन भी मिल रहा था लेकिन गधे पर सबकी दृष्टि थी कहीं वह कोई आतंकी पुस्तक न पढ़ ले। कुछ दिन तक तो सब ठीक रहा लेकिन एक दिन गधा उदास था और सुस्त भी, बच्चे उसे छेड़ रहे थे कोई उसके कान में लकड़ी डालता तो कोई नाक में सींक, गधा पूरे दिन कु छ नहीं खाया, झुग्गी के बच्चों को नंगा देख गधा ने भी अपनी पीठ से कपड़ा गिरा दिया। नेता को गधे का रूप समझ में नहीं आ रहा था। तभी एक किताब वाला धोबी से शिकायत करने आया कि उसके गधे ने गांधी जी की सभी पुस्तकें चबा डाली हैं ।
अभिनव उपाध्याय

Tuesday, May 26, 2009

राजनीति है बड़ी बेवफा..

राजनीति है बड़ी बेवफा..
प्यार और हार का बड़ा गहरा संबंध है कब जीतते-जीतते हार जाएं कहा नहीं जा सकता और इसका स्पष्ट कारण भी सीबीआई दौड़ाने पर भी पता नहीं चलता। जनता से बेइंतहा प्यार करने वाले और अपनी विश्वसनीय जीत की इच्छा पाले नेता प्यारेलाल परिणाम आने के बाद दुखी हैं और अपने समर्थकों से बता रहे रहे हैं कि सच राजनीति बहुत बेवफा टाइप है, और हार के बाद आंसू बेपरवाह निकल रहे हैं। इसके लिए क्या-क्या नहीं किया, बाबूजी से झूठ बोलकर रात-रात भर जागकर जनता के बीच प्रचार करने गया। कई दिनों तक सक्रिय राजनीति में आने के लिए घर का गेंहू चावल तक बेंच दिया, बर्तन बेंचने की कोशिश कर रहा था लेकिन वो तो बेगम ने बेलन उठा लिया। पुज्य पिता जी इसी शोक से चल बसे और अब इस सक्रियता का ये सिला मिलेगा सोचा भी नहीं था।
चुनाव के आश्चर्यजनक परिणाम आने पर नेता जी की चिंता छुपाए नहीं छुपती वो परेशान हैं। उनके सलाहकार सरस जी ने इसका सरल सा उपाय बताया कि आईपीएल को लेकर हो हल्ला था लेकिन सभी टीमों की कमाई हुई जो जीता उसकी बल्ले-बल्ले, जो हारा उसकी भी चांदी चले। इसमें बड़ी भूमिका चियर्स गर्ल ने निभाई क्यों न अब चुनाव प्रचार के लिए भी चियर्स गर्ल को बुलाया जाए। नेता जी भड़क गए उन्होने कहा यह हमारी नैतिकता के खिलाफ है। इस तरह का अब कोई नया सुझाव स्वीकार नहीं किया जाएगा।
नेता जी कोई स्पष्ट निर्णय नहीं ले पा रहे थे तभी कल्लू किसान ने समझाया, नेता जी इस तरह नि राश न हो हमने आपको ही वोट दिया था लेकिन आप हार क्यों गए हमें नहीं पता। हमारे बाबू जी कहते थे रात में जाग कर पढ़ो और सुबह भोर में भी जागका पढ़ो तो शायद हर परीक्षा में जीत पक्की है। इसलिए मेरा भी कहना है कि आप रात में जाकर जनता की नब्ज पढ़ो और फिर सुबह में भी..। नेता जी अब कुत्ते, बिल्ली, गधा, बकरी तक से सलाह ले रहे हैं। नेता जी उन्नत क्वालिटी के सुझाव के इंतजार में हैं लोग तरह-तरह के सुझाव दे रहे हैं कोई कह रहा है पार्टी बदल दें कोई पोशक बदलने की सलाह दे रहा है नेता जी कि बेचैनी बढ़ती जा रही है कि लेफ्ट में जाएं कि राइट में,नार्थ में जाएं कि साउथ में अब तो उनको तरह-तरह के सपने दिन में दिखाई दे रहे हैं। उनकी चिंता बढ़ती जा रही है तभी किसी ने सलाह दी नेता जी अपनी पार्टी बना लीजिए अब आप चुनाव लड़िए नहीं लड़ाइए। उनकी आंखें चमक गई कि हर्रे लगे ने फिटकिरी और माल मिले चोखा।
अभिनव उपाध्याय

राजनीति है बड़ी बेवफा..

राजनीति है बड़ी बेवफा..
प्यार और हार का बड़ा गहरा संबंध है कब जीतते-जीतते हार जाएं कहा नहीं जा सकता और इसका स्पष्ट कारण भी सीबीआई दौड़ाने पर भी पता नहीं चलता। जनता से बेइंतहा प्यार करने वाले और अपनी विश्वसनीय जीत की इच्छा पाले नेता प्यारेलाल परिणाम आने के बाद दुखी हैं और अपने समर्थकों से बता रहे रहे हैं कि सच राजनीति बहुत बेवफा टाइप है, और हार के बाद आंसू बेपरवाह निकल रहे हैं। इसके लिए क्या-क्या नहीं किया, बाबूजी से झूठ बोलकर रात-रात भर जागकर जनता के बीच प्रचार करने गया। कई दिनों तक सक्रिय राजनीति में आने के लिए घर का गेंहू चावल तक बेंच दिया, बर्तन बेंचने की कोशिश कर रहा था लेकिन वो तो बेगम ने बेलन उठा लिया। पुज्य पिता जी इसी शोक से चल बसे और अब इस सक्रियता का ये सिला मिलेगा सोचा भी नहीं था।
चुनाव के आश्चर्यजनक परिणाम आने पर नेता जी की चिंता छुपाए नहीं छुपती वो परेशान हैं। उनके सलाहकार सरस जी ने इसका सरल सा उपाय बताया कि आईपीएल को लेकर हो हल्ला था लेकिन सभी टीमों की कमाई हुई जो जीता उसकी बल्ले-बल्ले, जो हारा उसकी भी चांदी चले। इसमें बड़ी भूमिका चियर्स गर्ल ने निभाई क्यों न अब चुनाव प्रचार के लिए भी चियर्स गर्ल को बुलाया जाए। नेता जी भड़क गए उन्होने कहा यह हमारी नैतिकता के खिलाफ है। इस तरह का अब कोई नया सुझाव स्वीकार नहीं किया जाएगा।
नेता जी कोई स्पष्ट निर्णय नहीं ले पा रहे थे तभी कल्लू किसान ने समझाया, नेता जी इस तरह नि राश न हो हमने आपको ही वोट दिया था लेकिन आप हार क्यों गए हमें नहीं पता। हमारे बाबू जी कहते थे रात में जाग कर पढ़ो और सुबह भोर में भी जागका पढ़ो तो शायद हर परीक्षा में जीत पक्की है। इसलिए मेरा भी कहना है कि आप रात में जाकर जनता की नब्ज पढ़ो और फिर सुबह में भी..। नेता जी अब कुत्ते, बिल्ली, गधा, बकरी तक से सलाह ले रहे हैं। नेता जी उन्नत क्वालिटी के सुझाव के इंतजार में हैं लोग तरह-तरह के सुझाव दे रहे हैं कोई कह रहा है पार्टी बदल दें कोई पोशक बदलने की सलाह दे रहा है नेता जी कि बेचैनी बढ़ती जा रही है कि लेफ्ट में जाएं कि राइट में,नार्थ में जाएं कि साउथ में अब तो उनको तरह-तरह के सपने दिन में दिखाई दे रहे हैं। उनकी चिंता बढ़ती जा रही है तभी किसी ने सलाह दी नेता जी अपनी पार्टी बना लीजिए अब आप चुनाव लड़िए नहीं लड़ाइए। उनकी आंखें चमक गई कि हर्रे लगे ने फिटकिरी और माल मिले चोखा।
अभिनव उपाध्याय

Monday, May 25, 2009

भारत के लोकतंत्र की विजय है 2009 का चुनाव

भारत के लोकतंत्र की विजय है 2009 का चुनाव
लोकसभा चुनाव के बाद आए परिणामों और राजनीति के ऊपर मशहूर पत्रकार और लेखक मार्क टली से साक्षात्कार-
प्रश्न-लोकसभा चुनाव 2009 को आप कैसे देखते हैं?

उत्तर-चुनाव 2009 दरअसल भारतीय लोकतंत्र की जीत है। कांग्रेस बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन फैसला केवल उसके हक में हुआ यह नहीं कह सकते। जिसने काम किया वह जीता। इसी से यह निष्कर्ष निकलता है कि केंद्र सरकार को काम करके दिखाना होगा। जनता ने उसे एक स्थिर सरकार वाली सुविधा भरपूर दी है।
भारत में पंद्रहवीं लोकसभा के आम चुनाव ने दुनिया को दिखा दिया है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इस बार खास बात रही कि किसी भी दल ने परिणाम पर टीका टिप्पणी न करते हुए अपनी हार स्वीकार की है, जबकि अक्सर देखा गया है कि हार के बाद राजनीतिक पार्टियां इसे पचा नहीं पाती। विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने भी अपनी हार स्वीकार की है। निश्चित तौर पर यह भारत के लोकतंत्र की विजय है।
यह काफी लम्बा चुनाव था जो करीब एक महीने तक चला लेकिन किसी भी राष्ट्रीय पार्टी के पास खास मुद्दा नहीं था। हम यह भी नहीं कह सकते कि यह जीत स्पष्ट रुप से कांग्रेस की जीत है, क्योंकि हर राज्य में स्थानीय मुद्दे परिणाम के लिए प्रभावी रहे। मिसाल के तौर पर बिहार में नीतीश कुमार का शासन संचालन, महाराष्ट्र में शिवसेना का विभाजन, पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम और सिंगूर जसे मुद्दे चुनाव परिणाम को प्रभावी करने वाले कारकों में थे। जिसने विकास किया वह जीता। दिल्ली को ही लें विधान सभा चुनाव हों या लोकसभा चुनाव शीला दीक्षित की छवि विकास करने वाली मुख्यमंत्री की है इसलिए दिल्ली में कांग्रेस की विजय हुई। नीतीश ने भी अच्छी सरकार देने की कोशिश की और इसके अच्छे परिणाम आए। आंध्र प्रदेश में भी राजशेखर रेड्डी ने सुधारात्मक कार्य किए और परिणाम उसके पक्ष में रहे। इसतरह चुनाव परिणाम के लिए कई स्थानीय मुद्दे प्रभावी रहे।
इसमें एक खास बात जो निकल कर सामने आई है वह यह कि जनता ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि जो हमारे लिए काम करे, विकास करे उसको ही चुनाव करेंगे। हांलाकि ऐसा देखा गया है कि प्रदेश में जो सरकार रहती है प्राय: उसका असर लोकसभा चुनावों पर पड़ता है लेकिन ऐसा इस बार नहीं हुआ है। इसमें उत्तर प्रदेश की स्थिति अलग है वहां कांग्रेस ने अपनी सीटें तो बढ़ाई हैं लेकिन मतों का प्रतिशत बहुजन समाज पार्टी के पास अधिक है।

प्रश्न- क्या सरकार के कार्यकाल को लेकर कोई संदेह है?

उत्तर- इस बार कांग्रेस के पास अधिक सीटों को देखकर लगता है कि यह स्थायी सरकार होगी। इसमें अस्थिरता नहीं होगी। कांग्रेस ने इस बार तालमेल बनाने के लिए कोई सिफारिश नहीं की क्योंकि अगर एक पार्टी नहीं साथ देगी तो दूसरी दे देगी और पार्टियां तैयार भी हैं। एक बात और इस बार वामपंथी दल भी नहीं हैं जो बाहर से समर्थन दे रहे हैं या टांग खींच रहे हैं, इसलिए इस बार एक सुदृढ़ सरकार की उम्मीद है।

प्रश्न- जिस तरह क्षेत्रीय पार्टियों को सीटें नहीं मिली हैं क्या ऐसा लगता है कि एक उफान के बाद इनका हस हो रहा है?
उत्तर- क्षेत्रीय पार्टियों की कम सीटें आने पर कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि क्षेत्रीय पार्टियों का भविष्य खतरे में है लेकिन मेरा मानना है कि यह अभी कहना जल्दीबाजी होगी। क्योंकि उत्तर प्रदेश की तरह ही उड़ीसा और तमिलनाडु में भी क्षेत्रीय पार्टियों क ो सीट नहीं मिली हैं लेकिन वोट मिला है।

प्रश्न- इस चुनाव परिणाम को देखते हुए भाजपा के बारे में आप क्या कहेंगे ?

उत्तर- इस समीकरण को देखते हुए लगता है कि सबसे अधिक दिक्कत भारतीय जनता पार्टी के लिए है। भारतीय जनता पार्टी में कुशल नेतृत्व का अभाव है। इसकी विचारधारा में भी विभाजन है। भारतीय जनता पार्टी का एक दल तो विकास चाहता है जबकि दूसरा दल कट्टर हिंदुत्व की बात करता है। इससे भाजपा को खतरा है। कोई भी दल एक साथ दो घोड़ों की सवारी नहीं कर सकता या दो राष्ट्र पर नहीं चल सकता। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी भाजपा को मोदी और वरुण गांधी की लाइन में लाना चाहता है।

प्रश्न- इस सरकार की क्या-क्या चुनौतियां हो सकती हैं?

उत्तर- वर्तमान सरकार की चुनौतियों का जहां तक सवाल है सरकार को शासन प्रणाली में सुधार लाना आवश्यक है। इससे भ्रष्टाचार कम होगा। सरकार जो पैसा विकास पर खर्च करनी चाहती है वह विकास पर ही खर्च हो तब ही विकास होगा। सरकार मूलभूत सुविधाओं के निर्माण में पैसा खर्च करे। चीन में विकास कार्य तेजी से हो रहा है लेकिन भारत में यह दर धीमी है। सरकार पैसा भी लगाती है तो इसे अधिकतर बिचौलिए खा जाते हैं। भाजपा के शासन में सड़क परियोजना जितनी तेजी से चली उसका वह विकास दर कांग्रेस के शासन में नहीं रहा। सरकार को इस पर ध्यान देना होगा।

प्रश्न- भारत का अपने पड़ोसी देशों के संबंधों के बारे में आपका क्या मानना है?

उत्तर- भारत के सार्क देशों से संबंध का मामला भी महत्वपूर्ण है, भारत पड़ोस के देशों के साथ दखलंदाजी नहींे कर सकता क्योंकि वे उसके खिलाफ हो जाएगें। हालांकि श्रीलंका के विकास के लिए भारत कुछ आर्थिक मदद कर सकता है या सुझाव दे सकता है। भारत की पाकिस्तान से बातचीत जारी होनी चाहिए। भारत को यह सोचना भी चाहिए कि पाकिस्तान मुसीबत में फंस गया है। तालिबानियों का बढ़ना भारत के हित में नहीं है। किसी भी हाल में पाकिस्तान का नुकसान भारत के हित में नहीं हो सकता। वर्तमान में दक्षिण एशिया में शांति और सहयोग की आवश्यकता है।

Wednesday, May 6, 2009

तीन कविताएं

छांव

दोपहर की धूप में जब सूख जाता है गला
और चटकने लगता है तलवा
तब बहुत महसूस होती है
छांव तुम्हारे आंचल की।

मेरी...
एक फंतासी ताउम्र की
जब-जब आए सावन,
या जब रंग बिखेरे मौसम,
या छा जाए बसंत की मदमाती खुशबू,
या दिख जाए कोई जोड़ा, हंसता- खिलखिलाता
या जब पोंछता हूं माथे का पसीना
तब याद आ ही जाते हो अक्सर, जिसे लोग कहते थे
मेरी..।



दोस्त-

हां वह यही कहती थी,
जब खुश होती थी
और चहक कर पकड़ा देती थी
चाकलेट का डिब्बा,
या फिर मायूसी में रख देती थी
हथेली पर अपना माथा
और फिर गर्म आंसुओं से भीगती थी अंगुलियां देर तक,
अक्सर चाय का बिल चुकाने की जिद में
वह कर देती थी झगड़ा,
और कुछ देर बाद वह यही कहती कि वह दोस्त है मेरी।
आज भी जब कांच की गिलास सेंकती है हाथ,
वह मिल ही जाती है चाय की चुस्की में,
होंठो पर चिपकती मिठास लिए।

Saturday, May 2, 2009

नेता की फिसलन

नेता की फिसलन
लोग अक्सर पानी कीचड़ या केले के छिलके पर फिसलते हैं लेकिन नेता लोगों की फिसलन में मौसम, कीचड़ या कोई फल कारक नहीं होता इनके लिए तो बस अवसर की बात है जब मौका मिला पल्टी मार गए।
सहीराम की एक ऐसे ही नेता जुगाड़ीराम से मुलाकात हो गई। उम्र अस्सी पार लेकिन सबसे दहाड़ कर कहते हैं कि वही लोकतंत्र के असली पहरुए हैं। सहीराम ने उनसे पूछा कि इस चुनावी समर में आपकी सक्रियता का क्या कारण है? क्या किसी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं या बस हो हल्ला है? यह सुनते ही जुगाड़ीराम भड़क उठे। उन्होंने जोर देकर कहा आप बच्चों जसा सवाल न करें। हम पैदाइशी नेता हैं। हमारे पुज्य पिता जी नेताओं की सभाओं में भाषण सुनने के लिए खेत जोतना छोड़ देते थे। सहीराम ने फिर पृूछा, अच्छा किस पार्टी को समर्थन कर रहे हैं? शायद ही कोई पार्टी हो जिसको हमने समर्थन न किया हो, बह्मचर्य में क्रांतिकारी कम्युनिस्ट था, गृहस्थ आश्रम में कांग्रेसी रहा वानप्रस्थ में जाने के बारे में सोच रहा था लेकिन जंगल कट कर मकान बन गए इसलिए भाजपा ज्वाइन कर मंदिर-मंदिर घूमने लगा सच कह रहा हूं खूब जोर-जोर से कह रहा था कि मंदिर वहीं बनाएंगे लेकिन न राम सुने न कल्याण और व्यथित मन ने सन्यास के लिए व्याकुल हो गया अभी सन्यास के बारे में विचार बनाया था कि समाजवादियों ने पकड़ लिया अब उम्र के इस पड़ाव पर भी मैंने मुलायम मन से लोहिया-लालू-लल्लन का जप किया लेकिन क्या पता था ये सब इतना बेदर्दी से धकिया देगें।
मतलब पार्टियों की सेवा कर कर के आप बूढ़े हो गए हैं, बूढ़ा होगा तुम्हारा बाप, अभी तो मैं जवान हूं। जोर देकर जुगाड़ी राम चिल्लाए। अच्छा आपका मुद्दा क्या है किस मुद्दे को लेकर चुनाव लड़ना चाहते हैं? इस पर उन्होंने दुखी मन से कहा सहीराम जी यही तो रोना है मेरे जितने भी मुद्दे थे विपक्षी दलों ने चोरी कर लिया है मैंने तो लोगों को इस चुनाव में जुगाड़ के भरोसे जीवन यापन क रने की शिक्षा देने वाला हूं। ये सारी बातें सुनकर जुम्मन मियां ने जम्हाई लेते हुए कहा कि जुगाड़ीराम जी हमें भी कुछ बताइए महंगाई देखकर तो आंसू भी नहीं सूख चुके हैं उन्होंने छट से बताया अब प्याज का पराठा खाएं आंसू फिर निकल पड़ेगें। पिंटू पढ़वइया ने चुनाव और आईपीएल के समय को लेकर और उसमें नियमित पिता जी की डांट से परेशान होने की बात कही कि ‘सरस्वती का ध्यान करो बेटा पढ़ो नहीं तो लक्ष्मी रूठ जाएगी।ज् इस पर जुगाड़ीराम ने बताया कि सरस्वती की वीणा के तार से उल्लू की टांग बांध दो बिना उल्लू के लक्ष्मी जी किस पर बैठ कर जाएंगी। सहीराम ने जुगाड़ीराम से कहा कि नेता जी ये उपाय तो.., कोई बात नहीं कम से कम हम औरों की तरह सच्चाई से मुंह तो नहीं मोड़ रहे हैं।
अभिनव उपाध्याय

मुस्कान के प्रकार

मुस्कान के प्रकार
कवि बिहारी ने मुस्कान पर बहुत कुछ लिखा है, मुस्कान शायरों की पहली पसंद हुआ करती थी। लेकिन अब मुस्कान के प्रकार बदल रहे हैं। जसे प्रोफेशनल मुस्कान, एजुकेशनल मुस्कान, अनप्रोफेशनल मुस्कान, सम मुस्कान, विषम मुस्कान, स्थाई मुस्कान, अस्थाई मुस्कान आदि आदि। मतलब यह है कि आप अगर कहीं जा रहे हैं तो उस अनुसार आपकी मुस्कान होनी चाहिए। कारपोरेट जगत की मुस्कान तो माशाअल्लाह। शायरों ने मुस्कान को कभी नहीं मापा था लेकिन आजकल मुस्कान सेंटी मीटर, इंच और मिली मीटर में नापी जाती है। डेढ़, ढाई या सवा इंच टाइप मुस्कान पर किताब भी आ चुकी है। मुङो चिंता तब होती है कि कहीं साहित्यकारों के पास मुस्कान मापने का नैनो मीटर टाइप पैमाना न आ जाय, विज्ञान से संभव है नहीं तो कला तो है ही।
जबसे प्रेस कांफ्रेंस में जूता चलना शुरु हुआ है एक नई तरह की मुस्कान हमारे नेताओं के चेहरे पर देखने को मिल रही है। यह भी दो प्रकार की है, जूता चलने से पूर्व की मुस्कान और जूता चलने के बाद की मुस्कान। एक चैनल की एंकर ने मुस्कुराते हुए इन दोनों मुस्कानों के मध्य तुलनात्मक विेषण प्रस्तुत किया, सबने मुस्कुराते हुए उसकी प्रशंसा की लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि ये किस टाइप की मुस्कान है।
सहीराम के पड़ोसी हंसमुख बाबा के शिष्य दुखहरन मास्टर जब क्लास में बच्चे से पूछते हैं कि ‘पज् से क्या होता है बच्चा जोर से बोलता है काइट और तब मास्टर की मुस्कान देखने लायक होती है।
मंहगाई देखकर एक मध्यम वर्गीय कुत्ते की हंसी पर ग्रहण लग गई लेकिन फिर भी वह पूंजीवादी कुत्ते को देखकर गाली देकर तिक्ष्ण मुस्कान बिखेर देता था थोड़ी देर बाद ढेरों सर्वहारा कुत्ते विभिन्न सुरों में गाली देकर पीछे-पीछे मुस्कुरा शुरू कर दिए।
गांव में जो लोग अधिक हंसते हैं उन्हे प्राय: ‘दंत चियारज् संज्ञा से विभूषित किया जाता है। वह भूखे, प्यासे रह लेगें लेकिन मुस्कुराए बिना नहीं रह सकते। कुछ तो विचित्र तरीके से हंसते हैं अगर जोर से हंस दें तो अट्टहास से आस-पास के पशु पंक्षी ही लापता हो जाए। दंत चियार टाइप एक सज्जन सहीराम के गांव में भी थे जिनकी सार्वजनिक मुस्कुराहट प्रसिद्ध थी। गांव में बाढ़ आए या सूखा, हैजा हो या इंसेफेलाइटिस, बारात निकले या जनाजा वह निम्न, मध्यम या उच्च श्रेणियों में मुस्कुरा ही लेते हैं। लेकिन जब उनके गांव में कोई करबद्ध नेता चुनाव प्रचार करने आता है और उसे वोट डालने का निवेदन करता है तो उसकी हंसी रोके नहीं रुकती।
अभिनव उपाध्याय

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...