बजट के बाहर बजट
इंतजार का फल मीठा होता है, ऐसा घर के बुजुर्ग कहते थे। मुङो भी ऐसी ही उम्मीद थी, खासकर तब जब इंतजार बुजुर्ग ही करा रहे हों। बड़ी आशा से बजट का इंतजार चल रहा था कि शायद कोई जादू हो जाय। शायद इस बार कम दाम होने के कारण दाल उछलकर खुद-ब-खुद कू कर में चली आएगी और हम लोगों को भी गाढ़ी दाल का स्वाद मिलेगा। आलू नाचते हुए थैले में आ गिरेगा और प्याज रोयेगी कि अब तो कोई मुङो ले जाओ। टमाटर मुस्क राकर कहेगा कि टच मी बेबी.टच मी और गोभी के फूल पर ग्राहक रुपी भंवरे मंडराएंगे। लेकिन इस बार इंतहां हो गई इंतजार की। कोई भी ऐसी घोषणा नहीं हुई और उम्मीद को सांप सूंघ गया।
इस बज्रपात से शेयर बाजार भरभराकर गिर गया। बीएसई, एनएसई ने कई फीसदी लुढ़क-लुढ़ककर संभलने की कोशिश की। निफ्टी का मामला भी फिफ्टी-फिफ्टी जसा होने लगा। उम्मीदें इस बार भी मुस्कराकर दम तोड़ी। सबसे अधिक उम्मीद कर्तव्यनिष्ट कलमकारों को थी, वो बजट भाषण के समय टकटकी लगाकर देख रहे थे कि बुढ़ऊ शायद कुछ बक दें, चश्मा का लेंस काश इस बार धोखा दे दे और बेरोजगारों की फ टी झोली में एकाध ही सही रसीली गोली आ जाए। लेकिन काश, काश ही रह गया और आस, आस। इस गंदी मंदी से जूझ रहे बेजार बाजार बेचारे बने रहे और सुनकर व्यापारी बौरा गए।
बहरहाल चाय के बाद चिंतन का दौर शुरू हुआ। सहीराम भी इसमें शामिल हुए। मन मंथन चित्त क्रंदन की व्यथा कथा के लिए सभी उत्साहित दिखे। किसी ने कहा, लेकिन इस बजट में किसानों को भारी पैकेज देने की सूचना है और सेना के लिए भी सरकार बढ़ोत्तरी कर रही है। इस पर आर्थिक मामलों के गुरु बाबा चवन्नी ने कहा कि मतलब भक्तजनों इस बार होरी, धनिया, गोबर होली में हर्बल कलर से होली खेलेंगे। लोन सस्ता होने पर निरहू रेडियो की जगह होम थिएटर ले लेगा। अब पूस की रात में हल्कू पश्मीना शाल ओढ़कर खेत की रखवाली करने जाएगा। स्लमडाग झबरा अब अलाव के पास नहीं रूम हीटर के पास बैठेगा। अब बुधिया चंदा मांगकर नहीं खाएगा। जरूर यह खबर सुनकर विदर्भ में आत्महत्या करने वाले किसान श्मशान में जाम लड़ाएंगे। माने अब सर्वहारा कि आरा.र.र.ररर।
लोन न चुका पाने के कारण सुखंडी हो चुके शिष्य घुरहू ने कहा कि बाबा जब हम प्यासे मर रहे होते हैं तो सरकार पानी की बूंद टपकाती है और मरने के बाद भोज कराती है। यह बजट भी कुछ इसी तरह का है। सबने एक सुर में कहा यह बजट हमारे बजट के बाहर है।
अभिनव उपाध्याय