Thursday, March 5, 2009

जय हो, मगर किसकी!

जय हो, मगर किसकी!
खबर है कि सत्ताधारी दल कांग्रेस ने आस्कर विजेता फिल्म स्लमडाग मिलियेनर के गाने जय हो के कापीराइट को खरीद लिया। अब इस गाने की धुन पर कई जिंगल्ल बनाए जाएंगे। जिनका प्रयोग आगामी लोकसभा चुनाव में जनता तो लुभाने के लिए किया जाएगा। वैसे फिल्मी गानों पर राजनैतिक पार्टियाों का थिरकना नया नहीं है। फिल्म चक दे इंडिया में शाहरुख की टीम ने विपक्षी टीम को शिकस्त क्या दी। बस चक दे एक जुमला बन गया। राजनीति हो या क्रिकेट बस मैदान में एक ही गाना गूंजता था। चक दे, चक दे। तब भी कांग्रेसी इस गाने की धुन पर थिरके थे। तब इसका इस्तेमाल गुजरात में किया गया था। हालांकि गुजराती मन पर इस गाने का कोई असर नहीं हुआ। और रील लाइफ से इतर कांग्रेस को रीयल लाइफ में हार का मुंह देखना पड़ा था। जनता ने मोदी को सत्ता सौंप कर यह साबित कर दिया था कि वोट प्रचार पर नहीं, बल्कि मुद्दों पर मिलते हैं। गुजरात की जनता के मन में मोदी यानी विकास पुरुष के रूप में स्थापित हैं। हालांकि यह भी बहश का मुद्दा है कि गुजरात की चमक कितनी सतही है। क्योंकि हालिया कुछ खबरों पर गौर करें तो गुजराते के गांव-देहात में यह चमक फीकी पड़ती दिखाई देती है। खैर, इस बात को तब तक नहीं उठाया जा सकता जब तक आंखों न देख लिया जाए। फिर भी धुआं उड़ा है तो कहीं न कहीं आग तो होगी ही। यानी पूरी न सही पर कुछ प्रतिशत ही सही सच्चाई तो जरूर होगी। खैर राजनीति विषय ही ऐसा है कि किसी एक गली में गुजरते ही कई रास्ते खुल जाते हैं। यानी किसी एक पार्टी का जिक्र करो तो खुद-बखुद कई पार्टियां उस बहश की जद में आ जाती हैं। हम बात कर रहे थे जय हो की। आस्कर विजेता फिल्म स्लमडाग में यह गाना पूरी फिल्म की आत्मा है। किस तरह स्लम में रहने वाला एक बच्चा केबीसी सरीखे प्रोग्राम में एक करोड़ रुपए जीतने में कामयाब होता है। जय हो, जीत और सफलता का पर्याए है। कांग्रेस ने भी जीत के मंसूबों के साथ ही इस गाने को प्रचार का माध्यम बनाया है। पर गुजरात की हार से पार्टी को सबक तो जरूर लेना चाहिए कि अब जनता को लुभाना आसान नहीं है। प्रचार का सुर जो भी हो, लेकिन जब तक असल मुद्दों को न केवल उठाया जाएगा बल्कि सत्ता में आने के बाद अमल में भी लाया जाए तभी जनता उन्हें सड़क से संसद तक जाने का मौका देगी। ध्यान रहे रास्ता दोतरफा है, दूसरा रास्ता संसद से सड़क तक का भी है। जय हो, लेकिन केवल पार्टी की नहीं बल्कि इस जीत में जनता भी शामिल हो।
संध्या द्विवेदी, आज समाज

एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...