Wednesday, March 25, 2009

कड़की के आंकड़े

कड़की के आंकड़े

जनाब ये आंकड़े भी बड़ी चीज हैं। और इनके निकालने का अंदाज तो माशाअल्ला। देश में साल भर में कितने मरे, कितने पैदा हुए और कितने मरघटे में हैं से लेकर आगामी सौ साल में कितने पैदा होंगे। यही नहीं कितने जिंदाबाद कहेगें, कितने मुर्दाबाद कहेंगे और कितने दोनों बाद कहेगें। कई एजेंसियों का धंधा भी आंकड़ों से चलता है। और आंकड़ों को बतौर भविष्य जानने की मशीन जसे प्रयोग में लाया जाता है। एक एजेंसी ने तो मुझसे कहा कि हमारी एजेंसी एक सर्वे रिपोर्ट में आपको महानायक घोषित कर देगी। चुनाव में तो हम आंकड़ों का ऐसा चमत्कार करते हैं कि अच्छे-अच्छे बेइमानों को भी पवित्रता का दौरा पड़ने लगता है।
वैसे चुनाव के समय आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। जबसे मायावती ने सबसे अधिक ब्राह्मणों को सीट दिया है तबसे ओझाइन, पड़ाताइन, उपधायिन, मिश्राइन समेत तमान ब्राह्मण आइनों ने फेंकन, घुरहू, निरहू, करवारु समेत स्लमडॉग के पापा टाइप लोगों क ो जुटा कर वोट के आंकड़ों का प्रतिशत बढ़ा रही हैं और स्लमडाग को चाकलेट बांटा जा रहा है। आंकड़ों को मेंटेन करने की कोशिश जारी है। आंकड़ा कभी उछल रहा है, कभी लेट रहा है, कभी सरक रहा है। आंकड़ा अमीरी बता रहा है लेकिन बेंचू बीए का लोटा-थाली राशन के चक्कर में बिक चुका है। जीभ को दाल नहीं मिली है, नाक ने देशी घी सूंघकर संतोष कर लिया है।
चुनाव में वोटों के सही आंकड़े आएं इस चक्कर में वरुण का करुण रस उग्र हो चुका है। चुनाव को देखते ही सब आंकड़ों को एक्टिव करना चाहते हैं। चैनल तैयार हैं, अखबार भी फड़फड़ा रहे हैं। शायद चुनाव में टीआरपी और प्रसार संख्या के आंकड़ों में उछाल आ जाए। प्रवचन वाले बाबा भी आंकड़ोंे के फेर में पड़ गए हैं। मंदी में दक्षिणा की दर कम आने से चेहरे पर शिकन है। वह श्लोक , दोहे, चौपाई के साथ फिल्मी तर्जों का तड़का दे रहे हैं कि किसी बहाने भक्तों की भीड़ जुटे।
आंकड़ों की लीला से बेंचू बीए परेशान हैं। सहीराम से अपनी व्यथा कहते उन्होंने समाचार पत्र पकड़ा दिया जिसमें मुख्य खबर थी ‘मंहगाई की दर एक प्रतिशत से भी कमज्। बेचूं बीए दहाड़ लगाकर कह रहे हैं ये कड़की के आंकड़े हैं। वह लोगों के बीच जाकर कह रहे हैं, इन आंकड़ों को ही खाओं, इसे ही पहनों, इसी से नहाओ,इसी की चाय बनाओ ये आंकड़े लम्बे हैं भूखे नंगों इसे लपेट लो। चुनाव के दौर में ऐसी बातें सुन कर नेता जी उग्र हो गए उन्होनें कहा ये विकास के आंकड़े हैं और सच हैं तुम दुष्प्रचार मत करो। बेचू बीए तन गए और बोल पड़े कुछ आंकड़े हमारे पास भी थे लेकिन कोसी बहा ले गई, मुम्बई विस्फोट में जल गए और कुछ विदर्भ में आत्महत्या करने वाले किसान चबा गए।
अभिनव उपाध्याय

2 comments:

Anonymous said...

vyangya ki sabse badi khubi yeh hoti hai ki usme sach kahne ki puri puri gunjaish hoti hai lekin ek alag hi andaaz mai. aur is kasauti ko mera khayal hai ki aapka koi bhi vyangya bakhubi pura karta hai. sabse badi khubi to aapki yeh hai ki aap paatro ke naam apne vishay ke bilkul anukul rakhte hain. mayawati aur chunaaw ke sandarbha mai aapne jo baate ki hain usse to uttar paradesh ki puri tasweer prakat ho jaati hai.
pankaj chaudhary

संगीता पुरी said...

अब कहां है सच्‍चाई आंकडों में ... आंकडे अच्‍छे हो तो दिखाए जाते है ... बुरे हो तो छिपाए जाते हैं।

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एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...