भूत-वूत कुछ नहीं होता...
लोकसभा चुनावों की नजदीकी से राजनीतिक दल बेकरार हो उठे हैं। उनकी बेकरारी उनके बयानों में साफ झलकने लगी है। वैसे तो चुनावी दंगल में उठापटक होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार तीसरे मोर्चे ने पहले स्थापित दो मोर्चो कांग्रेस और भाजपा के लिए मुसीबतें बढ़ा दी हैं। भूत से डरने वाला व्यक्ति बार-बार कहता है भूत-वूत कुछ नहीं होता। कांग्रेस भी कुछ ऐसा ही करती नजर आ रही है। तीसरे मोर्चे से मोर्चा लेने की कमान पार्टी ने अपने तेजतर्रार नेता प्रणव मुखर्जी को दी है। मुखर्जी ने हमला बोलते हुऐ कहा तीसरे मोर्चे के पास न तो कोई राजनीतिक दृष्टि है और न हीं कोई जनहित कार्यक्रम। प्रणव ने अतीत की दुहाई देते हुए कहा कि पहले भी दो बार 1989 और 1996 में तीसरा मोर्चा बना था उसका हस्र किसी से छिपा नहीं है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी चुप नहीं रह पाए आखिर बोल ही पड़े वैसे तो तीसरा मोर्चा जीतेगा नहीं और अगर जीता भी तो चलेगा नहीं। भगवा पार्टी के सामने तो सबसे बड़ी समस्या पारिवारिक अंतर्कलह पर पर्दा डालने की है। सुधांशु मित्तल को पूर्वोत्तर का कार्यभार सौंपने पर जेटली ने पार्टी अध्यक्ष से खुलकर नाराजगी जताई। मोदी-आडवाणी के बीच टकराव तो गाहे-बगाहे सामने आता ही रहता है। बीजद भी अब तीसरे मोर्चे की तरफ रुख कर चुका है। इनमें से अधिकतर एनडीए का हिस्सा रहे हैं। अपने मुखिया दल से खफा इन दलों ने तीसरे मोर्चे का हाथ थामकर भाजपा के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है। मुखर्जी और राजनाथ सिंह जी डरने की जरूरत नहीं है, भूत-वूत कुछ नहीं होता।
एक दूसरे के धुर विरोधी कांग्रेस और भाजपा तीसरे मोर्चे को फिजूल का ठहराने में एक दूसरे के सुर में सुर मिला रहे हैं। और क्यों न हो विज्ञान का सर्वमान्य सिद्धांत है कि विपरीत ध्रुवों में गजब का अकर्षण होता है। यह तो हुई विपरीत ध्रुवों के साझा मंच की बात अब बात करें तीसरे मोर्चे की तो यह तो भानुमति का कुनबा है। बेचारे वामदल कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा लाकर कुनबा जोड़ने में लगे हैं। लेकिन जहां माया होगी, वहां पर तो कहीं धूप कहीं छाया वाले हालात तो पैदा ही होते रहेंगे। प्रधानमंत्री पद को लेकर मोर्चे के भीतर जारी उठापटक से भला कौन वाकिफ नहीं है। फिलहाल तो
मायाजाल में उलङो तीसरे मोर्चे को बहन जी ने यह कहकर फौरी राहत दे दी है कि चुनाव नतीजे आने के बाद पीएम पद के बारे में चर्चा होगी। पिछले विधानसभा चुनाव नतीजों से उत्साहित माया मेमसाब ने कह दिया भई नतीजे आ जाने दीजिए, जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी होगी भागीदारी। अब उत्तरप्रदेश में तो माया की सत्ता फिलहाल तो मजबूत ही दिखाई देती है, लेकिन विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में बढ़े मत प्रतिशतों से बहनजी उत्साहित हैं तो अतिविश्वास में रहना ज्यादा ठीक नहीं है।
संध्या द्विवेदी- आज समाज
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