Sunday, April 5, 2009

जी चाहता है

जी चाहता है


थक जाए हवा ऐसा दौडूं
छलांग मारूं ऐसा कि टूट जाए बुबका का विश्व कीर्तिमान
नृत्य करुं ऐसा कि, लोग भूल जाएं माइकल जक्शन को
एक ही बार में सातों सुरों को गा जाऊं
नवो रसों को पी जाऊं

जी चाहता है
उड़ता जाऊं आकाश के अंतिम छोर तक
डुबकी लगाऊं पाताल में
और आंखें दिखाऊं शेषनाग को
चिल्लाऊं ऐसा कि
फ ट जाएं परदे बादलोंे के कान के
मेरा जी चाहता है
उछाल दूं हिमालय को उठाकर हथेली से
भर लूं अंजूरी में सातो समंदर
और पी जाऊं एक ही सांस में
जी जाऊं चारो युग
एक ही बार में
मेरा जी चाहता है
क्योंकि ...
आज उसने दे दिया है
हाथ मेरे हाथ में ।

अजय गिरि

1 comments:

manish said...

bahut badhia.really enjoyed.bhai

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एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...