Thursday, April 16, 2009

मुस्कान के प्रकार

मुस्कान के प्रकार
कवि बिहारी ने मुस्कान पर बहुत कुछ लिखा है, मुस्कान शायरों की पहली पसंद हुआ करती थी। लेकिन अब मुस्कान के प्रकार बदल रहे हैं। जसे प्रोफेशनल मुस्कान, एजुकेशनल मुस्कान, अनप्रोफेशनल मुस्कान, सम मुस्कान, विषम मुस्कान, स्थाई मुस्कान, अस्थाई मुस्कान आदि आदि। मतलब यह है कि आप अगर कहीं जा रहे हैं तो उस अनुसार आपकी मुस्कान होनी चाहिए। कारपोरेट जगत की मुस्कान तो माशाअल्लाह। शायरों ने मुस्कान को कभी नहीं मापा था लेकिन आजकल मुस्कान सेंटी मीटर, इंच और मिली मीटर में नापी जाती है। डेढ़, ढाई या सवा इंच टाइप मुस्कान पर किताब भी आ चुकी है। मुङो चिंता तब होती है कि कहीं साहित्यकारों के पास मुस्कान मापने का नैनो मीटर टाइप पैमाना न आ जाय, विज्ञान से संभव है नहीं तो कला तो है ही।
जबसे प्रेस कांफ्रेंस में जूता चलना शुरु हुआ है एक नई तरह की मुस्कान हमारे नेताओं के चेहरे पर देखने को मिल रही है। यह भी दो प्रकार की है, जूता चलने से पूर्व की मुस्कान और जूता चलने के बाद की मुस्कान। एक चैनल की एंकर ने मुस्कुराते हुए इन दोनों मुस्कानों के मध्य तुलनात्मक विेषण प्रस्तुत किया, सबने मुस्कुराते हुए उसकी प्रशंसा की लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि ये किस टाइप की मुस्कान है।
सहीराम के पड़ोसी हंसमुख बाबा के शिष्य दुखहरन मास्टर जब क्लास में बच्चे से पूछते हैं कि ‘पज् से क्या होता है बच्चा जोर से बोलता है काइट और तब मास्टर की मुस्कान देखने लायक होती है।
मंहगाई देखकर एक मध्यम वर्गीय कुत्ते की हंसी पर ग्रहण लग गई लेकिन फिर भी वह पूंजीवादी कुत्ते को देखकर गाली देकर तिक्ष्ण मुस्कान बिखेर देता था थोड़ी देर बाद ढेरों सर्वहारा कुत्ते विभिन्न सुरों में गाली देकर पीछे-पीछे मुस्कुरा शुरू कर दिए।
गांव में जो लोग अधिक हंसते हैं उन्हे प्राय: ‘दंत चियारज् संज्ञा से विभूषित किया जाता है। वह भूखे, प्यासे रह लेगें लेकिन मुस्कुराए बिना नहीं रह सकते। कुछ तो विचित्र तरीके से हंसते हैं अगर जोर से हंस दें तो अट्टहास से आस-पास के पशु पंक्षी ही लापता हो जाए। दंत चियार टाइप एक सज्जन सहीराम के गांव में भी थे जिनकी सार्वजनिक मुस्कुराहट प्रसिद्ध थी। गांव में बाढ़ आए या सूखा, हैजा हो या इंसेफेलाइटिस, बारात निकले या जनाजा वह निम्न, मध्यम या उच्च श्रेणियों में मुस्कुरा ही लेते हैं। लेकिन जब उनके गांव में कोई करबद्ध नेता चुनाव प्रचार करने आता है और उसे वोट डालने का निवेदन करता है तो उसकी हंसी रोके नहीं रुकती।
अभिनव उपाध्याय

2 comments:

vaibhava said...

bakhoob

Anonymous said...

अभिनव भाई बहुत बढ़िया व्यंग्य लिख रहे हैं. नेता की मुस्कान कैसे होती है चुनाव के समय मई इसको आपने बहुत ही प्रभावी तरीके से समझाया है. नेता की मुस्कान देखने के लिए कितने लोगों की मुस्कान देखनी पड़ती है यह आपके व्यंग्य को पढ़कर पता चलता है .बधाई .
पंकज चौधरी

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