Saturday, May 30, 2009

तुर्की ब तुर्की-

यह व्यंग चुनाव के पहले लिखा गया था-

इंटलैक्चुअल गधा

सूरज तप रहा है और पारा चढ़ रहा है, चुनाव का पारा तो लगता है थर्मामीटर तोड़ कर बाहर निकल आएगा। ऐसे में चुनावी परिचर्चा के लिए सहीराम समेत कई लोग नुक्कड़ पर इकट्ठा हुए। सब लोग नेताओं के क्रिया कलाप पर अपनी चर्चा कर रहे थे। एक सज्जन ने कहा कि ऐसा कवि लोग लिखते हैं कि बरसात में विरहन को प्रिय की याद बहुत सताती है और चुनाव जसे-जसे करीब आता है इस मौसम में नेता लोगों का भी विरह जाग जाता है और वोटरों से मिलने की तड़प अपने चरम पर होती है। किसी ने कहा कि लेकिन हम ये कैसे समङों कि सच्चा नेता कौन है और कौन नेता वोट के लिए वास्तविक मेहनत कर रहा है। इस पर बुद्धिराज ने अपनी राय रखी, देखिए नेता कई प्रकार के होते हैं। कु छ दलीय, कुछ निर्दलीय और कुछ दलदलीय। इसलिए सूक्ष्म अध्ययन के बाद मैंने यह जाना कि जब चुनाव के मौसम में लू चल रही हो, गर्म हवा न चाहने पर भी अंदर तक छौंक दे, दूर-दूर तक चील कौवे न दिखे रात्रि के तीसरे पहर में भी जो नेता करबद्ध नीग्रो सुंदरी की तरह दंक्तपंक्तियां चमकाते हुए आपके सामने वोट के लिए याचना करे तो सुधी जन उस पर विचार अवश्य करें।
इस बात पर सबने सहमति जताई। जनपद के विद्वान और वरिष्ठ नेता प्रोफेसर जनहितराम ने अपने चुनाव चिह्न् गधे के साथ तन्मयता से चुनाव प्रचार शुरू किया। धोबी कमालू ने उनके निवेदन पर अपना गधा दो सौ रुपए दिहाड़ी और दाना-पानी पर एक दिन पहले ही बांध दिया। नेता जी जी तोड़ मेहनत करने लगे लेकिन गधा पहले ही दिन खूब दौड़ा- भागा, अपनी डोर खोल दी, खूंटा उखाड़ दिया, घूम फिर कर आता तो नेता जी को भी दुलत्ती लगा देता। सब परेशान कि इसे क्या हो गया है। धोबी कमालू को बुलाया गया जांच पड़ताल के बाद जॉन स्टुवर्ट मिल की पुस्तक ‘ऑन लिबर्टीज् की चबाई गई लुगदी मिली। प्रोफेसर जनहितराम को पता चल गया कि यह उनकी लाइब्रेरी में रात को घुस गया था। किसी तरह नेता जी ने प्रचार किया लोगों का भारी समर्थन भी मिल रहा था लेकिन गधे पर सबकी दृष्टि थी कहीं वह कोई आतंकी पुस्तक न पढ़ ले। कुछ दिन तक तो सब ठीक रहा लेकिन एक दिन गधा उदास था और सुस्त भी, बच्चे उसे छेड़ रहे थे कोई उसके कान में लकड़ी डालता तो कोई नाक में सींक, गधा पूरे दिन कु छ नहीं खाया, झुग्गी के बच्चों को नंगा देख गधा ने भी अपनी पीठ से कपड़ा गिरा दिया। नेता को गधे का रूप समझ में नहीं आ रहा था। तभी एक किताब वाला धोबी से शिकायत करने आया कि उसके गधे ने गांधी जी की सभी पुस्तकें चबा डाली हैं ।
अभिनव उपाध्याय

1 comments:

अजय कुमार झा said...

ise hee kehte hain bhigaa kar maarnaa... kamaal kaa vyangya hai........

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एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...