Monday, September 28, 2009

एक थे बनारसी प्रिंसेप






जेम्स प्रिंसेप गजब के प्रतिभाशाली व्यक्ति। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी था। इस सब से अलग एक खास बात यह थी कि बनारस से उनको अगाध प्रेम था। बनारस ही नहीं, बल्कि गंगा को भी वे ‘हमारी गंगाज् कहते थे। बनारस के लिए जितना जेम्स प्रिंसेप ने किया वह अतुलनीय है। शायद ही किसी एक शहर के लिए एक व्यक्ति ने इतना किया होगा। ओपी केजरीवाल ने पिं्रसेप की इस काम को लेकर और उनके परिवार से मिली सामग्री के आधार पर एक पुस्तक तैयार की है जिसे पिलग्रिम्स पब्लिशिंग ने हाल ही में प्रकाशित किया है। केजरीवाल जेम्स की बायोग्राफी और भारत में प्रिंसेप परिवार के इतिहास पर भी काम कर रहे हैं। उनसे इस किताब और इसके अद्भुत नायक पर यह बातचीत अभिनव उपाध्याय ने की है।



प्रश्न- जेम्स प्रिंसेप के लिए ‘बहुमुखी प्रतिभावानज् शब्द भी शायद कम पड़ेगा? आप जेम्स की प्रतिभा को कैसे व्याख्यायित करेंगे? उनका कौन सा रूप आपको सबसे अधिक आकर्षित करता है?

उत्तर- बहुत से प्रतिभाशाली व्यक्ति हुए हैं लेकिन उनका किसी एक विशेष विषय में ही नाम हुआ है। जसे सुकरात को हम एक दार्शनिक के रूप में ही जानते हैं, मोजार्ट को एक श्रेष्ठ संगीतज्ञ के रूप में। लेकिन उसका व्यक्तित्व बहुमुखी था। मुङो लगता है कि वह लियोनाडरे द विंची के करीब था। लेकिन लियोनाडरे द विंची और उसमें फर्क है, जेम्स प्रिंसेप जो करता था उसके बारे में लिखता था। उसके लेख विभिन्न विधाओं में हैं। उसने ब्राह्मी लिपि पढ़कर भारत को अशोक का उपहार दिया। हमारे भारतीय इतिहास का बहुत बड़ा प्रतिशत या तो उसने खोजा है या उसमें हिस्सा लिया है। उसने कनिष्क, गुप्त वंश आदि अनेक वंशों को पढ़ा। प्राचीन राजवंशों की खोज में भी उसका योगदान है। वह बांसुरी बजाता था, नाटक करता था और भी बहुत कुछ..

प्रश्न- जेम्स प्रिंसेप की ‘बनारस की खोज और बनारस निर्माणज् की मुख्य बातें क्या थीं, जो इस किताब में आई हैं?

उत्तर-जेम्स ने बनारस की खोज नहीं की इसका निर्माण किया। बनारस का पहला नक्शा जेम्स ने बनाया। वहां के लोगों की प्रामाणिक जनगणना, सबसे पहले भूमिगत नाली प्रणाली उसने बनवाई जो आज भी काम कर रही है। किसी ने उसके बारे में कहा है कि वह आधुनिक बनारस का निर्माता था, जिससे मैं पूर्णत: सहमत हूं। वहां पर उसने कर्मनाशा नदी का पुल बनवाया। उसका निर्माण कार्य देखने वह रोज 30 किमी घोड़े से जाता था। उस पुल पर आज भी गाड़ियां चलती हैं। अब तक कोई भी व्यक्ति बनारस के लिए इतना काम नहीं किया है। उसने बनारस के हर घर का नक्शा बनाया। बनारस के प्रति उसका प्रेम आदरणीय था, क्योंकि वह गंगा नदी को अपने लेखों में ‘हमारी गंगा जीज् कहकर संबोधित करता है।

प्रश्न- जेम्स प्रिंसेप को बनारस पर जारी सामग्री में से इस पुस्तक को जारी करने में किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

उत्तर- जेम्स प्रिंसेप के बारे में भारत में कुछ खास नहीं मिला। मैं लंदन में प्रिंसेप खानदान के बारे में खोज कर रहा था कि वहां से कुछ मिल जाए। इसके लिए वहां की फोन डायरेक्ट्री में प्रिंसेप परिवार से संबंधित नम्बर लिया।
उनसे मिलने गया लेकिन वे लोग भी जेम्स के बारे में अधिक नहीं जानते थे। उन्होंने अन्य लोगों के नम्बर दिए लेकिन कुछ बात नहीं बनी। कुछ दिन बाद उन्होंने कहा कि उनके पास एक पुराना बक्सा है शायद उसमें उसकी जरूरत की कुछ चीजें हों। उस बक्से को खोलने पर उसमें अद्भुत सामग्री मिली। मैं उसे भारत लाना चाहता था लेकिन वे लोग भारत के लोगों को लापरवाह मानते हैं। मैं लगातार उनके संपर्क में रहा। एक दिन उन्होंने बताया कि वह घर खाली कर रहे हैं और मैं वह सामग्री ले आया। उसके बाद मैंने अपनी किताब एशियाटिक सोसायटी आफ बंगाल में एक अध्याय जेम्स प्रिंसेप पर लिखा।


प्रश्न-इस किताब को तैयार करने में कितना समय लगा?

उत्तर- इस किताब को तैयार करने में तीन साल लग गए। लेकिन इस परिवार पर मैं पिछले 15 सालों से काम कर रहा हूं। मेरा मानना है कि आधुनिक भारत का इतिहास प्रिंसेप के बिना नहीं लिखा जा सकता। लेकिन यह दुर्भाग्य है कि इसके नाम को बनारस के अधिकतर लोग नहीं जानते। उसने वहां पर सोसायटी फार दी सेप्रेशन आफ द वायस नामक संस्था बनाई।

प्रश्न- बनारस पर बहुत लिखा जा चुका है। आपका काम इससे किस तरह से अलग है?

उत्तर- इसकी कोई तुलना नहीं हो सकती। उन्नीसवीं शताब्दी का सही इतिहास इस किताब में मिलता है। सबका दृष्टिकोण अलग है। इसमें जेम्स प्रिंसेप के योगदान को लेकर उस समय के दृश्य उपस्थित किए गए हैं। अब तक बनारस को लेकर जेम्स प्रिंसेप पर कुछ नहीं लिखा गया है। काशी का एकमात्र इतिहास डा. मोतीचन्द ने ‘काशी का इतिहासज् लिखा लेकिन जेम्स प्रिंसेप के बारे में कुछ नहीं था। इसके नए संस्करण में मैंने एक लेख जेम्स प्रिंसेप लिखा। यह दुखद है कि अभी तक इस बुद्धिजीवी पर लोगों ने ध्यान नहीं दिया।

प्रश्न-बनारस को लेकर हमेशा से एक सम्मोहन रहा है। क्या आपमें भी किसी तरह का सम्मोहन था? इसे यह किताब किस तरह तृप्त कर पाती है?

उत्तर- बनारस के प्रति मेरे मन में एक समर्पण की भावना है। जब सेवानिवृत्ति के बाद बनारस गया तो वहां ‘वाराणसी जागृति मंचज् से जुड़ा लेकिन मुङो बतौर केंद्रीय सूचना आयुक्त बनाकर दिल्ली बुला लिया गया। इसके बाद फिर बनारस गया। वहां गंगा के बचाव के लिए ‘गंगा महासभाज् में भाग लिया। यह गौर करने वाली बात है कि विश्व के लोग भारत के और किसी शहर को इतना नहीं जानते जितना बनारस को जानते हैं। यह किताब भी इसी समर्पण का प्रतिफल है। अगले साल तक दो और किताबें बनारस पर आ जाएंगी।

प्रश्न- इस किताब के पृष्ठों में रेखांकनों, चित्रों में जो बनारस उभरता है, उसके बरक्स आज का बनारस अपने तमाम सम्मोहन के बावजूद, कहां ठहरता है? इस किताब पर काम करते हुए यह बात भी आपके दिमाग में जरूर आई होगी?

उत्तर- काश! वह बनारस अब होता, वह माहौल वापस आ सकता। अब बनारस भीड़, गंदगी, प्रदूषण से पटा है। वहां की संस्कृति भी लुप्त हो रही है। बनारस के पक्का महल में, जो पुराने बनारस के नाम से जाना जाता है के एक सज्जन ने जेम्स प्रिंसेप के बारे में बताया कि वह हम लोगों से अधिक बनारसी था। उसे लोग ‘बनारसी प्रिंसेपज् कहते थे। मुङो कोई विदेशी ऐसा नहीं मिला जो किसी शहर के निर्माण उसकी संस्कृति में इतना रच-बस गया हो। कुछ हद तक डेविड हेयर को कह सकते हैं क्योंकि कोलकाता के प्रति उसके मन में अगाध प्रेम था। लेकिन फिर भी इतना नहीं जितना जेम्स का बनारस के प्रति था।

प्रश्न- जेम्स प्रिंसेप की बायोग्राफी पर भी आप काम कर रहे हैं? साथ ही भारत में प्रिंसेप परिवार के इतिहास पर भी, अपने इस काम के बारे में बताएं?

उत्तर- प्रिंसेप परिवार की चार पीढ़ियों के 17 सदस्य भारत आए थे। दूसरी पीढ़ी के सात भाई एक साथ भारत में कार्यरत रहे। उसके भाई एडवोकेट जनरल, चीफ सेक्रेटरी, द्वारका नाथ टैगोर के बिजनेस पार्टनर, आर्किटेक्ट, जिसने बिस्टेल में राजा राम मोहन राय की समाधि डिजाइन की थी और सुन्दरवन का नक्शा बनाया था। एक भाई अर्थशास्त्री था जिसने बैलेंस आफ ट्रेड पर काम किया।
एक भाई उपन्यासकार था। उसने ‘द बाबूज् नामक उपन्यास लिखा जो संभवत: पहला विदेशी उपन्यासकार है जिसने भारतीय चरित्रों को प्रमुखता दी।
लेकिन इन सबमें जेम्स प्रिंसेप विलक्षण था। उसके पिता जॉन प्रिंसेप नील की खेती करने वाले पहले विदेशी थे। इंग्लैंड में उसने ‘गरीबदासज् नाम से वहां के अखबार में कई लेख लिखे। उसमें उसने भारतीयों की वकालत की है। इंग्लैड की संसद में भारतीय किसानों की स्थिति का दुखद वर्णन किया है। जेम्स प्रिंसेप के भाई एच.टी. प्रिंसेप ने उस समय मैकाले की शिक्षा प्रणाली का विरोध किया था। उसने मैकाले के खिलाफ एक साक्षरता अभियान भी चलाया था।

प्रश्न- प्रिंसेप के प्रेम या विवाह के बारे में कुछ बताएं?

उत्तर-उसकी बायोग्राफी पर काम करते समय एक बात सामने आती है कि 1826 में अपने परिवार के साथ वह कोलकाता गया। वहां उसे एक लड़की पसंद आई। लेकिन उसने देखा कि वह उसके छोटे भाई के प्रति आकर्षित है। इससे उसका मन खिन्न हो गया और वह भारी मन से बनारस लौट आया। यह बात उसके भाई विलियम जोन्स की डायरी में है। बाद में उसकी शादी हैरियट से हुई। जेम्स अंतिम दिनों में अपनी स्मृति खो बैठा था। उसकी पत्नी ने उसकी काफी सेवा की थी। अंतत: जेम्स 1840 में चल बसा।

प्रश्न- इस किताब पर काम करते हुए आप किन अनुभवों से गुजरे?

उत्तर- अच्छा अनुभव रहा लेकिन काम आसान नहीं था। हमारी पहली किताब में जेम्स पर एक अध्याय है। उसके बाद उसके परिवार के बारे में जानने में और ललक जागी और लिखना शुरू किया। प्रिंसेप खानदान बहुत ही प्रतिभाशाली खानदान था। उसके हर सदस्य पर एक किताब लिखी जा सकती है। हमने किताब लिखने के सिलसिले में बिखरे हुए प्रिंसेप खानदान के कई लोगों को मिलाया।

प्रश्न-अपना कोई रोचक अनुभव?

उत्तर- 2003 में एक स्कालरशिप मिलने पर मैं अपनी पत्नी के साथ इंग्लैंड गया था वहां पर एक सज्जन फ्रे ड पिल मिला जो भारत में 10 वर्ष रह चुके थे। इसलिए वे भारत से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी अपने पास रखते थे। यहां की पेंटिंग्स, लेख, किताबें आदि। उन्हें जब पता चला कि एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल मैंने लिखी है तो वह खुश हो गए। उन्होंने हमें लंच पर बुलाया काफी दिलचस्प बातें हुईं। उनके परिवार में कोई नहीं था। मैं चाहता था कि वह अपनी किताबें मुङो दे दें। फिर उन्होंने हमें डिनर पर भी बुलाया। बात धीरे-धीरे आगे बढ़ी जब उन्हें पता चला कि हम यहां रिसर्च के लिए आए हैं और हास्टल में रह रहे हैं तो उन्होंने यूरोप टूर पर जाने से पहले अपने पांच कमरों के मकान में हमें रहने के लिए कहा। यह हमारे लिए अच्छा था। मैं जब वापस आया तो उनसे संपर्क में बना रहा। जब उन्हें पता चला कि उन्हे कैंसर है और वह कम दिनों के मेहमान हैं तो उन्होंने अपनी किताबों और पुराने सामानों का संग्रह ब्रिटिश म्यूजियम के नाम अपनी वसीयत में कर दिया। और हमें सूचित किया कि अगर वह बचा हुआ कुछ चाहते हैं तो संपर्क कर सकते हैं। मैं इंग्लैंड गया उनसे बात की और उनके इस संग्रह के महत्व को भारत के लिए महत्वपूर्ण बताया। फिर उन्होंने अपनी वसीयत निरस्त करके मेरे नाम की। लगभग 100 से अधिक बक्सों में वह सामान उनके मरने के बाद भारत आया। ऐसा पहली बार हुआ था कि विदेश से कोई धरोहर भारत आई हो। यह अमूल्य धरोहर है। हमने उसे बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी के भारत कला भवन में रखवाया और उसके नाम से यह गैलरी जिसे भारी संख्या में लोग देखने आते हैं।

प्रश्न- क्या इस पुस्तक की कीमत इसके बहुत से इच्छुक पाठकों तक पहुंचने में बाधक नहीं होती?

उत्तर- यह सही है, लेकिन प्रकाशक का अपना दृष्टिकोण है, वे इसे एक संग्रहणीय पुस्तक बनाना चाहते हैं। इसके निर्माण में लागत भी अधिक आई है। लेकिन जेम्स प्रिंसेप की जीवनी आने पर यह शिकायत दूर हो जाएगी।

प्रश्न- अंत में आप जेम्स प्रिंसेप के बारे में क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर- अगर मानव इतिहास में कुछ प्रतिभाशाली व्यक्तियों की सूची बनाई जाए उसमें मेरे अनुसार जेम्स प्रिंसेप का स्थान सबसे ऊपर आएगा।

2 comments:

ab inconvinienti said...

जेम्स प्रिंसेप.....आभार इस महान व्यक्तित्व से परिचय करवाने के लिए

Smart Indian said...

धन्यवाद!

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एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...