Thursday, January 14, 2010

निरहू देश को तुम पर नाज है

बुद्धिसागर स्नेही को प्यार से लोग सनेही जी कहते हैं। जब इनके ज्ञान का घोड़ा कुलांचें मारता है तो यह श्रमजीवी या परजीवी टाइप लोगों के बीच देखे जाते हैं और इनके ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं। प्राय: यह उन्ही जगहों पर देखे जाते जहां इनको लोगों की भीड़ हो। एक खास बात यह कि किसी भी विषय पर केवल एक पान खाकर घंटों व्याख्यान दे सकते हैं। आइडियोलाजी को पीछे धकिया कभी ओसामा और कभी बुश के साथ हो सकते हैं। यही नहीं कभी सर्वहारा कभी बुर्जआ को गाली भी दे सकते हैं। उनके ऊपर पूंजीपतियों और कंगाल पतियों का दबाव भी काम नहीं करता। माजरा बस एक पान का है। राजनीति की उठापटक हो या मौसम में ठंड। बिना पंचांग और सेटेलाइट देखे यह निरंतर भविष्य बांचते रहते हैं। लेकिन भविष्यवाणी झूठ निकलने पर तकनीकि खराबी को दोष देना नहीं भूलते। और कोई जिद करता तो सीधे कहते कि मैं इन्द्र नहीं हूं कि जब मन करे बारिश भेज दूं या बहुप्रचलित राजनेताओं के उदाहरण दे देते यही नहीं लोगों की समस्या का समाधान भी बखुबी करते। इतनी खुबियों के कारण कभी लोग सायस या अनायास आ ही जाते। निरहू पुत्र घुरहू दमके दतिया दुति दामिनी लेकर सनेही जी के पास पहुंचे तो चेहरे से खुशी उछल रही थी । सनेही जी ने पूछा कि ये उमंग क्यों निरहू? निरहू ने प्रसन्न मुद्रा में कहा कि इस बार भी मैं बीए में फेल हो गया यह मेरा चौथा प्रयास था।
फेल होने पर इतना प्रसन्न चित्त? आपके चेहरे से निराशा और हया छू मंतर, सनेही जी चौंके! आशय निरहू ने स्पष्ट कर दिया कि इस बार वह क म नम्बरों से फे ल हैं। उनके चेहरे पर संतोष तैर रहा था कि अब सफलता पाने में एक या दो प्रयास और करने होंगे। बुद्धिसागर सनेही ने स्नेहपूर्वक निरहू को बैठाया काव्यात्मक मुद्रा में पूछा, निरहू देश को तुम पर नाज है, लेकिन बार-बार फेल होने का क्या राज है? क्या क्लास की सुंदरियां बन रही थी बाधा या जानबूझकर परीक्षक नम्बर कर देता था आधा? या इस मोहन की परेशानी है कोई राधा? निरहू ने कहा ऐसा नहीं है चाचा सनेही, ऐसी हरक तों पर होगी हमारी ही जवाबदेही। सच नहीं है ऐसी कोई बात, दरअसल पिता जी हर बार देते थे डांट। वह लीक से हटकर करने को कहते थे काम सो मुङो फे ल होने का काम लगा आसान। लेकिन अब माजरा बदल रहा है, मेरी नकल युवा तेजी से कर रहा है। इसलिए अब मैं थोड़ा चेंज करना चाहता हूं। और आपसे सलाह चाहता हूं। सनेही जी गंभीर मुद्रा में बोले बेटा, अब पढ़ाई छोड़ पालिटिक्स में आओ। तुम नेता बनो हमें प्रवक्ता बनाओ। इससे दोनों की रोटी चलेगी। और इसी तरह देश की गाड़ी आगे बढ़ेगी।

1 comments:

Udan Tashtari said...

सही सलाह सनेही जी की... :)

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एक ही थैले के...

गहमा-गहमी...