Thursday, February 18, 2010

हिंदी के साथ अंग्रेजी का इस्तेमाल पराजय सूचक

आठवें प्रवासी अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव में शिरकत करने आये विदेशी विद्वानों का मानना है कि हिंदी के साथ अंग्रेजी का इस्तेमाल पराजय सूचक है और इसे रोकना बेहद जरूरी है। ब्रिटेन से आए नरेश भारतीय ने कहा कि हिंदी में अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल गलत है, जिसे रोकना चाहिए और दोनों भाषाओं को अलग-अलग रखना जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारतीय धन कमाने के लिए अंग्रजी की ओर जा रहे हैं। वैश्विक स्तर पर हिंदी को स्थापित करने के लिए संकल्पित रूप से कार्य किया जाना चाहिए।




जर्मनी के हैम्बर्ग विश्वविद्यालय में हिंदी की प्राध्यापिका प्रो. तात्याना ओरांस्काइया ने कहा कि जर्मनी में हिंदी के प्रति लोगों में रुझान भारतीय संस्कृति को जानने के लिए बढ़ा है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि भारत से जाने वाले मंत्री एवं अन्य राजनीतिज्ञ अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, जो उपनिवशकाल की भाषा है। हिनुस्तानियों को अपनी राष्ट्रीय भाषा के प्रति प्रेम विकसित करना चाहिए।



हिन्दी में सीमाओं का अतिक्रमण जिस तरह से हो रहा है, उस पर चर्चा करना आवश्यक है।
इस्राइल के तेलअबीब विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक प्रो. गेनादी श्लोम्पेर ने कहा कि हिंदी साहित्य की किताबों को छोड़ दिया जाए तो हिंदी में उपलब्ध अधिकतर किताबें अनुवाद की हुई होती हैं, जिसके कारण यह अनुवाद की भाषा बन गयी है। हिंदी को व्यवसाय की भाषा बनाने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी में मूल रूप से काम किया जाना चाहिए और हिंदी को बाजार की भाषा के रूप में मान्यता लिये बिना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका बेहतर तरीके से प्रचार काफी मुश्किल काम होगा।



रूस निवासी हिंदी उपन्यास पर शोध कर रहीं तात्याना दुब्यांस्काया ने बताया कि भारतीय संस्कृति के प्रति विदेशियों की दिलचस्पी ने उन्हें हिंदी के प्रति आकर्षित किया है। उन्होंने बताया कि पिछले 10-15 साल में रूस में आए परिवर्तनों के कारण अधिक छात्र हिंदी की तरफ आकर्षित नहीं होते हैं और रूस में भारतीय बाजार की उपस्थिति न के बराबर है। रूस के लोगों को भारत के धर्म, नृत्य और संगीत में विशेष दिलचस्पी है।

5 comments:

L.Goswami said...

इधर हाल यह है की जरा सी स्तरीय हिंदी लिखने पर (ब्लॉग पर )लोग समझने में असमर्थ हो जाते हैं

Manish Kumar said...

दरअसल इतना ज्यादा अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल हम अपनी बोलचाल की भाषा में करने लगे हैं कि सहज से सहज शब्द भी हमारे शब्दकोष से लुप्त होते जा रहे हैं। इस प्रवृति पर लगाम लगाने की जरूरत है। हिंदी में ऐसे लेखन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जो मध्यम मार्ग को अपनाए यानि ना इतना अंग्रेजीदां हो ना ही परम साहित्यिक। तभी आम जनता भी इससे जुड़ेगी।

Anonymous said...

मेरा भी लवली कुमारी जैसा अनुभव है कि जरा सी स्तरीय हिंदी लिखने पर लोग समझने में असमर्थ हो जाते हैं

लेख के शीर्षक से भी सहमत हूँ

बी एस पाबला

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

पराजय ही अच्छी है अगर समझा ही न पाएं तो

अनुनाद सिंह said...

'हिन्दी के साथ अंग्रेजी का प्रयोग पराजयसूचक है' - यह बात ऐतिहासिक रूप से भी सत्य है तथा यह बात अन्य भाषाओं पर भी लागू होती है।

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